बीता हुआ दौर और समय किसे अच्छा नहीं लगता. हम अक्सरहा बीते दिनों को लेकर नॉस्टैलजिक हो जाते हैं. हम अपने पुरखों से हमेशा ही सुनते रहे हैं कि कैसे उनके जमाने में 1 रुपये में किलो भर शुद्ध देसी घी मिल जाया करता था. कैसे दादा ने दादी को शादी की पहली सालगिरह पर सोने के दो कंगन ला कर दिए थे. मगर इन सभी बातों के बीच हम कई बार इन बातों को नज़रअंदाज़ कर जाते हैं कि हमारे पुरखे कितने खुले दिल और दिमाग से जीवन जिया करते थे.

वे कभी छोटी-छोटी बातों पर नहीं लड़े. आज हम सारी चीज़ों को निषिद्ध करने पर तुले हुए हैं. क्या हम-आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि खजुराहो के मंदिरों पर नग्न मूर्तियां बनायी जा रही हैं? भारत जो बदला उसके पीछे एक बड़ी वजह विदेशी आक्रांता रहे हैं जो उनके निहित स्वार्थों के वशीभूत हमारे देश के समस्त संसाधनों को लूटते-खसोटते रहे. इस सभी के बावजूद यदि आपको लगता है कि आप अपने पुरखों से बेहतर और आगे हैं तो हम आपको 18 ऐसे तथ्यों से रूबरू करा रहे हैं जो आपके सारे भ्रमों को तोड़ देगा…

1. प्राचीन भारत और वैदिक काल के दौरान महिलाएं भी तपस्वी व मुनि हुआ करती थीं. उन्हें उस दौरान ऋषिका कहा जाता था.

2. मनुस्मृति के अनुसार प्राचीन भारत में स्त्रियों को इस बात की पूरी आज़ादी थी कि वे कैसे धन कमाएंगी और किस प्रकार और कहां खर्च करेंगी.

3. महाभारत में इस बात का जिक्र है कि यदि कोई स्त्री किसी के साथ नज़दीकी नहीं चाहती है तो कोई पुरुष किसी प्रकार के दबाव का इस्तेमाल नहीं कर सकता. पुरुषों से ऐसी हमेशा अपेक्षा की जाती थी कि वे ख़ुद को संयमित रखेंगे और सही के राह पर चलेंगे. पुरुष को ऐसी कोई छूट नहीं थी कि वह किसी स्त्री से दुर्व्यवहार करे और उस पर हाथ उठाए.

4. लक्ष्मी तंत्र के अनुसार समाज की हरेक स्त्री को उसके रंग-रूप के इतर बराबर सम्मान मिले.

5. मनुस्मृति के अनुसार स्त्रियों को पढ़ाई-लिखाई की पूरी आज़ादी थी. वे उनकी मर्जी के अनुसार कुछ भी पढ़ सकती थीं.

6. स्त्रियों की इस बात की पूरी आज़ादी थी कि वे अपना जीवनसाथी चुन सकें. इसके बावजूद उनके कुंवारे रहने की भी पूरी आज़ादी थी.

7. सेक्स या संभोग तब निषिद्ध विषय नहीं था. लोग इस विषय पर खुल कर बातचीत किया करते थे.

8. प्राचीन भारत में स्त्रियों के योनिच्छद् को लेकर कोई हो-हल्ला नहीं था. स्त्रियों के कौमार्य को लेकर कोई बहस और सवाल नहीं थे.

9. उपनिषद् में इस बात का साफ जिक्र है कि स्त्रियां न सिर्फ़ वेदों, उपनिषदों और पवित्र ग्रंथों का अध्ययन कर सकती हैं, बल्कि ‘आचार्य’ या शिक्षक भी बन सकती हैं.

10. संस्कृत के एक मशहूर व प्राचीन कवि राजशेखर ने कहा है कि साहित्य में लिंग विभेद जैसी कोई बात नहीं होती.

11. प्राचीन भारत में बहादुर और प्रतीभाशाली स्त्रियों की कोई कमी नहीं थी. रानी चेनम्मा और वर्तमान आंध्रप्रदेश की रुद्रमदेवी वैसी ही स्त्रियां रही हैं.

12. प्राचीन काल में स्त्रियों और पुरुषों का शादी से पहले मिलना और साथ घूमना-फिरना आम था. महाकवि कालिदास उनकी कालजयी रचना रघुवंशम् में इस बात का जिक्र करते हैं कि उस दौरान बागों में घूमने-फिरने वाली गणिकाओं को कोई परेशान नहीं करता था.

13. चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में और गुप्त काल में महिलाओं को उनके पति के देश निकाला दिए जाने पर, मर जाने पर और नपुंसक हो जाने पर दूसरे विवाह की इजाज़त थी.

14. 18 वीं सदी में स्त्री और पुरुष को सभी क्षेत्रों में बराबरी का दर्जा प्राप्त था. जी हां सारे क्षेत्रों में…

15. हमारे देश में कला और उसकी अभिव्यक्ति को कभी कठघरे में नहीं खड़ा किया गया, चाहे वह काम या संभोग का उत्सव ही क्यों न हो. लोग ऐसी सारी चीजों को खुले दिमाग से देखा और स्वीकारा करते थे. ऐसे नज़ारे खजुराहो और मार्कंडेश्वर मंदिर के दीवारों पर साफ़-साफ़ देखे जा सकते हैं.

16. आज-कल के समाज से बिल्कुल उलट मनुस्मृति में यह स्पष्ट जिक्र है कि बेटे और बेटियां उनके बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करेंगे.

17. कामसूत्र प्राचीन भारत की एक ऐसी किताब है जिसमें इस बात का स्पष्ट जिक्र है कि संभोग के दौरान किस तरह का बर्ताव और दुराव रखना चाहिए. साथ ही यह संभोग की अलग-अलग मुद्राओं का भी जिक्र करता है.

18. सनातन धर्म प्राचीन भारत का एक ऐसा धर्म है जिसका पालन अधिकांश भारत करता है. इसे किसी लिंग विशेष तक सीमित नहीं किया गया था.