नारी सशक्तिकरण, महिला सुरक्षा पर सालों से बात हो रही है. मौजूदा सरकार ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा भी दिया और लड़कियों की शिक्षा पर ज़ोर भी.


दुख की बात ये है कि ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही है.  

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यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फ़ंड (यूएनएफ़पीए) ने 2020 स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट के अनुसार, हर साल दुनिया में 142 मिलियन (14.2 करोड़) और भारत में 46 मिलियन (4.6 करोड़) लड़कियां लापता हैं. भारत में लैंगिंक भेद-भाव की वजह से ये लड़कियां लापता हो जाती हैं.


यूएनएफ़पीए का अनुमान है कि जन्म से पहले लिंग परिक्षण की वजह से 3 में से 2 लड़कियां लापता होती हैं. जन्म के बाद हर 3 में से 1 बच्ची की मृत्यु हो जाती है. 

लापता हुई 90% लड़कियां चीन (50%) और भारत (40%) की हैं.  

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भारत की Sample Registration System Statistical Report, 2018 के अनुसार, 2016-2018 का सेक्स रेशियो प्रत्येक 1000 लड़कों पर 899 लड़कियां पैदा हुईं.


भारत के 9 राज्यों (हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब और बिहार) का जन्म के बाद का सेक्स रेशियो 900 से कम है. 

यूएनएफ़पीए की रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि दुनिया में व्याप्त कई कुरीतियों को ख़त्म करने की राह में हम आगे बढ़ रहे थे पर कोविड-19 की वजह से हालात पहले की तरह हो सकते हैं.  

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भारत में सिर्फ़ बेटों की चाह में ही बेटियां नहीं मारी जातीं. लड़कियों का बाल विवाह भी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हो पाया है. कड़े क़ानून के बावजूद, नेशनल हेल्थ ऐंड फ़ैमिली सर्वे के डेटा के अनुसार, 2015-16 में देश में हर 4 में से 1 लड़की की 18 से पहले शादी कर दी गई. इस रिपोर्ट के अनुसार, 20-24 आयु वर्ग की 26.8% लड़कियों की 18 की आयु तक शादी कर दी गई थी.