मां-बाप के बाद वो गुरु ही हैं, जो बच्चों का भविष्य संवारने का काम करते हैं. यही कारण है कि समाज में गुरुओं को आदर व सम्मान दिया जाता है. 

आज हम आपको एक ऐसी ही शिक्षिका के बारे में बताने जा रहे हैं, जो गुरु होने का फ़र्ज़ बख़ूबी निभा रही हैं. इनका नाम है ऊषाकुमारी. केरल के तिरुवनंतपुरम की रहने वाली सरकारी स्कूल टीचर ऊषाकुमारी प्रतिदिन ख़ुद नाव चलाकर नदी पार करने के बाद दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र की पैदल यात्रा कर, ‘अगस्त्य ईगा’ नाम के एक प्राइमरी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाती हैं. इस दौरान ऊषा को आने जाने में 4 घंटे से भी अधिक का समय लगता है. 

ऊषा पिछले 16 सालों से ऐसा कर रही हैं. सुबह 7:30 बजे घर से निकलने के बाद वो स्कूटी से कुम्बिक्कल कडावु स्थित नदी तक पहुंचती हैं. यहां से वो ख़ुद ही नाव चलाकर नदी पार करती हैं. इसके बाद ऊषा दुर्गम पहाड़ी इलाकों से पैदल चलकर आदिवासी गांव के ‘अगस्त्य ईगा प्राइमरी स्कूल’ तक पहुंचती हैं. इन सब मुसीबतों के बावजूद, ऊषा पूरी ईमानदारी के साथ अपना फ़र्ज़ निभाती हैं. ऊषा को कभी स्कूल से निकलने में देरी हो जाती है तो वो गांव के ही किसी स्टूडेंट के घर रुक जाती हैं ताकि दूसरे दिन आने में देरी न हो और बच्चों की पढ़ाई में खलल न पड़े. अमूमन वो रात 8 बजे तक अपने घर वापस पहुंच पाती हैं.

 वो सिर्फ़ बच्चों को ही नहीं बल्कि गांववालों को भी शिक्षा के प्रति जागरूक करने का काम कर रही हैं. इस स्कूल के बच्चों को मिड डे मील के तहत मिलने वाले भोजन का ख़्याल भी वो खुद ही रखती हैं. बच्चों को किस तरह की डाइट दी जाने है, ऊषा इसका भी बराबर ख़्याल रखती हैं. 

उषाकुमारी उन शिक्षकों के लिए आईने का काम करती हैं, जो अपनी जिम्मेदारी को सही से नहीं निभाते और छात्रों की भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हैं. शिक्षा के प्रति उनका ये समर्पण करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का काम कर रहा है.

ऊषाकुमारी के इस समर्पण के लिए ‘Kerala Association for Nonformal Education and Development’, उन्हें साक्षरता पुरस्कारम से सम्मानित कर चुका है.