जीवन यात्रा में व्यक्ति विशेष जब अपने वजूद के हिसाब से ज़िन्दगी को जीने के पहले चरण पर पहुंचता है, तो उसे एहसास होता है कि वो जो भी आज तक करता रहा है, मात्र एक संयोग या केवल विवशता थी. आस-पास के माहौल ने उसके लिए वो परिस्थितियां खड़ी करी, जिसकी वजह से उसे सोचने या समझने की ज़रुरत या वक्त ही नहीं मिला.

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सभी जिवांशों को यह संयोग नहीं मिल पाता, जिसकी हम आज बात करने वाले हैं. लेकिन कुछ ख़ास जिन्हें कुदरत ने चुना होता है, वो इस एहसास को छू जाते हैं. यह एहसास है, आत्मा की आध्यात्मिक जागृति का.

जीवन यात्रा में आप जीते चले जाते हैं, लगातार हो रही घटनाओं से गुजरते रहते हैं. जो गुजर जाता है उसे वापिस जाकर पलटने का अधिकार आपको नहीं मिलता है. कुछ लोग इन सब के बीच अचानक जीवन में कुछ ऐसे परिवर्तन महसूस करने लगते हैं, जो उन्हें जीवन यात्रा में भौतिक सीमाओं से बाहर ले जाते हैं. यह परिवर्तन व्यक्ति विशेष के जीवन को पूरी तरह से बदल देते हैं. अचानक से आपको योग और ध्यान में रुचि महसूस होने लगती हैं.

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धार्मिक कार्यशालाओं में जाना मन को सुहाने लगता है. नये-नये ज्ञान से जुड़ी किताबें पढ़ने में आनन्द आने लगता है. कुछ विशेष शख्सियतों की बातों को ज़्यादा तवज्जों देने की आदत होने लग जाती है. ऐसे में आप अपने आपको बेहतर और विस्तृत रूप में देखने लगते हैं. शरीर और आत्मा अब आध्यात्मिक पथ की ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगते हैं. इस रास्ते पर शुरुआत में भावनाओं के ज्वार–भाटे आते रहते हैं. कभी मन अचानक से उत्तेजित महसूस करने लगता है, तो कभी एकदम शान्त भाव में चला जाता है. मन अधिकतर समय शंकाओं से घिरा हुआ रहने लगता है.

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ऐसा महसूस करने वाले आप या कोई भी और दुनिया का एकमात्र शख्स नहीं हैं. जीसस, बुद्ध और मुहम्मद साहब भी इन्हीं रास्तों से गुजरे थे. इन सब महात्माओं ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा में एक ऐसा चरण देखा था, जहां पूरे जगत को नहीं पता था कि तत्कालीन समय में वो कहां थे और क्या कर रहे थे.

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वो सभी अपनी गहराइयों में उतरे और पहले से काफ़ी मज़बूत बन कर बाहर निकले. जितना गहरा आप उतरते जाते हैं, अपने आप को सत्य के उतना ही नजदीक पाते हैं. उसके बाद आप चाहे अमेरिका जैसे बड़े शहर के भीड़-भरे चौराहे पर खड़े हों या किसी भयानक जंगल की निर्जन गुफा के अंदर हों, आपके अनुभव और विचार एक समान रहते हैं.

सरलता से जटिलता के रास्तों पर गुजरते हुए अन्तिम मोड़ पर मिलने वाली स्थिरता के सफ़र में एक शख्स निम्न रास्तों से होकर गुजरता है.

1. आपका मस्तिष्क विचार शून्य महसूस करने लगता है

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जब तक कोई ऐसा काम न करना पड़े, जिसमें आपको मानसिक संतुलन की ज़रुरत न पड़े, तब तक आपको इस बात का पता ही नहीं चलता है कि आपके दिमाग में कुछ नहीं बचा है. अचानक से आप अपने आपको सबसे नीरस इंसान समझने लगते हैं. किसी भी काम को करते-करते आप अचानक से स्थिर हो जाते हैं और आपको एहसास होता है कि काफ़ी देर से आप किसी ध्यान की अवस्था में जा चुके थे. अचानक से हुए इस एहसास से आपका मन खीझ-सा जाता है, आपका मन अस्थिर हो उठता है.

2. आप पूरी दुनिया से अपने आपको अलग कर लेते हो और आपको इस बात से कोई फर्क भी नहीं पड़ता

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भौतिक संसार से जुड़े आकर्षण आपको फीके लगने लगते हैं. आप उस मुसाफ़िर की तरह महसूस करने लगते हैं, जो रेगिस्तान में कहीं खो गया है. संसार से जुड़े रहने की सारी वजह और तृष्णाएं समाप्त हो चुकी होती हैं. इन सब के पीछे आधार है आपके मस्तिष्क का शून्य में चले जाना. कुछ होने और न होने की मुख्य आधारशिला हमारा दिमाग ही है, जो अब हमारे नियन्त्रण से बाहर जा चुका होता है. ऐसे में सबसे ज़रुरी है अपने आप को इस बेचैन करने वाले भाव को हवा में स्वतंत्र बहने वाले पत्ते की तरह बहने देना. जो हो रहा है, उसे होते हुए देखते रहो.

