पुलिस, आईएएस और आईपीएस अफ़सरों को अक़सर देश के मंत्रियों के आपसी अनबन का नतीजा भुगतना पड़ता है. लेकिन ऐसी ही स्थिति सेना में भी है, ये Daily O में छपी रिपोर्ट से पता चलता है.
Daily O में छपी एक रिपोर्ट से इस बात का खु़लासा हुआ है कि सेना के एक लेफ़्टिनेंट जनरल ने चीनी ख़तरे को युद्ध से काफ़ी पहले भांप लिया था.
चीन से युद्ध का अंदेशा था
लेफ़्टिनेंट जनरल एस.पी.पी थोराट ने हिन्दुस्तान के बॉर्डर पर छाये चीनी ख़तरे से जुड़ी एक रिपोर्ट 8 अक्टूबर, 1959 को सेना प्रमुख को भेजी, जिसे आगे रक्षा मंत्री को भेजा गया.
रिपोर्ट में कुछ ऐसा लिखा था-
‘पहले हमारे लिए सबसे बड़ा ख़तरा सिर्फ़ पाकिस्तान था. इस ख़तरे के साथ ही अब चीन का ख़तरा भी जुड़ गया है. चीन हमारी धरती पर कब्ज़ा करने की फ़िराक़ में है. चीन ने मैकमोहन लाइन को अन्तर्राष्ट्रीय बॉर्डर मानने से इंकार कर दिया है. इसके साथ ही उसने लद्दाख, उत्तर प्रदेश और North East Frontier Agency के इलाकों में घुसपैठ भी की है…’
रक्षा मंत्री ने नकार दिए तथ्य
वी. के. मेनन ने रक्षा मंत्री का पद संभाला और जनरल के.एस.थिमैया (तब के सेना प्रमुख) की तरह वो भी मेनन के पसंदीदा अफ़सरों की सूची से बाहर हो गए. मेनन ने थोराट की बातों को नकार दिया और उन्हें ‘युद्ध भड़काने वाला’ कह दिया.
मेजर जनरल वी.के.सिंह ने भी लिखा
मेजर जनरल वी.के.सिंह ने अपनी किताब Leadership in the Indian Army में लिखा है,
थोराट ने ये साफ़ तौर पर कहा था कि अगर चीन हमला करता है, तो मौजूदा हथियारों और जवानों के सहारे उसे हराना बहुत मुश्किल होगा.
लेफ़्टिनेंट जनरल थोराट ने एक टाइम टेबल भी बना के दिया था कि कब और कैसे हमारी सैन्य शक्तियां शिथिल पड़ेंगी. उन्होंने चीन के खिलाफ़ वायुसेना की मदद लेने का भी प्रस्ताव रखा था.
Daily O के मुताबिक मेजर जनरल वी.के.सिंह ने आगे लिखा,
जब मई 1961 में थिमैय्या रिटायर हुए तब ये माना जा रहा था कि थोराट उनकी जगह पर सेना प्रमुख चुने जाएंगे. उनके पास कोमबैट का अनुभव था और वे बेहद सम्मानीय अफ़सर थे. सबसे ज़रूरी बात वे Eastern Command के General Officer Commanding-in-Charge(GOC-in-C) थे और चीन से जुड़े बॉर्डर के मसलों से परिचित थे.
लेकिन भारत का अगला सेना प्रमुख जनरल पी.एन.थापर को बना दिया गया, जो पद में थोराट से सीनियर थे लेकिन उनके पास फ़ील्ड का अनुभव कम था. सबसे ज़रूरी बात, वे रक्षा मंत्री के करीबी थे.
सेना प्रमुख ने भेजी चिट्ठी
मंत्री और उस वक़्त के सेना प्रमुख की नासमझी की हद तो तब हो गई, जब थोराट को सेना प्रमुख ने एक चिट्ठी भेजी, वो भी उनकी सेवानिवृत्ति के वक़्त.
24 जून, 1961 को सुबह 8 बजे थोराट के पास एक चिट्ठी आई. जिसमें ये लिखा था कि थोराट पर कुछ आरोप हैं, प्रधानमंत्री ने कुछ सवाल भेजे हैं जिनके जवाब उन्हें देने होंगे.
शाम तक थोराट ने सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिए थे.
1. रानीख़ेत में दिया गया एक बयान
थोराट पर आरोप था कि रानीखेत में उन्होंने कहा, ‘भारतीय अफ़सर नेताओं से पैरवी लगाकर प्रमोशन हासिल करते हैं, जिससे सेना का माहौल बिगड़ रहा है.’
थोराट ने जवाब में बताया कि उन्होंने सिर्फ़ ये कहा था, ‘किसी भी अफ़सर को सिर्फ़ अपने सीनियर के प्रति ईमानदार और वफ़ादार रहना चाहिए.’
2. थोराट ने एक वायुसेना के अफ़सर को रक्षा मंत्री के विरुद्ध कही बात
थोराट पर ये आरोप लगाया गया कि उन्होंने एक वायुसेना अफ़सर से कहा कि, ‘रक्षा मंत्री से उन्हें एलर्जी है और वो सेना का माहौल ख़राब कर रहे हैं.’
थोराट ने जवाब में कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि हम दोनों ही एक-दूसरे को पसंद नहीं करते हैं.
3. जनरल के.एस.थिमैया की विदाई समारोह में थोराट का ख़र्च
थोराट ने इसका भी ब्यौरा दिया था.
इसके अलावा थोराट ने जवाब में कहा,
अगर मेरे जवाबों से कोई संतुष्ट नहीं है तो मैं आग्रह करूंगा कि मुझे निजी तौर पर बातें साफ़ तौर पर कहने का मौका दिया जाए.
कहा जाता है कि युद्ध के बाद नेहरू जी को इस बात को बहुत अफ़सोस था कि अगर थोराट की बात मान ली जातीं, तो युद्ध का नतीजा कुछ और होता.
एक नेता और एक सैन्य अफ़सर से उनके विचार न मिलने का ख़ामियाज़ा भारत को चीन के हाथों हार कर और कई जवानों की शहीदी से भरना पड़ा.