वर्तमान में पूरी दुनिया में किसी भी गुनहगार को मिलने वाली सज़ा उसके अपराध के हिसाब से तय होती है. मगर एक वो दौर भी जब राजाओं और उसके पहले के समाज में ऐसा नहीं था. तब अपराधी को सज़ा देने के बेहद विचित्र तरीके होते थे, ऐसे तरीके जो आपका सिर चकरा दें.
एक होता है मारना, फिर होता तड़पा-तड़पा कर मारना फिर आती हैं ये 8 सज़ाएं
1. Scaphism

इस मौत की सज़ा में दोषी को नंगा करके एक ऐसे बक्से में बंद कर दिया जाता था, जिसमें उसके हाथ, पैर और सिर फंसे हुए होते थे. इसके बाद उसे ज़बरदस्ती ढेर सारा दूध और शहद पिलाया जाता था जब वो मल त्याग करता था, जिसे मक्खी और कीड़े खा जाते थे. दूध और शहद पिलाने की प्रकिया चलती रहती थी और व्यक्ति अनुमानत: 17 दिन के बाद मर जाता था.
2. The Oubliette

दोषी को एक ऐसी जगह पर बंद कर दिया जाता था, जहां न वो सीधे खड़ा हो सके और न ही सीधे लेट सके. उस स्थिति में उसे भूखे प्यासे मरने के लिए छोड़ दिया जाता था.
3. आग में पकाना

हाथ-पैर बांध कर व्यक्ति को आग के ऊपर लटका दिया जाता था लेकिन उसे आग से जलाया नहीं जाता था. आग और व्यक्ति के बीच मात्र उतनी दूरी होती थी, जिससे वो जले नहीं, बल्कि धीरे-धीरे पकने लगे और भुन जाए.
4. शीशे का रॉड

कहीं-कहीं गद्दार को सज़ा देने के लिए उसके गूदा द्वार में सीशे का रॉड घुसा कर उसे हथौड़ी मार कर तोड़ दिया जाता था.
5. The Spider

वो औरतें जो वैवाहिक इतर संबंध रखने की दोषी होती थी उन्हें ये सज़ा दी जाती थी. एक गोल ढांचे में चार गर्म काटें लगे होते थे जो महिला के स्तन पर फंसा कर खींच दिए जाते थे. अगर महिला के बच्चे होते थे तो उसके सामने बच्चों को रखा जाता था ताकि ख़ून के छीटे बच्चों के चेहरे पर पड़ें.
6. Pear Of Anguish

इसमें दोषी के गुदा द्वार में एक छातानुमा मशीन घुसा कर खोल दिया जाता था, बाद में उसे घुमा कर व्यक्ति को भीतर से ज़ख़्मी कर दिया जाता था. अत्यधिक ख़ून के रिसाव से व्यक्ति की मौत हो जाती थी.
7. The Rack

ये एक ऐसा यंत्र होता था जिसके द्वारा दोषी के हाथ-पैर को खींच कर शरीर से उखाड़ देते थे.
8. Screecher

इस तरीके को प्रथम विश्वयुद्ध के समय तक भी इस्तेमाल किया जाता था. दोषी के कान के पास एक मशीन लगा दी जाती थी, जिससे बहुत तेज़ आवाज़ निकलती हो. मशीन के शुरु होते ही व्यक्ति के कान का पर्दा फट जाता था और थोड़ी और देर बाद वो अपना मानसिक संतुलन खो देता था.
आज के सभ्य समाज में ऐसी सज़ा की कल्पना भी नहीं की जा सकती है और तब इस तरह की सज़ा को देखने के लिए सामूहिक रूप से लोग इकट्ठे होते थे.