‘इस नौकरी कि वजह से कुछ नहीं कर पाते’… ऐसा कहने वाले कई लोग हैं लेकिन इनमें से बहुत कम हैं, जो अपने सपनों को पूरा करने की ठानते हैं. आज आपके लिए कुछ ऐसे लोगों की कहानियां लेकर आएं हैं, जिन्होंने ऐश-ओ-आराम, मनपसंद नौकरियां और सारी सुख-सुविधाओं को त्याग कर खेती शुरू कर दी. ये कोर्पोरेट्स से किसान बन गए.
आज मिलिए कुछ ऐसे ही लोगों से, जिन्होंने खेती करने के लिए छोड़ी आरामदायक AC दफ़्तर वाली नौकरी-
1. गुरदेव कौर
लुधियाना में अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर गुरदेव ने महिलाओं को सशक्त करने के लिए खेती शुरू की. एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल उन्होंने 300 से ज़्यादा महिलाओं को रोज़गार के अवसर दिए.
गुरदेव के पास सिर्फ़ 2.5 एकड़ ज़मीन थी और उनके पास खेती का कोई तजुर्बा नहीं था. Punjab Agriculture University से 2 महीने की ट्रेनिंग के बाद उन्होंने गोभी, गाजर, मिर्ची, शिमला मिर्च, हल्दी, अदरक, आंवला, दाल, गन्ने और ऑर्गैनिक चावल की खेती शुरू की.
गुरदेव ने Global Self Help Group की स्थापना की और इस समूह से जुड़ी महिलाएं हर महीने, 20-25 हज़ार तक कमा लेती हैं.
2. संकल्प शर्मा
अपनी High-Profile नौकरी से ऊबकर संकल्प ने 2015 में नौकरी छोड़ दी. बहुत से युवाओं की तरह संकल्प को भी समाज के लिए कुछ करना था.
संकल्प ने भी खेती का रुख किया. एक रिपोर्ट के अनुसार, किताबों और अलग-अलग वेबसाइट्स से जानकारी जुटाकर, संकल्प ने Zero Budget Farming विधि का इस्तेमाल कर 10 एकड़ ज़मीन पर खेती शुरू की.
3. सबिता राजेंद्रन और Julius Rego
मुंबई की सबिता ने 2011 में एडवर्टाइज़िंग की नौकरी और Julius ने Furniture Dealership की नौकरी छोड़कर किसान बनने का निर्णय लिया. कीटनाशक युक्त और केमिकल में उबली सब्ज़ियां न खाने की ज़िद ने इन दोनों को Green Souls की स्थापना करने के लिए प्रेरित किया.
सिर्फ़ 20 हज़ार रुपए से उन्होंने 2012 में Green Souls की स्थापना की. सबिता और Julius फल और सब्ज़ियों के अलावा औषधीय फूल और पौधे भी उगाते हैं, जिन्हें Tata Memorial Hospital में दान कर दिया जाता है.
4. हरीश धनदेव
सरकारी नौकरी यानि की सबसे आराम की नौकरी छोड़कर हरीश ने खेती का रुख़ किया. हरीश ने एलोवेरा की खेती की और देखते-ही-देखते उनका टर्नओवर करोड़ों तक पहुंच गया.
जैसलमेर के म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की नौकरी छोड़ हरीश ने एलोवेरा उगाने का निर्णय लिया और आज उन्हें एलोवेरा की वैराइटी की मांग सिर्फ़ पतंजलि से ही नहीं, बल्कि ब्राज़ील, हॉन्ग कॉन्ग जैसे देशों से भी आती है.
5. जूली करियप्पा और विवेक करियप्पा
जूली और विवेक ने गार्मेंट एक्सपोर्ट कंपनी की अपनी अच्छी पगार वाली नौकरी छोड़कर, मैसूर के निकट 13 एकड़ ज़मीन ख़रीदी और ऑर्गैनिक फ़ार्मिंग शुरू की.
जूली और विवेक ने जब खेती-बाड़ी शुरू की, तब उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी और आज उनके पास 40 एकड़ ज़मीन और कुछ पशु भी हैं.
