फ़ैज़… वो शायर जिसने इश्क़ और क्रांति को एक पैमाने में रखा. जिसके लफ़्ज़ों ने सरकारों की नींदें उड़ाई और जिसे अपनी शायरी के कारण कारावास झेलना पड़ा.
हम दीवाने जो बिना किसी मय के भी इश्क़ का नशा नज़रों में लिये घूमते हैं, हमें फ़ैज़ की बड़ी ज़रूरत पड़ती है.
गाहे-बगाहे उन्हें न पढ़ो, तो ज़िन्दगी काफ़ी बेमतलब लगने लगती है. फ़ैज़ को समझना आसान है, इनके शेरों को हमने महंदी हसन की आवाज़ में सुना है, समझा है. आशिक़ी से भरपूर इनके शेरों में कभी नर्मी तो कभी क्रांति की लौ नज़र आती है.
13 फरवरी, 1911 को अंग्रेज़ शासित भारत के पंजाब में जन्मे फ़ैज़ बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गये. 1951 में सरकार गिराने के षड्यंत्र में शामिल होने के इल्ज़ाम के कारण जेल गये. 4 साल बाद रिहा तो हुए लेकिन कम्युनिस्ट सोच उनकी क़लम से निकलती ही रही.
जीवन उतार-चढ़ावों से भरा रहा, देश से बाहर भी किये गये,पर लेखनी के लिए नोबेल पुरस्कार के लिए Nominate किया गया. ये ख़बर सुनने के चंद रोज़ बाद ही 20 नवंबर 1984 को दुनिया को अलविदा कह दिया.
लेकिन उनकी लेखनी आज भी कई दिलों की धड़कनें बढ़ा देती है. आज नज़र करते हैं फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के 20 चुनींदा शेर जिनसे इश्क़ और सुख दोनों झलकते हैं:
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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का कौन-सा शेर आपको सबसे ज़्यादा पसंद है. ये हमें ज़रूर बताएं.