पश्चिम के समुदाय समय के साथ काफ़ी तेज़ गति से आगे बढ़ते गये. आध्यात्मिकता के बजाय उन्होंने भौतिकता को अपने समाज में ज़्यादा तरजीह दी है. दूसरी तरफ़ मध्य और पूर्व के देशों में कुछ देशों ने धर्म की पट्टी आंखों पर लपेट कर समय की मांग को दरकिनार कर दिया, तो कुछ ने धर्म और आधुनिकता के मध्य सामंजस्य बनाने के रास्ते को चुना. हमारा देश भी इसी सामंजस्यता की डोर को थामें आगे बढ़ रहा है. हिन्दू ही नहीं मुस्लिम समुदाय में भी इस तरह के बीज अब नज़र आने लगे हैं.
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महाराष्ट्र के मुम्ब्रा में एक ऐसा ही मदरसा है, जहां पर धर्म के नियमों का पालन करते हुए विज्ञान की तालीम भी दी जाती है. यहां के नियम किसी हाई सिक्योरिटी जेल से कम नहीं हैं. ख़ास कर हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं के लिए.
इस मदरसे के हॉस्टल में रहने वाली किसी भी लड़की के घरवालों को मिलने के लिए एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. परिवार वालों को मुख्य दरवाजे पर बैठे मौलाना से इजाज़त लेनी होती है. उसके बाद मौलाना उनकी अर्ज़ी को आगे दरवाजे पर मौजूद वॉचमैन तक पहुंचाते हैं. यह दरख्वास्त वॉचमैन आगे जा कर महिला सिक्यूरिटी गार्ड से होते हुए टीचर तक पहुंचती हैं. इसके बाद टीचर छात्रा का नाम लाउडस्पीकर पर बोलता है. इसके बाद एक छोटे से केबिन में छात्रा को बुलाया जाता है. यहां शीशे की एक खिड़की के ज़रिये छात्राएं अपने घरवालों से बात करती हैं.
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यह सारी प्रक्रिया इस वजह से की जाती है ताकि छात्रा के परिवार का कोई भी सदस्य छात्राओं के ब्लॉक में प्रवेश ना कर पाए. यहां छात्र और छात्राओं के अलग-अलग ब्लॉक बने हुए हैं.
अल-जामिया अल-इस्लामिया नामक इस मदरसे में 800 लड़कियां पढ़ती हैं. यह मदरसा पिछले 25 सालों से चल रहा है. यहां अधिकतर बच्चे गरीब परिवारों से हैं. जिन बच्चों के पास फ़ीस नहीं होती, उनका एडमिशन मुफ़्त में किया जाता है.
यहां इस्लामिक विषयों के अलावा विज्ञान, गणित और कंप्यूटर की भी पढ़ाई करवाई जाती है. इसके अलावा पेंटिंग सिलाई-कढ़ाई की भी यहां क्लासेज यहां लगती है.
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प्रबंधन का कहना है कि हम हमारे बच्चों को दुनिया के सारे मुख्य विषय और भाषाएं पढ़ाते हैं, लेकिन इसके लिए अपने मजहब की अनदेखी नहीं करते. हिजाब में रह कर लड़की को कोई भी शिक्षा और पेशा हासिल करने की छूट है.
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इस परिसर में मोबाइल और टीवी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. यह नियम छात्र और छात्राओं के साथ-साथ अध्यापकों पर भी लागू होते हैं. थोड़े दिनों में यहां इस तरह की व्यवस्था की जाने वाली है, जिससे कि पुरुष टीचर माइक्रोफोन के जरिए एक निश्चित जगह से क्लास ले सकें.
मानव समाज एक के बाद एक रास्ते तय करते हुए आगे बढ़ता है. समय के साथ उसकी प्रवृति जितनी उदार रहती है, समय उसे उतनी ही सहजता से अपने सफ़र में शामिल कर लेता है.
Representative Feature Image Source: thehumanist