सूचना एवं टेक्नोलॉजी के इस दौर में भारत का नाम दुनिया के पांच सबसे शक्तिशाली देशों में लिया जाता है. भारत की गिनती भले ही अब भी विकासशील देशों की श्रेणी में की जाती हो. बावजूद इसके हमारी गिनती परमाणु हथियार संपन्न देशों में भी की जाती है. आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) पर दुनियाभर के देशों की नज़रें लगी हुई हैं. भारतीय वैज्ञानिक हर बार नई-नई तकनीक इजात कर दुनिया में भारत का परचम लहरा रहे हैं. भारत ने परमाणु शक्ति बनने का दर्जा 1974 में हासिल किया था. भारत ने अपना पहला भूमिगत परीक्षण 18 मई 1974 को किया था. हालांकि, उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये होगा और ये परीक्षण भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये किया गया है. बाद में 11 और 13 मई 1998 को भारत ने पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण कर स्वयं को परमाणु शक्ति संपन्न देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया.

आइये जानते हैं आज़ादी के बाद भारत ने ख़ुद को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के लिए कौन-कौन सी ऐसी टेक्नोलॉजी का सफ़ल परीक्षण किया है.

1. Atomic Clock के निर्माण के साथ ही इसरो दुनिया के उन अंतरिक्ष संगठनों में शामिल हो गया है जिनके पास ये बेहद जटिल तकनीक है.

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक Atomic Clock विकसित की है जिसका इस्तेमाल नैविगेशन सैटलाइट्स में किया जाता है ताकि सटीक लोकेशन डेटा मिल सके. इससे पहले इसरो को अपने नैविगेशन सैटलाइट्स के लिए यूरोपियन ऐरोस्पेस मैन्युफैक्चरर ऐस्ट्रियम से Atomic Clock ख़रीदनी पड़ती थी.

2. भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की एक टीम ने आकाशगंगाओं का एक बहुत बड़ा समूह खोज निकला.

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भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के एक दल ने आकाशगंगाओं का एक बहुत बड़ा समूह (सुपरक्लस्टर) खोजा है, जिसका आकार अरबों सूर्यों के बराबर है. पुणे स्थित ‘इंटर यूनीर्विसटी सेंटर फ़ॉर एस्ट्रोनामी एंड एस्ट्रोफ़िजिक्स’ के मुताबिक़, ये सबसे बड़े ज्ञात ढांचों में से एक है जो पृथ्वी से 400 लाख प्रकाश वर्ष दूर है और करीब 10 अरब वर्ष से अधिक पुराना है. आकाशगंगाओं का ये समूह काफ़ी विशाल और दुर्लभ है. अभी तक ऐसी बहुत ही कम संरचनाओं की खोज की गई है और भारत ने पहली बार इसकी खोज की है.

3. इसरो ने एक रॉकेट से 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड.

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भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा एक ही रॉकेट के माध्यम से रिकॉर्ड 104 उपग्रहों का सफ़ल प्रक्षेपण करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है. ध्रुवीय अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-C37 ने सबसे पहले कार्टोसैट-2 श्रेणी के उपग्रह को कक्षा में प्रवेश कराया, इसके बाद शेष 103 नैनो उपग्रहों को 30 मिनट के भीतर प्रवेश कराया गया. इनमें 96 उपग्रह अमेरिका के थे. एक बार में सबसे ज़्यादा उपग्रह प्रक्षेपित करने का श्रेय अब तक रूसी अंतरिक्ष एजेंसी के पास था.

4. इसरो ने सबसे भारी रॉकेट GSLV MK-3 लॉन्च किया.

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GSLV MK-3 की लॉन्चिंग स्पेस टेक्नोलॉजी में बड़ा बदलाव लाने वाले मिशन के तौर पर देखा जा रहा है. अब भारत दूसरे देशों पर डिपेंड हुए बिना ही बड़े और भारी सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग देश में ही कर सकता है. ये रॉकेट स्पेस में 4 टन तक के वज़न वाले सैटेलाइट्स को ले जा सकता है. इसकी क्षमता मौजूदा GSLV MK-2 की दो टन क्षमता से दोगुनी है. ये धरती की कम ऊंचाई वाली ऑर्बिट तक 8 टन वजन ले जाने की ताकत रखता है.

5. 18 वर्षीय भारतीय लड़के द्वारा बनाया दुनिया का सबसे हल्का सैटेलाइट NASA करेगा लॉन्च.

