कहते हैं कि जो पीढ़ी उसके पुरखों और इतिहास को भूल जाती है उससे अधिक अभागा कोई नहीं हो सकता. यदि कोई देश उसकी पुरातन संस्कृति, अतीत और देश की आज़ादी के लिए उनके लहू की कुर्बानी देने वाले लड़ाकों को भूल जाता है तो इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है? वर्तमान समाज को इस बात पर गहन चिंतन-मनन करना चाहिए कि आख़िर हम क्यों अपने पुरातन नायकों को भुलाते जा रहे हैं.
अब आप सभी सोच रहे होंगे कि ऐसी क्या ज़रूरत पड़ गई कि हमने मौसम-बेमौसम ही देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम का राग अलापना शुरु कर दिया. दरअसल बात कुछ ऐसी है कि इधर पिछले कई दिनों से भारत के सबसे ज़्यादा प्रचलित अख़बार टाइम्स ऑफ इंडिया ने कई किश्तों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर फीचर स्टोरी करना प्लान किया है, इसकी पहली किश्त छप भी चुकी है. इस स्टोरी में वे “नेताजी” के विवादास्पद मौत और उसके बाद की कहानी की जांच-पड़ताल में लगे दिखते हैं, और वे इससे हमारे जैसे सामान्य जनों में एक सहज उत्सुकता और ऊर्जा का संचार करते प्रतीत होते हैं. तो इसी के मद्देनज़र ग़ज़बपोस्ट भी उसके पाठकों के लिए लेकर आया है “नेताजी” की ज़िंदगी से जुड़े ऐसे कुछ तथ्यों को जो हममें से अधिकतर को नहीं मालूम होंगे...
1. उन दिनों गवर्नर जनरल से मुलाक़ात करने के दौरान छाते को साथ ले जाना वर्जित था, मगर भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के बाद उन्होंने ऐसे किसी भी फरमान को मानने से इंकार कर दिया.
2. नेताजी ने आज़ादी के संग्राम में शामिल होने के लिए भारतीय सिविल सेवा की आरामदेह नौकरी ठुकरा दी.
3. सन् 1921 से 1941 के बीच नेताजी को भारत के अलग-अलग जेलों में 11 बार कैद में रखा गया.
4. सन् 1941 में उन्हें एक घर में नज़रबंद करके रखा गया था, जहां से वे भाग निकले. नेताजी कार के माध्यम से कोलकाता से गोमो के लिए निकल पड़े. वहां से वे ट्रेन से पेशावर के लिए चल पड़े. वहां से वे काबुल और फिर काबुल से जर्मनी को चल पड़े जहां वे अडॉल्फ हिटलर से मिले.
5. सन् 1943 में जब नेताजी बर्लिन में थे, उन्होंने वहां आज़ाद हिंद रेडियो और फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की थी.
6. सन् 1943 के जनवरी माह में जापानवासियों ने नेताजी को पूर्वी एशिया में भारतीय राष्ट्रप्रेमियों की अगुआई के लिए आमंत्रित किया. उन्होंने यह आमंत्रण स्वीकारा और 8 फरवरी को जर्मनी से जापान को रवाना हो गए.
7. नेताजी जर्मनी से जापान वाया मैडागास्कर सबमैरिन के सहारे यात्रा करते रहे. उन दिनों इस तरह की और इतनी लंबी यात्रा में बड़े खतरे हुआ करते थे.
8. नेताजी सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी की कई बातों और विचारों से इत्तेफाक़ नहीं रखते थे, और इस पर उनका मानना था कि बिना किसी प्रकार के हिंसक कार्यक्रंम के भारत को आज़ादी मिलने से रही.
9. सन् 1939 के कांग्रेस सम्मेलन में नेताजी स्ट्रेचर पर लाद कर लाए गए. यहां उन्हें गांधीजी की ओर से प्रस्तावित अध्यक्ष पद हेतु पट्टाभि सीतारमैया से अधिक समर्थन मिला और उन्हें दोबारा अध्यक्ष पद पर चुन लिया गया.
10. नेताजी के मृत्यु की आज भी पुष्टि नहीं हो पायी है. उनकी ज़िंदगी के कई साक्ष्य और बातें रूस और भारत में देखे-सुने गए हैं.
11. नेताजी का ऐसा मानना था कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए सशक्त क्रांति की आवश्यकता है, तो वहीं गांधी अहिंसक आंदोलन में विश्वास करते हैं.
12. जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि, वे भारत की आज़ादी के संग्राम में कूद पड़े.
13. नेताजी सुभाष चंद्र बोस उनके परिवार में 9 वें नंबर के बच्चे थे.
14. नेताजी उनके बचपन के दिनों से ही एक विलक्षण छात्र थे, और राष्ट्रप्रेमी भी.
15.भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में नेताजी की रैंक 4 थी.
16. नेताजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दो बार अध्यक्ष चुना गया था.
17. नेताजी के मौत की गुत्थी आज भी अनसुलझी है, और यहां तक कि भारत सरकार भी उनकी मौत के बारे में कुछ नहीं बोलना चाहती.
18. लोगों का ऐसा मानना है कि नेताजी सन् 1985 तक जीवित रहे हैं, जहां वे भगवानजी के रूप में फैज़ाबाद के एक मंदिर में रहते थे.
19. नेताजी के कॉलेज के दिनों की बात है. एक अंग्रेजी शिक्षक के भारतीयों को लेकर आपत्तिजनक बयान पर उन्होंने ख़ासा विरोध किया, जिसकी वजह से उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया.
20. महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बीच गहरे मतभेद थे. मामला यहां तक पहुंच गया था कि गांधीजी द्वारा कांग्रेस पार्टी के प्रस्तावित अध्यक्ष पदीय प्रत्याशी को हरा दिया. हालांकि नेताजी अध्यक्ष पद का चुनाव जीत चुके थे, मगर फिर भी उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
21. कांग्रेस पार्टी छोड़ने के बाद नेताजी ने सन् 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक नामक संगठन का गठन किया.
22. ऐसा माना जाता है कि नेताजी की मौत जापान में किसी हवाई दुर्घटना में हुई थी, मगर अब तक नेताजी के शरीर के कोई भी अवशेष कहीं से भी बरामद नहीं हुए हैं.
23. 17 मई, 2006 को जस्टिस मुखर्जी कमीशन ने एक रिपोर्ट पेश की, “जिसमें इस बात का जिक्र था कि रंकजी मंदिर में पाई जाने वाली राख नेताजी की नहीं थी” . हालांकि इस रिपोर्ट को भारत सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया, और यह मामला आज भी एक रहस्य ही है.