दुनिया में लोग कई चीज़ों और हालातों से डरते हैं. लेकिन कुछ डर, डर न रहकर फ़ोबिया बन जाते हैं. आपने लोगों के ऊंचाई का डर, पानी का डर और संकरी जगहों से डरते हुए सुना या देखा होगा, लेकिन क्या आपने कभी किसी को कॉफ़ी के बबल्स से डरते हुए देखा है?
इस डर को ट्रायोफ़ोबिया कहते हैं. दरअसल, इस फ़ोबिया में लोगों को छोटे-छोटे छेद के झुंड से डर लगता है. एक रिसर्च में इसकी नई वजह सामने आई है.
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इस स्टडी से पहले ये ये समझा जाता था कि लोगों में धीरे-धीरे गोल छेदों से घबरा जाने की प्रवृत्ति आ जाती है. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ऐसी आकृतियां कई ज़हरीले जानवरों, जैसे सांप, ऑक्टोपस आदि में पाए जाती हैं.
ब्रिटेन में University of Kent के टॉम कूफ़र की रिसर्च बताती है कि ये स्थिति किसी संक्रामक बीमारी के प्रति सेन्सिटिविटी का परिणाम है. ये सेन्सिटिविटी आपके अंदर धीरे-धीरे विकसित होती है. कई संक्रामक बीमारियों की वजह से त्वचा पर ऐसे ही गोल धब्बे बनते हैं.
Cognition And Emotion नाम के जर्नल में छपे इस शोध में 300 से ज़्यादा लोगों को शामिल किया गया था. तुलना के लिए 300 ऐसे लोगों को भी शामिल किया गया था, जिन्हें ट्रायोफ़ोबिया नहीं था. इन दोनों ग्रुप्स को कुछ तस्वीरें दिखाई गईं. कुछ संक्रामक बीमारियों की तस्वीरें थीं, जिनमें स्मॉल पॉक्स, चकत्ते वगैरह थे. जबकि बाकी तस्वीरों में ऐसी चीज़ें थीं जिसमें गोल छेद तो होते हैं, लेकिन इनका किसी बीमारी से कोई संबंध नहीं है, जैसे दीवार की ईंटों में छेद, कमल के बीज आदि.
संक्रामक बीमारियों वाली तस्वीरें दोनों ही ग्रुप के लोगों को बुरी लगीं. जिन्हें ट्रायोफ़ोबिया नहीं था, उन्हें बाकी तस्वीरों से कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन ट्रायोफ़ोबिया वाले लोगों को ये तस्वीरें भी स्किन पर चकत्तों वाली तस्वीरों जितनी ही बुरी लगीं.
ट्रायोफ़ोबिक लोगों को किसी भी गोल छेद के झुंड से डर लगता है फिर चाहे वो कॉफ़ी बबल्स हों या साबुन का झाग. इसकी वजह भी इस रिसर्च के बाद अब साफ़ हो चुकी है.