प्रिय भाई, 

आजकल जब भी तुमसे फ़ोन पर बात करती हूं, तो तुम हमेशा कहते हो कि दीदी अब मैं बड़ा हो रहा हूं. पर मेरे लिए तुम आज भी और हमेशा बच्चे ही रहोगे. (जो आज भी लाइट जला कर सोता है). 

बहुत छोटे से थे जब तुम हम सब की ज़िंदगी में आए थे. पापा तो वैसे मानते हैं कि तुम बहुत लकी हो हमारे लिए पर ऐसा नहीं है. वो हम तुम्हें मंदिर की सीढ़ियों से उठा कर लाए थे. 

तुम हमेशा से ही ज़िद्दी रहे हो और आज भी हो. बचपन में मार्केट जाते टाइम मम्मी हमेशा घर से बोल कर लेकर चलती थी कि दीपक कोई खिलौना मत मांगना. और तुम भी ज़ल्दी से अपनी खोपड़ी हिला दिया करते थे. पर मैं जानती थी कि घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही तुम एक खिलोने की दुकान पर ज़रूर रुकोगे. मम्मी मना करतीं और तुम ऐसे रोने लगते कि पूरे बाज़ार को पता चल जाता कि ज़नाब को क्या चाहिए. 

अच्छा, तुम ने ऐसे ही रो-रोकर साइकिल भी ली थी? बिलकुल. बिचारी साइकिल का भी वही हाल हुआ जैसा तुम्हारे बाक़ी खिलौनों का हुआ था. एक मिनट, तुम्हारे नहीं मेरे खिलोने जिनको तुमने तोड़ दिया. 

ख़ैर, अब तो तुम खम्बे की तरह बड़े होते जा रहे हो. गलतफ़हमी मत रखो, अक्ल से नहीं सिर्फ़ लम्बाई में. यार, थोड़ी तो शर्म कर ले बड़ी बहन हूं तेरी. 

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अच्छा मेरे दोस्तों को लगता है कि तू कितना मासूम और शरीफ़ सा है. बस तेरी इज़्ज़त रखने के लिए बोल देती हूं की हां. वरना तुमको तो पता ही है कि तुम कितने बड़े शरारती इंसान हो मैं तुम्हारे बारे में क्या सोचती हूं. 

पर उस दिन जब तुमको उस छोटे से बच्चे की मदद करते देखा सड़क पर, तो बहुत ख़ुशी हो रही थी मुझे. तुम लाख़ शैतानी करो, मां-पापा से डांट खाओ लेकिन हमेशा ध्यान रखना जो बात सबसे ज़्यादा अहम है वो ये कि तुम इंसान कैसे हो?. मैं चाहती हूं कि तू हर मायने में मुझसे बड़े हो जाओ. 

अब तुम धीरे-धीरे बड़े हो रहे हो और ऐसे समय में ऐसी बहुत सी बातें होंगी जो तुमको समझ नहीं आएंगी कि क्या करूं या नहीं. बहुत सारी गलतियां भी करोगे. बस एक बात ध्यान रखना कि मैं तुम्हारे साथ हमेशा हूं. जब भी न समझ आए प्लीज़, कॉल करना और पूछ लेना. 

अच्छा और सुन, मम्मी-पापा मुझे तुझसे ज़्यादा प्यार करते हैं.

तुम्हारी बड़ी बहन,

ईशी