नो, नहीं, सॉरी, इस बार नहीं…. ये कुछ ऐसे शब्द हैं जिसने न जाने कितनी बार मेरा दिल तोड़ा है. कितनी बार ख़ुद पर विश्वास कम हुआ है. 

शायद रिजेक्शन चीज़ ही ऐसी है. कोई भी इंसान हो, रिजेक्शन हम सबके हिस्से कभी न कभी आ ही जाता है. और इस पर किसी का बस नहीं. कई बार तो मौका मिलने से पहले ही रिजेक्ट कर दिया जाता है. और किस को पसंद है कि उसे मौका दिए जाने से पहले ही उसे जज कर लिया जाए. या उसे उस काम के लायक़ ही नहीं समझा जाए जिसे वो अपने पूरे दिल से करना चाहता है. 

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सिर्फ़ मैं ही नहीं, हम सबको रिजेक्शन से डर लगता है. पर जैसे हम अपने जीवन में हर चीज़ से कुछ न कुछ सीखते हैं, रिजेक्शन्स भी हमें छोटी बड़ी सीखें दे जाते हैं. 

मैं मानती हूं रिजेक्शन से मेरा दिल जरूर टूटा, पर उसी ने मुझे गिर कर उठना सिखाया. मुझे इस बात का एहसास करवाया कि मैं भी कुछ कर सकती हूं. एक चीज़ से रिजेक्ट हुई लेकिन फिर कोई और मौका मिला. 

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रिजेक्शन्स के बाद गिरने और फिर उठ खड़े होने ने मुझे ख़ुद पर विश्वास करना सिखाया. मुझे इस बात का एहसास कराया कि भले ही बाहर इस समय कितना ही अंधेरा क्यों ना हो, पर अपने भीतर की रोशनी को पकड़े रहना है. 

माना रिजेक्शन्स ने कई बार मुझे कमज़ोर किया लेकिन उससे बाहर निकलकर फिर कोशिश करने ने मुझे अहसास दिलाया कि मुझमें कितनी ताक़त है. मैं अपनी कमज़ोरियां नहीं बल्कि अपनी ताक़त हूं. 

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ऐसा कितनी बार हुआ है कि मैं हार मान लेना चाहती थी. मुझे लगता था कि मैं जो भी कर रही हूं सब बेकार है. लेकिन रिजेक्शन्स ने मुझे हर दिन नए सिरे से लड़ने के लिए तैयार किया. 

जब मैंने जीवन में रिजेक्शन्स देखे तो उसने मुझे संवेदनशील और जीवन में लोगों के प्रति और नर्म बनाया. 

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मैं अपने जीवन के सारे रिजेक्शन्स को शुक्रिया कहना चाहती हूं. एक अच्छा टीचर बनने के लिए. वो चीज़ें सिखाने के लिए जो कभी कोई भी इंसान शायद क्लासरूम में नहीं सीखता. शुक्रिया, मुझे एक ऐसा इंसान बनाने के लिए जो तुम्हारे बिना मैं कभी नहीं बन पाती. शुक्रिया, मुझे मज़बूत बनाने के लिए.