अगर डर न भी लगे तो बोल-बोल के लोग डरा देते थे. परिक्षाओं के समय बच्चों का खेलना, आराम करना, हंसना-बोलना, घूमना-फिरना सब बंद हो जाता था. मोहल्ले के अधिकतर घरों की यही कहानी थी.
परीक्षाएं चल रही हैं, ऐसे में हमने सोचा कि कुछ बातें परिक्षार्थियों से करना ज़रूरी है.
Hello!
कैसे हो? नींद आ रही है या किताबों को ही तकिया बना लिया है? वैसे Maths, Physics, Chemistry, Biology की मोटी-मोटी किताबें अच्छे तकिए का काम करती थी. मम्मी ने काजू-बादाम, नमकीन का डिब्बा पढ़ाई के टेबल के पास ही रख दिया होगा. खाना भी कमरे तक पहुंचता होगा, ताकी एक भी मिनट बर्बाद न हो.
शर्मा जी के बेटे को देख हमेशा टॉप करता है… मिश्रा जी की बेटी 15 घंटे पढ़ती है… ऐसे वाक्य सुन-सुन कर कान पक गए होंगे पर उन दोनों से आगे निकलने की होड़ में तुम दिन-रात लगे हुए होगे.
पेपर अभी चल ही रहे हैं पर रिज़ल्ट की टेंशन तुम्हें अभी से हो रही है. एक-एक परीक्षा किसी युद्ध से कम नहीं लग रही है, न परीक्षा ख़त्म होने पर तुम्हें राहत मिल रही है. रिज़ल्ट फिर इंजीनियरिंग/मेडिकल में एडमिशन की टेंशन खाए जा रही होगी? परिक्षाएं ख़त्म नहीं हुई पर भविष्य के बारे में सोच-सोचकर ही दिल बैठा जा रहा होगा.
मनपसंद कॉलेज में दाख़िले को लेकर चिंताओं ने घेर रखा होगा. ये भी लग रहा होगा कि अगर ड्रॉप लेना पड़ा तो?
आज से कुछ साल पहले मैं भी तुम्हारी जगह पर थी, 10वीं-12वीं के बाद ही आगे की पढ़ाई संभव है. पर सच कहूं उस दौर में भविष्य की न ही चिंता थी और न ही परीक्षा का इतना डर था. कक्षा के सारे बच्चों को मैंने ऐसे ही देखा था. हां कुछ टॉपर्स को अपने मार्क्स की चिंता ज़्यादा होती थी, पर कभी किसी फ़ेल करने वाले को डरते नहीं देखा था.
न्यूज़ में पढ़ा कि Physics की परीक्षा में कुछ प्रश्न छूट जाने के कारण एक छात्र ने आत्महत्या कर ली है, अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. परिक्षा में फ़ेल होने का डर इतना ज़्यादा कि ज़िन्दगी ख़त्म कर दी? समझ ही नहीं आया कि आंखों के सामने से ये कैसी ख़बर गुज़री है.
मैं उस छात्र को कुसूरवार नहीं ठहरा रही, वो जिस भावना से गुज़रा होगा वो मैं या कोई और कभी नहीं समझ सकता. पर सवाल उठता है कि हमने परीक्षा को इतना बड़ा बना दिया है कि ज़िन्दगी उसके सामने छोटी लगने लगी है.
छात्रों, न ही ये परीक्षा दुनिया की पहली परीक्षा है और न ही आख़िरी. अगर इसमें पास नहीं भी हुए, नंबर कम ही आए तो इसका मतलब कहीं से भी ये नहीं है कि आप ज़िन्दगी की परीक्षा में फ़ेल हो गए. न ही ये आख़िरी मौका था आपकी जीत का.
तो इतनी टेंशन किस बात की? मम्मी के रोने की या पापा की डांट की? मम्मी-पापा ताना मारते हैं, हाथ उठाते हैं, आपको दूसरे बच्चों से कंपेयर करते हैं पर ये बात मत भूलिए कि आपको तकलीफ़ में वो कभी नहीं देख सकते.
रिज़ल्ट जो भी आएगा, आएगा पर याद रखना ये आख़िरी मौका नहीं है जो ज़िन्दगी फ़ालतू लगने लगे.