‘मैं और मेरा भाई शुभम सुबह एक साथ ही उठे थे. हमने चाय पी और वो अपने कमरे में चला गया. क़रीब 1 घंटे बाद जब उसके कमरे में गए, तो वो वहां नहीं था. उसके बाद से आज तक मैं उसे तलाश कर रही हूं.’ 

23 सितंबर 2018, ये वो तारीख़ है, जिसे शिखा आज भी याद करती है तो सिहर उठती है. सुबह के क़रीब 8 बज रहे थे. बाहर ज़ोर की बारिश हो रही थी, लेकिन किसी को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि बाहर हो रही बारिश एक बड़े तूफ़ान का इशारा है. शिखा को आज भी यक़ीन नहीं होता कि कैसे महज़ एक दिन पूरी ज़िंदगी को बदलकर रख देता है. कल तक और इस पल तक जहां सब ठीक था, वहां अचानक दुनिया खाली सी हो गई. 

‘मैं हैदराबाद से छुट्टियां बिताने घर लौटी थी. मां, पिता और भाई, बस छोटा सा ही परिवार है. सुबह मैं और मेरा भाई साथ ही उठे थे. शुभम और मैंने चाय पी और फिर वो ऊपर अपने कमरे में चला गया. तब तक मम्मी-पापा भी उठ गए.’ 

पापा ने कहा कि शुभम को बुला लो तो साथ ही सब चाय पी लेते. शुभम… शुभम… कहां हो? शुभम कमरे में नहीं था. उसका पर्स और फ़ोन भी पड़ा था. कहां गया होगा? नीचे आते हुए भी नहीं देखा? किसी काम से गया होता तो बता के जा सकता था, और फिर पैसे भी तो नहीं ले गया. 

न जाने कितने सवाल शिखा के दिमाग में अचानक ही कौंध उठे. कुछ बुरा ख़्याल आता तो सिर झटके से हिला देती. नहीं, कुछ नहीं हुआ होगा. भाई यहीं तक गया होगा. 

लेकिन शुभम के पिता बैचैन हो उठे थे. बार-बार वो घर के पास बने रेलवे फ़ाटक को देखे जा रहे थे. शायद अख़बार में सैकड़ों बार देखी धुंधली सी तस्वीरें उनके ज़हन में आ गईं थीं. कहीं शुभम ने ऐसा-वैसा तो कुछ नहीं कर लिया होगा. वो तुरंत फ़ाटक की तरफ़ दौड़ उठे. आस-पास के लोगों से पता करने लगे. शुभम 6 फ़ुट 5 इंज लंबा था. अगर यहां आया होता तो किसी की नज़र तो उस पर पड़ी होती. ट्रेन की पटरी पर देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी. कैसे देखें? आंखें चाह कर भी साफ़ नहीं देख पा रहीं थीं. पलकों पर पानी का भार बढ़ गया था. मन फ़फ़क उठा था. आंसुओं को इस कदर थाम रखा था कि हलक में चुभन बढ़ गई थी. 

 ‘हम सबका दिल धड़क रहा था, आंखों के आगे बार-बार अंधेरा छा रहा था. शुभम कहां होगा, ये सवाल खाए जा रहा था. उसे डिप्रेशन भी है, बिना दवा के वो क्या कर रहा होगा. कहीं उसने कुछ गलत कर लिया तो?’ 

शाम तक सब शुभम को तलाश करते रहे और फिर पुलिस के पास गए. लेकिन वो लोग 24 घंटे इंतज़ार करने की बात करते हुए बोले, अरे देखो कोई लड़की का चक्कर होगा. भाग गया होगा कहीं… 

 ‘नहीं, मेरा भाई मुझसे हर बात शेयर करता था. दादी के गुज़रने के बाद हम दोनों ही तो एक-दूसरे के सबसे क़रीब थे. लेकिन पुलिस इस बात को नहीं समझ पाई. मेरे बार-बार कहने पर भी उन्होंने एफ़आईआर दर्ज नहीं की.’ 

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सब यही सोच रहे थे कि आख़िर शुभम कहां जा सकता है. उसके तो दोस्त भी नहीं है. जबसे चंडीगढ़ से नौकरी छोड़कर आया है, तबसे वो परेशान रहता था. हां, चंडीगढ़ उसे बहुत पंसद था. शायद वहीं गया होगा. शिखा तुरंत ही चंड़ीगढ़ गई. शुभम जहां नौकरी करता था, जहां रहता था, जिस कॉलेज में उसने पढ़ाई की, सब जगह गई पर वो कहीं नहीं पहुंचा था. सड़क, बस अड्डे, स्टेशन जहां भी जाती, बस उसकी आंखे शुभम को ही ढूंढती रहती. शुभम की हाइट बहुत अच्छी थी. सड़क पर 6 फ़ुट से ऊपर कोई भी दिख जाता तो शिखा का दिल तेज़ी से धड़कने लगता. 

