रिटायरमेंट के बाद जिस उम्र में लोग घर पर बैठकर आराम करना पसंद करते हैं. चेन्नई की रहने वाली 68 वर्षीय सुधा महालिंगम को उस उम्र में एडवेंचर करना पसंद है.
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एडवेंचर की शौक़ीन सुधा अब तक 65 देशों की यात्रा कर चुकी हैं. उनके पास 6 देशों के पासपोर्ट हैं. सुधा पूर्व में पत्रकार भी रह चुकी हैं.
दरअसल, सुधा के पति ब्यूरोक्रेट रह चुके हैं. जब उनके पति यूरोप की अलग-अलग जगहों पर तैनात थे, तो सुधा को यूरोप के कई देशों की यात्रा करने का मौका मिला था.
करीब 40 की उम्र तक सुधा को घूमने का मौका ही नहीं मिल पाया. पत्रकारिता छोड़ने के बाद उनको ‘इंस्टीट्यूट फ़ॉर डिफ़ेंस स्टडीज एंड एनालिसिस’ में एनालिस्ट की नौकरी मिल गई. इस दौरान सुधा को काम के सिलसिले में कई बार अकेले यात्रा करनी पड़ती थी. बस यहीं से उन्हें घूमने का चस्का लग गया.
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सुधा जब भी किसी देश की यात्रा पर निकलती हैं, वो पहले से ही सब कुछ प्लान करके चलती हैं. सुधा सेफ़्टी को देखते हुए ट्रिप के दौरान पांच सितारा होटल ही बुक करती हैं. इस दौरान वो हमेशा अपने साथ स्टैंडबाय के तौर पर एक ड्राइवर भी रखती हैं.
सुधा ने अपनी पहली सोलो ट्रिप साल 1996 में की थी. इस दौरान वो 32 दिनों की यात्रा पर कैलाश मानसरोवर गयीं थी.
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सुधा आज भी अपनी उस यात्रा को याद करते हुए कहती हैं कि ‘उस वक़्त मेरा सबसे छोटा बेटा सिर्फ़ 5 साल का था. जब मैं 32 दिनों तक उससे दूर थी वो घर पर हर रात मेरी साड़ी से लिपटकर सोता था. मेरे इन्हीं अनुभवों ने मुझे मजबूत बनाया. इससे मुझे ये जानने में मदद मिली कि मैं अकेले कहीं भी जा सकती हूं.
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चाहे वो कश्मीर घाटी में सेना के जवानों के साथ आतंकी क्रॉसफ़ायर का सामना करना हो या फिर रात अजनबियों के साथ यात्रा करना. उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में हर डर का सामना कर लिया है. वो अब किसी भी चीज़ से नहीं डरतीं.
सुधा ने पिछले दो दशकों में अपनी यात्राओं के दौरान पहाड़ों में ट्रैकिंग करना, समुद्रों को एक्सप्लोर करना, भीड़-भाड़ वाली सड़कों से गुजरना, होस्टल्स में रात गुजरना सब कुछ किया. इस दौरान उन्होंने दुनिया भर में कई दोस्त भी बनाए.
सुधा महालिंगम कहती हैं कि इन यात्राओं के दौरान मुझे कई तरह के लोग मिले. हर इंसान से मैंने कुछ न कुछ सीखा. असल में ज़िंदगी कैसे जी जाती है ये भी मैंने लोगों से ही सीखा.