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तमिलनाडु के पल्लापत्ती में रहने वाले 18 वर्षीय रिफ़त शाहरुख ने दुनिया का सबसे छोटा सैटेलाइट बनाया है. 64 ग्राम के इस सैटेलाइट को Kalamsat नाम दिया गया है. इस सैटेलाइट को बनाने में 2 साल लगे और 1 लाख रुपए का ख़र्च आया. इस सैटेलाइट का लक्ष्य 3D प्रिटेंड कार्बन फ़ाइबर की परफ़ॉर्मेंस को प्रदर्शित करना और तापमान व रेडिएशन को रिकॉर्ड करना होगा. इसकी मिशन अवधि 240 मिनट होगी और छोटे उपग्रह अंतरिक्ष के माइक्रो ग्रैविटी वातावरण में 12 मिनट तक काम करेंगे.

6. ‘परम’ भारत का पहला स्वदेशी सुपरकंप्यूटर, आधुनिक भारत के लिए टेक्नोलॉजी क्षेत्र में मील का पत्थर.

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परम सी-डैक द्वारा विकसित भारत के स्वदेशी सुपरकंप्यूटर्स की एक श्रृंखला है. श्रृंखला में नवीनतम सुपरकम्प्यूटर परम ईशान हैं. प्रौद्योगिकी प्रतिबंध के परिणामस्वरूप क्रे सुपरकंप्यूटर से वंचित किए जाने के बाद, भारत ने स्वदेशी सुपर कंप्यूटर और सुपर कंप्यूटिंग प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया. सुपर कंप्यूटर परमाणु हथियारों के विकास के लिए सहायता करने में सक्षम माना जाता था. इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के उद्देश्य से 1988 में सेंटर फ़ॉर डेवलपमेंट ऑफ़ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (सी-डैक) की स्थापना की गई. 1990 में, एक प्रोटोटाइप का उत्पादन किया गया और इसका 1990 के ज्यूरिख सुपरकंप्यूटिंग शो में बेंचमार्क किया गया था. इसने ज़्यादातर अन्य प्रणालियों को पीछे छोड़ दिया. जिससे अमेरिका के बाद भारत को दूसरे नंबर पर रखा गया. इन प्रयास के परिणामस्वरूप 1991 में परम 8000 अस्तिव में आया.

7. ‘आर्यभट्ट’ भारत द्वारा निर्मित पहला मानव रहित उपग्रह जो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक सफ़ल उपलब्धि थी.

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19 अप्रैल, 1975 भारत का पहला उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ जिसे सोवियत संघ द्वारा शुरू किया गया था. ये गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था. इसने 5 दिन बाद काम करना बंद कर दिया था. लेकिन ये अपने आप में भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि थी. आर्यभट्ट को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा एक्स-रे खगोल विज्ञान, एयरोनॉमिक्स और सौर भौतिकी में प्रयोग करने के लिए बनाया गया था और इसरो के लिए नई संभावनाएं खोली गईं.

8. विश्व की सबसे तेज़ और सबसे भयानक एंटी शिप क्रूज़ मिसाइल.

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ब्रह्मोस दुनिया की सबसे तेज़ और सबसे भयानक एंटी-शिप क्रूज़ मिसाइल है. इसे पनडुब्बी से, पानी के जहाज से, विमान से या जमीन से भी छोड़ा जा सकता है. ब्रह्मोस (Brahmos) हथियार प्रणाली को संयुक्त रूप से भारत और रूस द्वारा विकसित किया गया है. ब्रह्मोस भारत और रूस के द्वारा विकसित की गई अब तक की सबसे आधुनिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली है और इसने भारत को मिसाइल तकनीक में अग्रणी देश बना दिया है.

9. पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला भारत दुनिया का एकमात्र राष्ट्र.

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भारत के मार्स ओर्बिटर मिशन (एमओएम) ने पहले ही प्रयास में लाल ग्रह की कक्षा में स्थापित होने का नया इतिहास रचने के दूसरे ही दिन मंगल ग्रह की पहली तस्वीरें भेजी. एमओएम ने मंगल ग्रह तक पहुंचने के लिए नौ महीनों में 6.5 करोड़ किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय की है. मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला भारत एशिया का पहला और दुनिया चौथा देश बन गया है.

10. चंद्रयान -1, चांद पर भारत का पहला मिशन.

