भारत में आज गाय एक राजनीतिक मुद्दा बन चुकी है. कई ऐसी घटनाएं हुईं, जहां गायों की तस्करी के शक़ में भीड़ ने लोगों की जान तक ले ली. कई लोग गाय को माता का दर्जा देते हैं, फिर भी 78 वर्षीय गोपी चंद राठी की अपनी गाय ‘भोली’ को वापस पाने की उम्मीद टूटती जा रही है.
गोपी चंद ये भी नहीं जानते कि उनकी गाय ज़िन्दा भी है या नहीं. पूर्वी दिल्ली के शहादरा के रहने वाले गोपी चंद की गाय को 2010 में MCD वाले ले गए थे. उनसे कहा गया था कि दिल्ली में मवेशी रखना वर्जित है.
उस दिन के बाद से वो भोली के लिए दर-दर भटके, उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में MCD के ख़िलाफ़ केस तक किया. MCD ने उनसे कहा था कि दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स होने वाले हैं, इसलिए यहां जानवर नहीं रह सकते. भोली को वापस पाने के लिए गोपी चंद के अब तक के सारे प्रयास विफल रहे.
हर साल वो अपने बेटे सुरेंद्र के साथ गौशाला में भोली से मिलने जाते थे, हर साल वो और कमज़ोर होती जा रही थी. भोली Holstein Friesian ब्रीड की गाय थी, जो एक दिन में 15 लीटर तक दूध देती है. वो उसे मोहाली से 45,000 रुपये में ख़रीद कर लाये थे.
चार साल तक वो लगातार गौशाला जाते रहे और भोली को वापस लाने की कोशिश करते रहे. उन्होंने कोर्ट से ये तक कहा कि अगर दिल्ली में उन्हें मवेशी रखने की इजाज़त नहीं है, तो वो अपनी गाय को उत्तर प्रदेश स्थित अपने गांव भी भेज सकते हैं. कोर्ट ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी और केस को डिसमिस कर दिया. वो 2014 आखरी बार भोली से मिले थे.
सुरेन्द्र बताते हैं कि वो फ़ाइन भरने को भी तैयार थे, फिर भी MCD ने उनकी गाय नहीं लौटाई. वो सुप्रीम कोर्ट तक जाने की सोच रहे थे, लेकिन उनके पिता ने उम्मीद छोड़ दी थी.
जब वो 2016 में गौशाला गए, तो भोली उन्हें वहां नहीं मिली. कई बार पूछने के बाद भी उन्हें कोई जवाब नहीं दिया गया. ये घटना दिखाती है कि असल में प्रशासन को मवेशियों की कितनी फ़िक्र है.