2 अक्टूबर को हम सब गांधी जयंती के रूप मनाते हैं, लेकिन इस दिन हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी की भी जयंती होती है. वो अपने कार्यकाल के दौरान देश को कई संकटों से उबारकर विकास की राह पर ले गए. उनकी ईमानदारी, नेक नीयत और स्वाभिमानी छवि के चलते विपक्षी पार्टियां भी उन्हें सम्मान देती थीं और आज भी देती हैं. लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसे व्यक्ति थे, जो अपनी सादगी और देशभक्ति के दम पर देश के प्रधानमंत्री बने. 

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शास्त्री जी के बड़े बेटे अनिल शास्त्री ने एक बार एक इंटरव्यू में बताया था,

मैं अपने स्कूल के आख़िरी साल में था जब बाबूजी प्रधानमंत्री बने. इसके बाद ही हमने कार ली थी, वो भी कर्ज़ लेकर.

ऐसे ही कई और रोचक क़िस्से हैं, जो शास्त्री जी से जुड़े हैं:

1. जय जवान जय किसान की कहानी

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1964 में जब लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने, तब देश में खाने की चीज़ें विदेशों से आयात की जाती थीं. उस वक़्त देश PL-480 स्कीम के तहत नॉर्थ अमेरिका पर अनाज के लिए निर्भर था. मगर 1965 में पाकिस्तान से जंग होने के बाद देश में भंयकर सूखा पड़ा गया. इन हालातों से उभरने से के लिए शास्त्री जी ने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने का अनुरोध किया और हमें ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया.

2. 9 साल जेल में रहे

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देश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान लाल बहादुर शास्त्री को पहली बार 17 साल की उम्र में सहयोग आंदोलन के तहत जेल जाना पड़ा, लेकिन उस वक़्त वो नाबालिग थे इसलिए उन्हें छोड़ दिया गया. इसके बाद 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत ढाई साल के लिए जेल गए. फिर 1940 और 1941 से लेकर 1946 के बीच उन्हें जेल जाना. इस तरह वो पूरे नौ साल तक जेल में रहे.

3. आम लाने पर पत्नी के ख़िलाफ़ हो गए थे

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लाल बहादुर शास्त्री का व्यक्तित्व बहुत ही ईमानदार और देशभक्ति से भरा था. जब स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान वो जेल में थे, तो उनकी पत्नी किसी तरह से छुपाकर उनके लिए दो आम जेल में ले गईं. इस पर उन्होंने नाराज़गी जताते हुए अपनी पत्नी के ख़िलाफ़ धरना दे दिया. शास्त्री जी का मानना था कि जेल में क़ैदी अगर बाहर की चीज़ खाते हैं तो वो क़ानून की अवहेलना करना है. इसलिए उन्होंने अपनी ही पत्नी का विरोध कर दिया. इतना ही नहीं एक बार उन्हें जेल से बीमार बेटी से मिलने के लिए 15 दिन की पैरोल दी गई थी, लेकिन उनकी बेटी ने उनकी पैरोल अवधि पूरी होने से पहले ही दुनिया को अलविदा कह दिया तो वो अवधि पूरी होने से पहले ही जेल वापस चले गए.

4. जात-पात और दहेज के ख़िलाफ़ थे

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जात-पात के ख़िलाफ़ होने के चलते शास्त्री जी ने कभी सरनेम नहीं लगाया. शास्त्री उनकी उपाधि थी, जो उन्हें काशी विद्यापीठ से पढ़ाई के बाद मिली थी. इसके अलावा उन्होंने शादी में दहेज लेने से इनकार कर दिया था, उनके ससुर के बहुत ज़ोर देने पर उनका सम्मान करते हुए कुछ मीटर खादी ली थी.

5. महिलाओं को जोड़ा ट्रांसपोर्ट सेक्टर से

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लाल बहादुर शास्त्री ने महिलाओं को रोज़गार देने का भी काम किया. ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर के कार्यकाल के दौरान उन्होंने सबसे पहले महिलाओं को ट्रांसपोर्ट सेक्टर से जोड़ा, उन्हें बतौर कंडक्टर लाने की पहल की. इसके अलावा, प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए इन्होंने ही लाठीचार्ज की जगह उन पर पानी की बौछार करने का सुझाव दिया.

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आपको बता दें, 1965 में जब वो पाकिस्तान के साथ समझौता पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए ताशकंद गए थे तो उसके एक दिन बाद यानि 11 जनवरी 1966 को उनके हार्ट अटैक की ख़बर आई और उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. हालांकि, उनकी मौत पर आज भी एक संदेह बना हुआ है, जिसके चलते उनके परिवार ने उनकी मौत से जुड़े सभी दस्तावेज़ सार्वजनिक करने की मांग सरकार से की थी.