चार-पांच दिन बीत चुके थे, लेकिन उसकी कोई ख़बर नहीं थी. किसी रिश्तेदार ने आसपास के सीसीटीवी चेक करने की सलाह दी. पापा अपने एक दोस्त को लेकर लोगों के घर गए. एक सीसीटीवी में शुभम दिख गया. वो पैदल ही बस स्टैंड की तरफ़ जा रहा था. मगर वो अंदर नहीं गया. बाहर भी उसका कुछ पता नहीं चला. समझ नहीं आया कि आख़िर वो अचनाक कहां गायब हो गया. 

‘मैंने शुभम को तलाश करने के लिए हर तरीका अपनाया. सोशल मीडिया पर पेज बनाया, अख़बार में इश्तेहार दिया, जगह-जगह पोस्टर बांटे. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश तक गई. शिमला से एक फ़ोन भी आया. एक औरत ने मेरे भाई जैसे किसी को देखने का दावा किया. मैं तुरंत शिमला के लिए निकल गई. लेकिन शुभम का कुछ पता नहीं चला. मैंने हिमाचल के सभी जिलों में तलाश किया. हर जिले के एसपी से मिली, उन्हें ख़ुद पोस्टर बनवाकर थानों में बांटने के लिए दिए. मैं डेढ़ साल से यही कर रही हूं. पुलिस हर बार मदद की बात करती है, लेकिन कभी कुछ नहीं किया. कुछ किया होता तो शायद मेरा भाई आज मेरे पास होता. यहां तक एफ़आईआर दर्ज करने में पुलिस ने क़रीब एक साल लगा दिया था.’ 

शिखा का घर पर मन नहीं लगता है. घर के अंदर दाख़िल होते ही नज़रें ख़ुद-ब-ख़ुद ऊपर शुभम के कमरे को देखने लगती हैं. सीढ़ियां चढ़ने की हिम्मत नहीं होती. खाली कमरा मानो खाने को दौड़ता है. फिर भी शिखा कई बार उस कमरे में जाती है. शायद. शायद आज उसका भाई वहां बैठा मिल जाए. बिल्कुल उसी तरह जैसा वो शिखा को परेशान कर कमरे में भाग जाया करता था. हर पल किसी अनहोनी का डर लगा रहता है. कुछ गलत न हो गया हो ये सोचकर भी शिखा की रूह कांप उठती है. 

शिखा का डरना भी लाज़मी था. क्योंकि पंजाब में कुछ लोग गुमशुदा लोगों को पकड़ लेते हैं. उनको ड्रग्स देते हैं, मारते-पीटते हैं और जबरन खेतों में काम कराते हैं. बहुत से लोग पहले भी फंस चुके हैं. 

‘मैंने कई कहानियां सुन रखीं थीं. यहां केरल का एक लड़का ऐसे ही फंस गया था. सालों बाद उसे बचाया गया. शुभम भी कहीं ऐसे ही तो नहीं फंस गया होगा. ये सोचकर ही मैं कांप उठती हूं. शुभम की सेहत भी अच्छी है, ये लोग ऐसी ही लोगों को तो पकड़ते हैं. मैंने कई एनजीओ से मदद मांगी और ऐसी जगहों पर जाकर अपने भाई को ढूंढा.’ 

शिखा ने पुलिस को भी अपने भाई का हुलिया बता रखा था. जब भी कोई लावारिस लाश 6 फ़ुट से ज़्यादा लंबी होती, तो शिखा के पिता उसकी पहचान करने जाते थे. कोई एक्सीडेंट का केस होता था, तो किसी ने सुसाइड की होती थी. शिखा के पिता अपने बेटे शुभम को पाना चाहते थे न कि एक बेजान शरीर को. हर बार लावारिस लाश की पहचान करते वक़्त उनका दिल बंद सा पड़ जाता था. 

‘शुभम 6 फ़ुट 5 इंच लंबा था. फिर भी मैंने 6 फ़ुट का मार्ज़न ले रखा था. पुलिस वाले लंबे आदमियों के लिए अक़्सर छह फ़ुट ही लिख देते हैं. मेरे पिता कई बार लावारिस लाशों की पहचान करने गए. मैंने ख़ुद ऐसे कई मामलों की ऑनलाइन छानबीन की. लेकिन शुभम का कुछ पता नहीं चला.’ 

क़रीब डेढ़ साल से भी ज़्यादा का समय गुज़र चुका है. लेकिन अपने गुमशुदा भाई को एक बहन आज भी तलाश कर रही है. उसे उम्मीद है कि अगली राखी पर भाई उसके साथ होगा. इस बार राखी पर एक बहन को अपनी ज़िंदगी का सबसे कीमती तोहफ़ा मिलेगा. इस उम्मीद में शिखा एक शहर से दूसरे शहर भटक रही है. तमाम बुरे ख़्यालों के बावजूद अपने भाई को फिर से पाने की चाह कदम रूकने नहीं देती. उन्हें उम्मीद है कि शुभम आज नहीं तो कल ज़रूर मिल जाएगा. 

‘लॉकडाउन के कारण मैं अभी उसको तलाश करने नहीं जा पा रही हूं. जैसे ही लॉकडाउन खुलेगा मैं उज्जैन और पुष्कर में उसे तलाश करूंगी.’