‘अनेकता में एकता हिन्द की विशेषता’. विश्वप्रसिद्ध है ये कथन. विविधताओं का देश भारत. अलग-अलग धर्म, जाति, संप्रदाय के लोग मिल-जुलकर, प्रेम से रहते हैं.
मगर पिछले कुछ समय से हमारे समाज में प्रेम की जगह नफ़रत को ज़्यादा हवा दी जा रही है. कभी धर्म के नाम पर, कभी गाय के नाम पर, तो कभी बिना वजह ही. जहां कभी हमारी एकजुटता की मिसालें दी जाती थी, वहीं अब विश्वस्तर पर हमारे देश के हालातों पर प्रश्न उठाये जाते हैं.
नफ़रत के दौर में एक ख़बर आई है, अंधेरे में उजाले की किरण की तरह.
मिस्त्री, नज़ीम ‘राजा’ ख़ान पंजाब के एक गांव में शिव मंदिर बनाने में लगे थे. एक मुस्लिम होकर मंदिर बनाने में सहयोग कर रहे थे. 40 वर्षीय नज़ीम को बस एक बात अच्छी नहीं लगती थी, जिसके बारे में उसने BBC को बताया,
हमारे आस-पास कोई मस्जिद नहीं था, जहां जाकर नमाज़ पढ़ी जा सके. रिश्तेदार आते तब हमें और बुरा लगता.
नज़ीम ने अपने गांव, मूम के 400 मुसलमानों को एकजुट कर एक मस्जिद बनाने की सोची. पर ये लोग काफ़ी ग़रीब थे और ज़मीन ख़रीदने में समर्थ नहीं थे.
मूम गांव में ज़्यादातर मुस्लिम छोटे-मोटे काम जैसे Construction आदि कर गुज़ारा करते हैं. पर इस क्षेत्र में रहने वाले 4000 हिन्दू और सिखों की आर्थिक स्थिति बेहतर है.
18 महीने पहले, मंदिर बन जाने के बाद नज़ीम ने एक बहुत बड़ा कदम उठाया. मंदिर के प्रशासकों के पास जाकर नज़ीम ने कहा,
आप हिन्दुओं के पास अब एक नया मंदिर होगा. आपके पास पहले से भी एक मंदिर है. पर हम मुसलमानों के पास सजदा करने की कोई जगह नहीं है और न ही हमारे पास इतने पैसे हैं कि हम ज़मीन ख़रीद सकें. क्या आप अपनी ज़मीन का एक छोटा सा हिस्सा हमें देंगे?
एक हफ़्ते बाद नज़ीम को जवाब मिला. मंदिर के प्रशासकों ने, मंदिर के पास पड़ी 900 Square Feet खाली ज़मीन नज़ीम को देने का निर्णय लिया था.
नज़ीम की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था. इस निर्णय के 2 महीने बाद नज़ीम और दूसरे मिस्त्रियों ने मस्जिद बनाने का काम शुरू कर दिया.
इस काम में इलाके के सिख भी हाथ बंटा रहे हैं. ये मस्जिद एक गुरुद्वारे से लगकर ही बन रहा है.
जहां देश के कई इलाकों में धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर लोग एक-दूसरे से भिड़ रहे हैं और इंसानियत को तार-तार कर रहे हैं, वहीं मूम एक मिसाल है, मोहब्बत की.
यहां कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक स्थान पर बिना रोक-टोक के जा सकता है. गांव के गुरुद्वारे में गीता-पाठ का आयोजन भी किया जाता है. गुरुद्वारे के गियानी सुरजीत सिंह ने BBC को बताया,
गुरुद्वारा लोगों के मिलने-जुलने की भी जगह बन गई है.
मंदिर के काम-काज की देख-रेख करने वाले और पेशे से शिक्षक, भरत राम ने बताया,
हम क़िस्मतवाले हैं कि यहां कोई ऐसा नेता नहीं, जिसने धर्म या संप्रदाय के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिश की हो.
भरत का ये भी कहना है कि अगर नेता न भड़काएं, तो भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच भी नफ़रत न हो.
गांव के अधिकतर लागों का यही मानना है कि भाईचारा सर्वोपरि है. सांप्रदायिक भाईचारे का इससे अच्छा उदाहरण हो सकता है भला?
देश में जहां एक तरफ़ पश्चिम बंगाल का उदाहरण है, जहां धर्म के नाम पर मासूम ज़िन्दगियां बर्बाद हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ़ पंजाब का ये गांव हैं, जहां धार्मिक स्थान सभी के लिए खुले हैं. किसी के मन में किसी के लिए मैल नहीं. मंदिर बनाने वालों ने मस्जिद के लिए ज़मीन दी और मस्जिद गुरुद्वारे से लग कर बनाई गई.
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