6. सुरेश बाबू
Coimbatore Institute of Technology, University of South Australia से पढ़ाई करने के बाद, ऑस्ट्रेलिया में ही एक कंपनी में नौकरी करने के बाद खेती करने का निर्णय लिया सुरेश ने. IT Sector और पैसे कमाने का नशा सुरेश पर इस कदर था कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता भी ले ली थी.
उनके पास सब कुछ था, पर उन्हें अंदरूनी शांति नहीं मिल रही थी. सुरेश के पिता के पास 9.5 एकड़ ज़मीन थी, जिस पर हाथियों के आक्रमण के कारण खेती नहीं होती थी. बिजली के तारों की सरहद बनाकर सुरेश ने इसी पर केले और सुपारी की खेती शुरू की.
खेती के लिए Drip Irrigation System और कीटनाशक के तौर पर नीम के पत्तों का रस इस्तेमाल करते हैं सुरेश. एक रिपोर्ट के अनुसार, सुरेश खेती को भी इज़्ज़तदार व्यवसाय मानते हैं और ख़ुद को गर्व से किसान कहते हैं.
7. नीरज ढांडा
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद और कुछ दिनों तक डेवेलपर की नौकरी करने के बाद नीरज को गांव और घर की याद आने लगी. नीरज ने अमरूद की एक वैराइटी की खेती करने का निर्णय लिया, जिसकी शहरों में भी काफ़ी मांग है.
7 एकड़ ज़मीन पर नीरज ने 1900 अमरूद के पौधे लगाए. खर्च और मेहनत बहुत थी, लेकिन नीरज ने फसल उगाने का दृढ़ निश्चय कर लिया था. एक रिपोर्ट के मुताबिक, नीरज की मेहनत रंग लाई और आज उनके एक पेड़ से 50-50 किलो अमरूद होते हैं, ये अमरूद इतने बड़े होते हैं कि एक व्यक्ति एक पूरा अमरूद नहीं खा सकता.
8. गौरव और निक्की चौधरी (Tree Farming Couple)
गौरव और निक्की को ये एहसास हुआ कि Corporate नौकरी के बजाए Agroforestry से उन्हें ज़्यादा सुकून मिलता है. गौरव और निक्की उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में Eucalyptus और दूसरे पेड़ लगाते है.
ये दोनों Progressive Dairy Farmers Association भी चलाते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, इस जोड़े का मानना है कि ज़रा सी बुद्धि और अच्छी प्लैनिंग से खेती में सफ़लता पाई जा सकती है.
9. हेमल पटेल
कॉर्पोरेट नौकरी ने हेमल का दायरा उनके Cubicle तक ही सीमित कर दिया था. विकेंड ट्रिप्स ही सिर्फ़ एक राहत थी उनके जीवन में. गांव-गांव घूम-घूमकर हेमल को भी खेती करने की प्रेरणा मिली.
रिपोर्ट्स के मुताबिक 2014 में उन्होंने Urban Soil की स्थापना की और ऑर्गैनिक फ़ार्मिंग के बारे में दूसरों को भी जानकारी देने लगे. हेमल समय-समय पर ऑर्गैनिक फ़ार्मिंग से जुड़े वर्कशॉप्स करवाते रहते हैं.
10. वल्लारी चंद्राकर
27 साल की वल्लारी ने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ी और खेती में ही अपना भविष्य ढूंढने लगी. रिपोर्ट्स के अनुसार, 27 एकड़ की अपनी ज़मीन पर सब्ज़ियां उगाती हैं जिन्हें दुबई और इज़रायल जैसे देशों को Export किया जाता है. वल्लारी ने भी इंटरनेट से खेती के नए तरीके सीखे और समय-समय पर वो भी किसानों के लिए वर्कशॉप करवाती हैं.
जो कहते हैं कि किसान बनने से सिर्फ़ ग़रीबी हाथ आती है, उन्हें शायद इन लोगों के बारे में नहीं पता.