यूनाइटेड नेशंस की हर मीटिंग में कभी पाकिस्तान का साथ दे कर, तो कभी भारत के विरोध में खड़ा हो कर चीन कई बार हमारी महत्वकांक्षाओं के सामने रोड़ा बनता रहा है. वहीं दूसरी तरफ़, अरुणाचल प्रदेश समेत भारत के कई हिस्सों में चीन घुसपैठ भी करता रहा है. भारत पहले भी इसके ख़िलाफ़ कई बार अपनी आवाज़ उठाता रहा है. एक बार तो नौबत यहां तक आ गई थी कि भारत को थक-हार कर चीन के ख़िलाफ़ हथियार तक उठाने पड़े थे, जो इतिहास में 1962 इंडो-चीन की लड़ाई के रूप में दर्ज है. आज हम आपको 1962 की लड़ाई की कुछ ऐसी ही तस्वीरें दिखा रहे हैं, जिनमें युद्ध का खौफ़नाक मंज़र दिखाई पड़ता है.

बॉर्डर पर दो लद्दाखी बच्चे तख़्ती ले कर भारत के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते हुए.

15 नवम्बर 1962 में चीन की घुसपैठ के बाद तेज़पुर में इंडियन होम गार्ड के सदस्य हालातों से निपटने के लिए ट्रेनिंग लेते हुए.

इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं भी होम गार्ड में शामिल हुई.

दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए महिलाओं ने भी हथियार उठाये.

दुश्मनों से लोहा लेते वक़्त भी हिंदुस्तान ने इंसानियत का साथ नहीं छोड़ा और रिफ़्यूजियों को अपने यहां जगह दी.

चीन के साथ जंग लड़ रहे असम राइफल्स के जवानों के परिवार की एक तस्वीर.

जंग के दौरान तिब्बत से आये रिफ्यूजियों ने भी भारत में शरण ली.

अपने परिवार से बिछड़ चुका एक ऐसा ही शरणार्थी.

खौफ़ के साये में पलता बचपन.

रिफ्यूजियों की सलामती के लिए हिंदुस्तान की तरफ़ से बॉर्डर पर एक ट्रेन का भी बंदोबस्त किया गया.

बॉर्डर से दूर जाने की राह देखता एक परिवार.

जंग के इन हालातों के दौरान कई बच्चों ने भी इस दुनिया में कदम रखा.

युद्ध के लिए तैयार भारतीय जवान.

युद्ध की वीभत्स परिस्थितियों से निपटने के लिए महिलाओं को भी तैयार किया गया.

युद्ध के लिए हथियारों को चलाने का अभ्यास करते सिपाही.

दुर्गम क्षेत्रों में हथियारों का ज़खीरा पहुंचाते सिपाही.

खच्चरों पर लाद कर जवानों के लिए रसद की पूर्ति करते सिपाही.

दुश्मनों पर निशाना साधे हुआ एक जवान.

सिक्किम में भारतीय बॉर्डर की चिन्हित करते आर्मी ऑफिसर.

सरहद पर जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, रक्षा मंत्री वाई.बी. चव्हाण के साथ सीमा पर गए.