वो लड़का है, तुम लड़की… ये काम सिर्फ़ लड़के कर सकते हैं, लड़कियां नहीं… लड़कियां कमज़ोर होती हैं… लड़के रोते नहीं…
ये सारी बातें हम बचपन से सुनते आ रहे हैं. सुन इसलिए भी रहे हैं क्योंकि ये हमारे समाज की सोच है. इसी सोच के हिसाब से लड़कियों को लड़कों के अपराध के लिए घर में क़ैद करना, उन पर रोक-टोक करना सही माना जाता है. ग़लत लड़की के साथ हुआ, तो भी लड़की को ही बचकर रहने की सलाह दी जाती है, लेकिन उस लड़के को ठीक नहीं किया जाता. लड़के को भी लगता है कि उसकी ग़लती के लिए अगर लड़की को सुनाया जा रहा है, तो वो ग़लत नहीं है. एक बेहतर समाज बनाने के लिए हमें लड़कियों पर रोक-टोक लगाने से बेहतर अपने बेटों को बचपन से ही कुछ ऐसी आदतें सिखानी होंगी, जिससे वो बेहतर इंसान बन सकें.
आज हम आपको कुछ ऐसी ही बातें बताने जा रहे हैं, जिन्हें हम कई वर्षों से सुनते आ रहे हैं. लड़कों को अगर ये बातें बचपन से ही सिखाई जाएंगी, तो हम महिलाओं के लिए एक भयमुक्त समाज की कल्पना कर सकते हैं:
1. जितनी इज़्ज़त अपनी मां-बहन की करते हो, दूसरे की मां-बहन की भी करो.

हर लड़के को ये चीज़ ध्यान में रखनी चाहिए कि जितनी इज़्ज़त वो अपनी मां-बहन की करता है, उतनी ही इज़्ज़त दूसरे की मां-बहन की भी करे.
2. लड़का और लड़की में फ़र्क करना.

लड़का सिर्फ़ एक तरह के काम करेगा और लड़की सिर्फ़ एक तरह के…. इस सोच पर विराम लगा दें. लड़के को हर तरह के काम करने दें और सिखाएं.
3. मर्द को भी दर्द होता है.

मर्द किसी दूसरी मिटटी के नहीं बने होते जो उन्हें दर्द न हो. मर्द हो या औरत, दर्द सभी को होता है.. इस लिए जब लड़के को चोट लगे तो उसे रोने से ये कह कर मत रोको की वो मर्द है, उसे दर्द नहीं होना चाहिए.
4. ‘अच्छी नौकरी नहीं करेगा तो कल के दिन तुझे कौन अपनी लड़की देगा?’

हर पेरेंट्स अकसर ये डायलॉग अपने बेटे को मरते हैं. आप क्यों उसे प्रेशर में डाल रहे हैं कि सिर्फ़ नौकरी कर के ही वो शादी के क़ाबिल हो जायेगा? यही बात कोई लड़कियों को क्यों नहीं बोलता. उसे भी अपने पैरों पर खड़े होने की ज़रुरत है.
5. बेटा पिंक कलर लड़के नहीं पहनते.

ग़लती से अगर कोई पिंक शर्ट या टी-शर्ट पसंद कर ले, तो तुरंत टोक दिया करते थे. ये क्या लड़कियों वाला कलर पसंद किया है? ग्रीन कलर देख, लड़के ग्रीन ही पहनते हैं. कलर आपको लड़का या लड़की नहीं बनाते.
6. बुढ़ापे में मां-बाप को तुमने ही तो पालना है, लड़की तो पराया धन होती है.

लड़के और लड़कियों दोनों की ज़िम्मेदारी है बुढ़ापे में अपने मां-बाप की देख-रेख करना. फिर सारा प्रेशर लड़के पर ही क्यों?
7. घर का काम लड़का भी कर सकता है.

आज के दौर में ये ज़रूरी नहीं है कि घर का काम सिर्फ़ लड़कियां ही करें. जो काम लड़की करती है, वो लड़का भी कर सकता है. लड़के को एहसास दिलाएं कि घर के काम सिर्फ़ लड़कियों के करने के लिए ही नहीं होते.
8. किसी रिश्तेदार के घर जाना हो, तो भी लड़के को ही भेजा जाता है.

बचपन से हम देखते आये हैं कि अगर किसी रिश्तेदार के घर कुछ काम से जाना भी होता था तो पेरेंट्स सबसे पहले बेटे को ही वहां जाने के लिए कहते थे. लड़कियां को भेजने में कौन सी दिक्कत आ जाती है ये समझ से परे है.
9. मर्द होकर इतना कम खाते हो?

ज़रूरी नहीं कि वो लड़का है तो ज़्यादा ही खायेगा या सिर्फ़ क्रिकेट ही पसंद करेगा. बच्चों पर ऐसी अवधारणायें थोपनी बंद करें.
10. मेहमानों के आने पर उनकी ख़ातिरदारी की ज़िम्मेदारी दोनों की होनी चाहिए.

जब भी हमारे घरों में मेहमान आते हैं लड़कियों की ज़िम्मेदारी किचन संभालने की होती है और लड़कों की बाहर से सामान ख़रीदकर लाने की. बेटा भी तो किचन संभाल सकता है.
11. अगर लड़का काम से कहीं बाहर जा रहा है, तो वो भी लड़की की तरह परमिशन ले.

बेटा हो बेटी घर के नियम दोनों के लिए बराबर होने चाहिए. आख़िर बेटी ही परमिशन लेकर घर से बाहर क्यों निकले, बेटे क्यों नहीं? घर के नियम किसी एक के लिए अलग नहीं होने चाहिए.
सबसे पहले हमें ख़ुद को बदलना होगा तभी समाज बदलेगा. अगर ये समाज इन बातों पर गौर करना शुरू कर दे तो शायद महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों में कमी आ सकती है.