3. विचारों और बेचैन एहसासों पर बेवजह सवार हो जाना

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कभी-कभी बहुत हल्का महसूस हो रहा होता है, तो अगले ही पल आपको अपने दिमाग पर एक अनचाहा बोझ सवार नज़र आता है. शरीर की हर एक कोशिका आपसे कुछ कहना चाहती है. ऐसे में आप किसी से सहायता मांगने के काबिल भी नहीं रह जाते हैं. दरअसल हकीकत तो यह है कि आपको किसी बाहरी सहायता की वाकई में कोई ज़रुरत ही नहीं होती है. शरीर और आत्मा के अंदर एक समन्वय स्थापित करना ही अपनी सहायता करने के लिए काफ़ी है. वैसे भी अपने साथ हो रहे इन परिवर्तनों को आप शब्दों में बांध कर किसी को नहीं बता सकते. दुनिया में गिने-चुने लोग ही होते हैं, जो इस एहसास से गुजर पाते हैं. जिन्होंने इस परिवर्तन को अपने अंदर महसूस किया, उन्होंने इसके बारे में किसी को कभी कुछ बताया नही. ऐसे में शंकाओं के बादलों में घिरने की कोई ज़रुरत नहीं होती है. उन्हें एक-एक करके, स्वत: ही बरस जाने दो.

4. निरन्तर गतिमान इस दौर में आपको अनंत आराम की दरकार महसूस होती है

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इस अवस्था में आप पर्याप्त आराम नहीं करते हैं, तो कभी न उतरने वाली थकान आपके कंधों पर सवार होने लगती है. जिस तरह एक मशीन को कुछ अन्तराल बाद रिबूट करने की ज़रुरत होती है, वही अवस्था आपके साथ घट रही होती है. ऐसे में आप कुछ भी सही से नहीं कर पाते हैं. सबसे ज़रुरी होता है, अपने आंतरिक तन्त्र को नियन्त्रण में रखना. अपने आप को थका हुआ समझने से ज़्यादा फोकस अपने आप को आराम देने का काल है ये.

5. यह समय है अपने आप को एक अलग शारीरिक अवस्था में देखने और महसूस करने का

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इस स्तर पर आकर आप अपने आप को आज़ाद महसूस करने लगते हैं. ऐसा लगता है जैसे स्मॉल साइज़ की शर्ट पहनने वाले किसी बंदे ने एक्स्ट्रा लार्ज़ साइज़ का शर्ट पहन लिया हो. अपने शरीर के साथ अब आप ज़्यादा उदार सम्बन्ध बनाने और समझने लगते हैं.

6. सोना भी किसी रोमांच से कम नहीं लगता है

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अचानक आपको ऐसे सपने आने लगते हैं, जो किसी रहस्यमयी दुनिया की सैर पर आपको ले जाते हैं. आपको लगता है इन सपनों की कहानियों पर तो एक बेहतरीन किताब लिखी जा सकती है, लेकिन जब आपकी नींद खुलती है, तो आप खाली हाथ होते हैं. कभी-कभी बिना किसी सपने वाली नींद के भी आपको लगता है, आप रात भर किसी अनजान सैर पर थे. इन सबसे जब सोकर उठते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे कभी सोये ही नहीं थे.

7. अपने सांसारिक कर्तव्यों और कृत्यों के परिणामों के प्रति आपको कोई ज़िम्मेदारी महसूस नहीं होती

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जीवन के उन उद्देश्यों जिनके लिए आप अभी तक जी रहे थे, आप निष्क्रिय महसूस करने लगते हैं. दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं, आप इसकी परवाह करना छोड़ने लगते हैं. आप उस आनन्द की ओर मुखर होने लगते हैं, जहां पाने और खोने की कोई बंदिशें लागू नहीं होती हैं. आप अपनी इच्छाओं और अपने आन्तरिक विचारों में भेद करने लगते हैं. यह सब आपको एक समग्र सम्पूर्णता की ओर ले जाता है. जिस धरातल पर आप पहुंच कर डर और कृत्य के बीच भेद करके जीना सीख जाते हैं. अब आप चीज़ों को किसी सीमित तात्पर्य में देखने के बजाए विस्तृत दृष्टिकोण से देखने लगते हैं.

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इन सभी चरणों से गुजरने के बाद आप एक अलग इंसान बन चुके होते हैं. इस यात्रा में आप ही चालक, आप ही नियंत्रक और आप ही दर्शक होते हैं. आपकी पहचान अब उसके साथ जुड़ चुकी होती है, जिसकी वजह से तारे टिमटिमाते हैं, जिसकी वजह से पृथ्वी घूमती है. आपके ‘मैं’ में अब आप अकेले नहीं रह जाते, पूरा ब्रह्मांड इसमें समाहित हो चुका होता है.

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इस आध्यात्मिक जागृति के दौरान आप जिन उतार-चढ़ावों से गुजरते हैं, वो आपको कई बार अवसाद की तरफ़ खींचने की कोशिश करते हैं. यहां पर कुछ न करना, कुछ करने से बेहतर साबित होता है. विवेक, धैर्य, संयम और अपनी अंतरात्मा की विश्वस्त आवाज़ ही आपको इन सब दुविधाओं का सामना करने में मदद करती है. इसके अतिरिक्त कुछ भी अन्यथा करना आपको चिरअवसाद की अवस्था में पहुंचा सकता है.

यह यात्रा धैर्य और विश्वास की यात्रा है, इसे पार करने के बाद आपको किसी फ़रिश्ते द्वारा आपकी ज़िन्दगी में चमत्कार किये जाने या किस्मत के बेहतर या बुरी होने की सभी दुविधाएं खत्म नज़र आने लगती हैं. आपको सब कुछ शांत और सरल लगने लगता है.