साल 2012 की बात है, उस समय WhatsApp धीरे-धीरे मश्हूर हो रहा था. ऐप पर Groups के ज़रिए लोग अपने पुराने दोस्तों-रिश्तेदारों से एक बार फिर जुड़ रहे थे. कुछ 7 WhatsApp Group का हिस्सा थे PhD के छात्र, अंकुश चोरमुले.

उन्होंने अपने दोस्त, अमोल पाटिल के साथ मिलकर सांगली में ही 40 किसानों का WhatsApp Group बनाया. अब तकरीबन 7 साल बाद इस छोटे से आईडिया ने महाराष्ट्र समेत 6 अन्य राज्यों के 5 लाख किसानों की ज़िन्दगी बदल दी है.

WhatsApp नया-नया आया था और आग की तरह फैल रहा था. मेरे गांव में बहुत से किसानों को कीड़े, कीटनाशक, ऑरगेनिक फ़ार्मिंग और ऐसे ही विभिन्न विषयों पर जानकारी चाहते थे. पढ़े-लिखे किसानों से वे इन समस्याओं के बारे में बातचीत करते. पर कोई इन समस्याओं को ऑनलाइन सुलझाने की नहीं सोच रहा था.
-अंकुश
2012 में ग्रुप बनने के बाद ही फ़ोन पर किसानों के लगातार Message आते. किसान कीड़े लगे पौधे, फसल की तस्वीरें भेजते और समस्या का समाधान मांगते. धीरे-धीरे किसान अपने दोस्तों को भी ग्रुप में जो़ड़ने लगे और ग्रुप के 100 सदस्य हो गए.
कुछ महीनों में ही दो लोगों द्वारा ग्रुप मैनेज करना नामुमकिन हो गया क्योंकि वहां काफ़ी लोग जुड़ गए. इसलिए हमने अपने जौसे अन्य लोगों को ढूंढना शुरू किया, जो किसानों की मदद कर सकें. ग्रुप्स को ज़िलों के आधार पर बांटा गया और हर ग्रुप के दो एडमिन थे.
-अंकुश

2014 में ग्रुप का नाम रखा गया, ‘होय आम्ही शेतकरी’ जिसका मतलब है ‘हां, हम किसान हैं’
किसान साथ मिलकर एक-दूसरे की समस्याओं को सुलझाते हैं. अंकुश और अमोल ने जो शुरुआत WhatsApp से की थी वो अब Facebook और Website तक जा पहुंची है.