अगर दिल में कुछ करने का जुनून हो तो उम्र मायने नहीं रखती. अगर आपके अंदर किसी काम को करने का जुनून है तो फिर मंज़िल आसान हो जाती है… 

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले के पसालत गांव की रहने वाली 76 वर्षीय प्रभा देवी इसका सटीक उदाहरण हैं. प्रभा देवी आज सिर्फ़ अपने गांव के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए मिसाल बन चुकी हैं. पिछले कुछ सालों में ये बुज़ुर्ग महिला ने 500 से भी ज़्यादा पेड़ लगाकर अपने गांव में ही एक ख़ूबसूरत जंगल तैयार कर चुकी हैं.

दरअसल, 16 साल की छोटी सी उम्र में ही प्रभा देवी शादी हो गयी थी. कम उम्र में परिवार की ज़िम्मेदारियों के बावजूद प्रभा देवी ने अपने गांव को प्राकृतिक रूप से सुन्दर बनाने की ठान ली थी. इस मिशन में उनके परिवार ने उनका बखूबी साथ निभाया.

आज प्रभा देवी की कोशिश की वजह से ही पसालत गांव किसी टूरिस्ट प्लेस से कम नहीं लगता. पूरे गांव के साथ-साथ उन्होंने अपने घर पर भी तरह-तरह के फ़ल, फ़ूल और पेड़ लगाए हुए हैं. इस उम्र में भी प्रभा देवी को जब भी मौका मिलता है वो गांव के आस-पास पेड़ लगाती रहती हैं.

प्रभा देवी के पोते अतुल सेमवाल का कहना है कि दादी को अपने गांव से इतना लगाव है कि वो कभी भी पूरे एक दिन के लिए गांव से बाहर तक नहीं जातीं हैं. 25 वर्षीय अतुल पिछले कुछ सालों से जॉब के लिए देहरादून में रह रहे हैं.

अतुल बताते हैं कि, जब दादी शादी के बाद गांव में आई थीं तो उन पर एक बड़े परिवार की ज़िम्मेदारी थी. सुबह जल्दी उठना, पहाड़ी रास्तों से पानी भरकर लाना, गाय-भैंसों के लिए चारा लाना आदि उनके रोज़मर्रा के काम हुआ करते थे. लेकिन इन सब कामों के बीच भी वो कभी पेड़-पौधे लगाना नहीं भूलती थीं. घर से शुरुआत करते हुए वो आज पूरे गांव में सैकड़ों पेड़ लगा चुकी हैं.

आज तक मैंने दादी को कभी भी खाली बैठे हुए नहीं देखा है, वो कुछ न कुछ करती ही रहती हैं. इस उम्र में भी वो सुबह 5 बजे उठ जाती हैं, अपने सभी काम भी ख़ुद ही करती हैं. हमारे पूरे घर में सबसे ज़्यादा दादी की ही आवाज़ आती है उन्हें इस तरह ख़ुश देखकर हमें भी एनर्जी मिलती है.

ये प्रकृति के प्रति उनका निःस्वार्थ प्यार ही है कि उन्होंने आज तक किसी भी पेड़-पौधे को जड़ से नहीं उखाड़ा. जब कभी भी जानवरों के लिए चारा या घास की ज़रूरत पड़ती है वो उसे पेड़-पौधों को जड़ से नहीं काटती. उनकी सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि उन्होंने आज तक जो भी बीज लगाया उसमें से पौधा ज़रूर निकला है.

गांव में रुद्राक्ष और केसर के पेड़ भी मिल जायेंगे 

प्रभा देवी ने अपने गांव में जो भी पेड़ लगाए हैं वो प्राकृतिक रूप से बेहद लाभदायक ही हुए हैं. गांव के आस-पास कई ऐसे पेड़ हैं जिनकी लकड़ी से फ़र्नीचर बनाए जाते हैं. यहां पर उत्तराखंड के प्रमुख फ़लों में से एक काफ़ल के पेड़ भी मौजूद हैं. इसी तरह रुद्राक्ष और केसर के पेड़ हर जगह नहीं होता लेकिन प्रभा देवी ने के गांव में आपको ये पेड़ भी मिल जायेंगे.

फलों को बाज़ार में नहीं बेचतीं 

प्रभा देवी ने अपने घर के बड़े से बगीचे में तरह तरह के फलदार पेड़ भी लगाए हैं. लेकिन वो फलों को कभी भी बाज़ारों में नहीं बेचतीं, बल्कि अपने आस-पड़ोस के लोगों में बांट देती हैं. जबकि गांव के चारों ओर लगे पेड़ों के फल स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के लिए होते हैं.

प्रभा देवी की इस कोशिश के चलते आज गांव के लोगों की रोज़मर्रा की कई ज़रूरतें पूरी हो रही हैं. प्रभा देवी साथ ही इस बात का भी ध्यान रखती हैं कि उनका जंगल तस्करों के हाथों से बचा रहे. वे ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज जैसे अंग्रेजी शब्द भले ही न समझती हों पर उन्हें पता है कि अपने पर्यावरण को बचाना आज हमारी प्राथमिकता है.

आज के दौर में पहाड़ी इलाकों में जहां लगातार पेड़ कट रहे है और जंगल कम होते जा रहे हैं. वहीं प्रभा देवी लोगों के सामने एक उदाहरण बनकर सामने आई हैं.