सपने कौन नहीं देखता है. हम सब देखते हैं और उन्हें अपनी हक़ीक़त बनाना चाहते हैं. पर कोई भी चीज़ हमें आसानी से नहीं मिलती, उसके लिए हमें लड़ना पड़ता है और सबसे बड़ी बात ख़ुद पर विश्वास करना होता है. 

मुंबई की मधुमिता चक्रवर्ती की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. बहुत छोटी सी उम्र में ही उन्हें पता चल गया था कि वो डांस के लिए और डांस उनके लिए बना है. 

डांस के लिए मेरा प्यार तब शुरू हुआ जब मैं 2 साल की थी. मेरे माता-पिता मुझे एक फ़िल्म दिखाने ले गए थे और जैसे ही ‘जय जय शिव शंकर’ गाना आया मैं अपनी मां की गोद से कूद गई और डांस करने लगी. मैंने अलग-अलग डांस फॉर्म्स में ट्रेनिंग लेना भी शुरू किया और 14 साल की उम्र में मैंने पहली बार भीड़ के सामने परफ़ॉर्म किया. 

मधुमिता के लिए चीज़ें वैसी नहीं चलीं जैसी उन्होंने सोची थीं. सर से पिता का साया छिन जाते ही उस पर जिम्मेदारियों का भार आ गया. 

चीजें बहुत अच्छी जा रही थीं … लेकिन एक दिन मेरे पिताजी को दिल का दौरा पड़ने से अचानक उनकी मौत हो गई. उसके बाद, मेरी मां मेरी ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहती थीं. उन्होंने मेरी शिक्षा के लिए पैसे देने से भी इन्कार कर दिया था. मैं 9वीं कक्षा में थी और अलग-अलग शोज़ में डांस करती थी, वहां मैं प्रति शो 125 रुपये कमाती थी.

18 साल की उम्र में मधुमिता को एक लड़के से प्यार हो गया था जो कि ख़ुद भी एक डांसर था. लेकिन मधुमिता की मां को उनका प्यार स्वीकार नहीं था और उनको घर छोड़ना पड़ा. मधुमिता ने उससे शादी तो कर ली लेकिन उस एक फ़ैसले ने उनकी ज़िंदगी बदल कर रख दी. 

मैं हमारी नई ज़िंदगी शुरू होने के लिए बहुत उत्साहित थी, लेकिन मुझे ये महसूस नहीं हुआ कि शादी के बाद वो कितना बदल गया था. वो ख़ुद एक डांसर था पर एक ‘डांसर’ से शादी नहीं करना चाहता था- उसने मुझे डांस छोड़ने के लिए बोला. मैं उसे नहीं छोड़ सकती थी इसलिए डांस को छोड़ दिया.

वो कुछ ख़ास नहीं कमा रहा था, इसलिए हम नए अवसरों के लिए मुंबई चले आए, लेकिन चीज़ें बेहतर नहीं हुईं. हमारी रोज़ी-रोटी चल सके इसलिए मैंने फिर से परफ़ॉर्म करना शुरू किया. धीरे-धीरे मुझे काम मिलने लगा पर उसे अभी भी नहीं मिल रहा था. मेरा नाम होने लगा और मैं विदेशों में भी परफ़ॉर्म करने लगी. यहां तक कि मैं मनीषा कोइराला जैसे कलाकारों के साथ भी काम करने लगी. वो ये बर्दाश्त नहीं कर सका, और मुझसे लड़ने लगा. वह मुझे ‘नाचने वाली’ जैसे नामों से बुलाता और मुझे बुरा महसूस कराता.  

एक बार, वो मेरे शो में आया और मेरे परफॉरमेंस के बाद, उसने मुझे सबके सामने थप्पड़ मारा. मैं टूट गया थी, मुझे नहीं पता था कि क्या करना है. मैं फ़िर भी उसके साथ रुकी क्योंकि मुझे लगा कि मेरे पास कोई रास्ता नहीं है. जल्द ही मैं गर्भवती हो गई, लेकिन तब भी वो नहीं रुका. उसने मुझे अपनी विफलताओं के लिए दोषी ठहराया. जब मेरी बेटी दो साल की थी, तो हमारे बीच बहुत बुरा झगड़ा हुआ था. उसने मुझे इतनी बुरी तरह से पीटा था कि मुझे लगा कि मैं अपने पैर खो दूंगी. मैं इन सब चीज़ों से इतना तंग आ गई थी कि मैंने अपनी खिड़की से कूदकर खुद को मारने की कोशिश की, लेकिन मेरे पड़ोसी ने नेरी जान बचा ली थी. 

मैं तब पूरी तरह से टूट चुकी थी. जब उसका दूसरी महिला से अफेयर चल रहा था और वो उससे शादी करना चाहता था. मैं उसके साथ इतने लम्बे समय से थी, मैंने इतना कुछ त्याग किया लेकिन उसे बस एक मिनट लगा मुझे और मेरी बेटी को निकालने में.

अपनों से पूरी तरह हारी मधुमति ज़िंदगी में पहली बार अपने और अपनी बच्ची के लिए खड़ी हुई. उसने अपनी ज़िंदगी की कमान अपने हाथ में लेने की ठान ली. 

इस बार मैं अपने लिए खड़ी हुई, तलाक़ दिया और अपनी बेटी के साथ एक किराए के घर में चली गई. मैं थोड़े दिनों के लिए लड़खड़ाई लेकिन मैंने अपनी बचत का इस्तेमाल किया और एक डांस अकादमी खोली. मैंने इसकी शुरुआत एक छोटे से परिसर से की, मैंने कड़ी मेहनत की और आज मेरे पास एक विशाल अकादमी है जहां मैं 200 से अधिक छात्रों को सिखाती हूं. अब 15 साल हो गए हैं और मैं आख़िरकार अपने पैरों पर खड़ी हूं. अब कोई भी व्यक्ति मेरे लिए कुछ भी तय नहीं कर सकता या मुझे नहीं बता सकता है कि मैं किस लायक हूं और मैं क्या कर सकती हूं. मैं अपने फैसले खुद कर रही हूं, और अपने सपनों का पीछा कर रहा हूं. मैं अपने काम से प्यार करती हूं, और मैं जानती हूं कि मेरे पास शर्मिंदा होने के लिए कुछ भी नहीं है.

मधुरिता का जीवन संघर्ष हमारे लिए एक उदाहरण है कि हम अपनी क़िस्मत कभी भी बदल सकते हैं बस ख़ुद पर विश्वास होना चाहिए.