फ़िल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ के एक सीन में अदिति बन्नी से कहती है, ‘क्या जल्दी-जल्दी बड़े हो गए न हम?’ 

शायद अदिति सही थी. मैं पिछले कुछ दिनों से बार-बार यही सोच रही हूं. अब हम ही दोनों को देख लो, दोनों एक ही शहर में हैं, वो भी महज़ 3 से 4 किमी की दूरी पर, लेकिन फिर भी कोई मिलना-जुलना नहीं. पहले कैसे, हम दोनों एक दूसरे से पूरे वक़्त चिपके रहते थे. आज इतने पास होकर भी दूर हैं. बहुत दुःख होता है कि अब हम वैसे बेस्ट फ्रेंड्स नहीं रहे या शायद दोस्त भी नहीं. 

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याद है, उस दिन क्लास में हम दोनों को होमवर्क न करने की वजह से बाहर निकाल दिया गया था. उस दिन जब हम बाहर गए, तब एक दूसरे से अंजान थे. लेकिन महज़ आधे घंटे के बाद जब हम क्लास के भीतर पहुंचे तो बेहतरीन दोस्त बन चुके थे. उस दिन के बाद से हम हमेशा हर काम साथ-साथ करते थे. हमेशा तुम शरारत करती थीं और मैं फंसती थी. तुमको याद है, एक बार तुमने मैथ्स टीचर को बॉयज़ टॉयलेट में बंद कर दिया था और मैम ने हम दोनों को 2 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया था. वो किस्सा तो आज तक तेरी- मेरी मम्मी को नहीं पता. 

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तुम सिर्फ़ मेरे लिए मेरी दोस्त नहीं थीं, मेरे जीवन की वो इंसान थीं, जिसके पास मेरी हर मुश्किल का हल होता था. तुमको हमेशा इस बात से चिढ़ थी कि तुम मुझसे ज़्यादा पढ़ती थीं, पर मार्क्स मेरे अच्छे आते थे. और भाई, Biology तो तुम्हारे सिर के ऊपर से निकलती थी. सोच कर ही हंसी आती है. 11th के Bio के फ़ाइनल्स में तुम मेरे घर आई थीं मुझसे पढ़ने और हम दोनों ही फ़ेल हो गए थे उसमें. कितनी डांट पड़ी थी यार!

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अच्छा, क्या तुमको वो बेकरी ध्यान है, जहां हम हर रोज़ जाते थे. कुछ दिन पहले जब अपने शहर, अपने घर वापस गई तो वहां भी गई थी. अब वो छोटी सी दुकान छोटी नहीं रही, उसका तो पूरा हुलिया ही बदल गया है, बस एक चीज़ है जो नहीं बदली… वो हैं वहां की यादें. लड़कों की बातें, साथ-साथ खाना, लाइफ़ की बातें, घर की प्रॉब्लम्स, क्या कुछ नहीं जिया है हमने साथ में यार. हर दोस्त की तरह हमने भी क्या-क्या नहीं सोचा था. स्कूल के बाद एक ही कॉलेज में जाएंगे, साथ में बैकपैकिंग पर जाएंगे और न जाने क्या-क्या. स्कूल में जब भी हम दूसरे दोस्तों के बिछड़ने की कहानियां सुनते थे, तो हमेशा बोलते थे कि हम बाकियों की तरह नहीं है, और हंसते हुए कहते थे ‘इतनी आसानी से थोड़ी न तेरा पीछा छोड़ूंगी’… पर देख न आज उतनी ही आसानी से एक-दूसरे से दूर हैं. 

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स्कूल के आख़िरी दिन हम दोनों कितना रोए थे. हम दोनों कहीं न कहीं जानते थे कि ज़िन्दगी यहां से बदलने वाली है. मैंने तुमको कभी बताया नहीं, पर शायद वो दिन था, जब मुझे इस बात का एहसास हुआ कि तुम मेरे लिए क्या हो. उस समय मुझे नहीं पता था कि मैं कभी तुम्हारे बिना रह पाउंगी भी या नहीं. शुरू के एक-दो महीने तो सब सही चला हमारे बीच. मुझे आज भी याद है, तुमने दोपहर में कॉल किया था, मैंने फ़ोन उठाया और तुम एकदम ख़ुश होते हुए बोलीं कि ‘मेरा दिल्ली यूनिवर्सिटी में हो गया है…’, तुम्हारी आवाज़ में मैं वो ख़ुशी महसूस कर पा रही थी. 

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मुझे पता था कि दिल्ली में पढ़ना तुम्हारा हमेशा से सपना था. ख़ुश थी तुम्हारे लिए, पर अंदर ही अंदर बहुत उदास भी थी कि तुम मुझसे दूर जा रही हो. बहुत मुश्किल समय था वो मेरे लिए. यकीन है मुझे तेरे लिए भी होगा. हम दोनों अपनी-अपनी पढ़ाई में आगे बढ़ गए, शहर बदला और दोस्त भी बदले. ऐसा नहीं था कि उस समय बातें बिलकुल बंद हो गई थी. बातें होती तो थीं हमारे बीच, पर हम बात कम करते थे और झगड़ते ज़्यादा थे. मुझे ये बात बिलकुल नहीं पसंद आ रही थी कि मेरी जगह अब कोई और ले रहा था. आख़िर किस को पसंद है अपने दोस्त को बांटना. समय के साथ सब बदल गया. धीरे-धीरे झगड़े कम हुए और फिर बातचीत भी. न किसी ने मनाने की कोशिश की, न वापस लौटने की. और फिर एक दूसरे का नाम बस कॉन्टेक्ट लिस्ट में होकर रह गया. इस बीच कितने सारे साल यूं ही बीत गए. तुम्हारी याद जस की तस बनी रही.

और अब मुझे अदिति की बात बिलकुल सही लगती है ‘क्या जल्दी-जल्दी बड़े हो गए यार हम’.