जब भी ‘आदर्श संतान’ की बात होती है, ज़ेहन में सिर्फ़ एक ही नाम आता है, श्रवण कुमार. रामायण के इस किरदार, अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा पर ले जा रहा था. यात्रा के दौरान ही राजा दशरथ, हिरण समझकर उसकी हत्या कर देते हैं.
जिस प्रकार श्रवण कुमार, अपने दृष्टिहीन माता-पिता को कंधे पर बैठाकर तीर्थ यात्रा पर निकले थे, उसी प्रकार हरियाणा के ये बेटे अपने माता-पिता को कंधे पर बैठाकर हरिद्वार की कांवड़ यात्रा पर निकले हैं.
पलवल के चार भाईओं ने पूरे देश के लिए अनोखा उदाहरण पेश किया है.
नवभारत टाइम्स के अनुसार, पलवल के फुलवाड़ी गांव से 32 लोगों को का एक समूह कांवड़ यात्रा पर निकला है. इसी ग्रुप के बंसीलाल, राजू, महेंद्र और जगपाल अपने 78 साल के पिता चंद्रपाल और 66 वर्ष की मां रूपवती को हरिद्वार से मनसा देवी तक ले गए.
रविवार को लोग इस अद्वितीय कांवड़ यात्रा को देखकर हैरान रह गए.
महेंद्र ने NDTV को बताया,
हमने आस-पास देखा है कि किस तरह बच्चे अपने मां-बाप के साथ दुर्व्यवहार करते हैं. हम युवा पीढ़ी को संदेश देना चाहते थे कि उन्हें अपने मां-बाप की इज़्ज़त करनी चाहिए.
पिता चंद्रपाल ने कहा,
हमें श्रवण कुमार के माता-पिता की तरह कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या नहीं है. हम सिर्फ़ समाज को एक अच्छा संदेश देना चाहते थे.
ये चारों भाई पिछले साल भी अपने माता-पिता को यात्रा पर ले गए थे.
महेंद्र ने आगे बताया,
पिछले साल ऐसा करने वाले सिर्फ़ हम थे, लेकिन इस साल हमने 4-5 अन्य परिवारों को भी ऐसा करते देखा. बदलाव आ रहा है.
हम आशा करते हैं इनसे सीख लेकर नई पीढ़ी अपने से बड़ों और माता-पिता के साथ सही व्यवहार करेगी.