अगर आप रेलवे स्टेशनों या बस स्टैंड्स पर बैठे हैं और टाइम पास करना मुश्किल हो रहा है, तब आपको लगता है कि कोई किताब ले आनी चाहिए थी. लोग अब सिर झुका कर अपने मोबाइल में लग जाते हैं, पर किताबों के साथ-साथ किसी का इंतज़ार करना बेहद खूबसूरत होता है. इसी समय को भुनाने के लिए गुवाहाटी के 50 वर्षीय अनूप खन्ना ने एक अनोखा काम किया है. जनवरी 28 को राज्य में साहित्य सम्मेलन में भाग लेने के दर्ज़न भर कलाकार और लेखक आये थे. खन्ना ने सबके पढ़ने की आदत को देखते हुए बस स्टॉप पर ही एक लाइब्रेरी खोल दी.
एक आउटडोर एडवरंटाईजिंग कंपनी में काम करने वाले अनूप ने बताया कि हम अब एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां लोगों का सबसे ज़्यादा समय मोबाइल फ़ोन और गैजेट्स में ही बीतता है. हम एक ऐसी जगह ढूंढ रहे थे, जहां हर पीढ़ी के लोग आते हों और अपना थोड़ा वक़्त भी बिताते हों. अनूप को इस सोच को आकार देने के लिए बस स्टॉप से बेहतर जगह नहीं मिली. उन्होंने वहीं एक बोर्ड लगा दिया कि ‘दुनिया उन्हीं की होती है, जो पढ़ पाते हैं’. बस स्टॉप को अनूप ने थोड़ा अलग बना दिया है, उन्होंने किताबों को रखने के लिए कई शेल्फ़ लगवाए हैं और पढ़ने जैसा माहौल बनाने के लिए इसे रंग-बिरंगी लाइट्स से सजा दिया. नियम कुछ ऐसा है कि आप पढ़ने के लिए यहां से कोई भी किताब उठा कर ले जा सकते हैं, पर उसकी जगह आपको कोई और किताब रखनी होती है. ऐसे ही लाइब्रेरी में किताबें एक्सचेंज होती रहती हैं और लोगों को किताबों में वैरायटी भी मिलती रहती है.
हमने इस लाइब्रेरी में 200 से 250 किताबें रखी थीं, कुछ ही दिनों में सारी किताबें बदल गयीं. ये हमारे सफ़ल होने का बहुत ही बड़ा रिस्पांस था. एक हाउसवाइफ़ रेसिपी वाली किताब लाकर यहां रख रही थी और एक छोटा बच्चा अपनी राशी वाली किताब लाकर यहां जमा करता है. कुछ ऐसे लोग भी आते हैं, जिन्हें पढ़ना नहीं आता, पर वो देख कर खुश होते हैं.- अनूप खन्ना
इस आइडिया के पीछे 16 साल के सबसे छोटे नॉवेलिस्ट ऋषि राज सेन का भी दिमाग है. उनका कहना है कि वो लोग आश्वस्त नहीं थे कि ये आइडिया काम करेगा या नहीं. पर नतीजा सबके सामने है. ये कोई व्यापार नहीं है, ये महज एक कोशिश है कि लोग बिना एक पैसा खर्च किये मनचाही किताबों को पढ़ सकें. इन लोगों से पूछने पर कि क्या बस स्टॉप को लाइब्रेरी बनाना लीगल है, तो उनका जवाब था कि हमने तो बस एक कोशिश की थी, किसी ने अब तक कोई ऑब्जेक्शन नहीं दिखाया.