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22 अक्टूबर, 2008 श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-1 को रवाना किया गया था. इस तरह भारत चंद्रमा की सतह पर यान भेजने वाला दुनिया का चौथा देश बना था. चंद्रयान का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह के विस्तृत नक्शे और पानी के अंश और हीलियम की तलाश करना था. चंद्रयान मिशन को भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की एक बड़ी सफ़लता के रूप में देखा जाता है. भारत ज़ल्द ही चंद्रयान-2 को भी अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में है.

11. इसरो ने सफ़लतापूर्वक अपने स्क्रैमजेट रॉकेट इंजन का परीक्षण किया.

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अमेरिका, रूस और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद भारत अत्याधुनिक ‘स्क्रैमजेट राकेट इंजन’ का सफ़ल परीक्षण करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है. भारत ने वायुमंडल की आॅक्सीजन का इस्तेमाल करते हुए इस इंजन का प्रक्षेपण किया है. इससे प्रक्षेपण की लागत कई गुना कम हो सकती है और हवा से आॅक्सीजन लेने वाले इंजन डिजाइन करने के इसरो के प्रयास में मदद मिल सकती है.

12. ‘इसरो’ द्वारा विकसित ‘स्पेस कैप्सूल रिकवर प्रयोग मिशन’.

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा श्रीहरिकोटा से 10 जनवरी, 2007 को स्पेस कैप्सूल रिकवरी एक्सपेरिमेंट या आमतौर पर स्पेस कैप्सूल रिकवरी-1 शुरू किया गया था. इसका प्रक्षेपण तीन अन्य उपग्रहों के साथ ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान C7 रॉकेट द्वारा किया गया था. वो पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करने से पहले 12 दिनों के लिए कक्षा में रहा. 22 जनवरी को बंगाल की खाड़ी में नीचे उतरा.

13. GSLV D-5 रॉकेट स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन टेक्नोलॉजी युक्त.

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अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान के लिये क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी इंजन के सफ़ल प्रयास के साथ ही भारत अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ़्रांस के बाद दुनिया का छठवां देश बन गया है जिसके पास स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन की व्यवस्था है. ये टेक्नोलॉजी भारी उपग्रहों को भूस्थिर कक्षा में स्थापित करने में मदद करेगी. इसरो ने 5 जनवरी, 2014 के GSLV D-5 द्वारा जीसैट-5 मिशन और 27 सितंबर, 2015 को GSLV D-6 द्वारा जीसैट-6 का सफ़ल प्रक्षेपण, स्वदेशी क्रायोजेनिक चरण के साथ जीएसएलवी का दूसरा सफ़ल प्रक्षेपण था.

14. इनसैट, एशिया-पैसिफ़िक क्षेत्र में सबसे बड़ी घरेलू संचार प्रणाली.

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भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्सैट) का पहला उपग्रह अप्रैल 1982 में छोड़ा गया था. इन्सैट इसरो द्वारा शुरू बहुउद्देशीय भू-स्थिर उपग्रहों की एक श्रृंखला है, जो दूरसंचार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और खोज और बचाव कार्य के लिए उपयोग होता है. 1983 में शुरु किया हुआ इनसैट, एशिया-पैसिफ़िक क्षेत्र में सबसे बड़ी देशीय संचार प्रणाली है. ये भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग, दूरसंचार विभाग, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, आकाशवाणी और दूरदर्शन चैनल का एक संयुक्त उद्यम है.

15. इंडियन रीज़नल नैविगेशन सेटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) भारत का ख़ुद का जीपीएस सिस्टम.

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भारत ने अब ख़ुद का नेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम विकसित कर लिया है. अब भारत को दूसरे देशों के नैविगेशन सेटेलाइट सिस्टम पर निर्भर नहीं होना पड़ता है. इस नैविगेशन प्रणाली से देश की सीमाओं सहित आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को मजबूती मिलेगी. इस जीपीएस सिस्टम से सुदूरवर्ती क्षेत्रों, पर्वतों, जंगलों आदि में छोटी से छोटी गतिविधियों पर भी नज़र रखी जा सकेगी. इसरो के इस “रडार” पर सब कुछ होगा. खास बात ये कि नक्सल प्रभावित इलाकों की सटीक मॉनीटरिंग में ये कारगर साबित होगा. दावा किया जा रहा है कि ये स्वदेशी प्रणाली अमेरिका की जीपीएस (ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम) प्रणाली से दस गुना बेहतर है.

इसरो के कर्मठ वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और लगन ने भारत को दुनिया के परमाणु संपन्न देशों की श्रेणी में खड़ा कर दिया है.