भारत ने पाकिस्तान से 1971 का युद्ध जीता था. ये जीत बहुत बड़ी थी क्योंकि 93000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाले थे. ये जीत आसानी से नहीं मिली थी. भारत के कई सैनिकों ने इस जीत को दिलाने में अपने प्राण गंवाये थे.
इस जंग का शीर्ष नायक अगर अरुण खेत्रपाल को कहा जाया तो ये कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
कौन थे अरुण खेत्रपाल?
14 अक्टूबर, 1950 को अरुण का जन्म एक आर्मी परिवार में हुआ. अरुण के दादा अंग्रेज़ों की इंडियन फ़ौज में थे और अरुण के पिता आर्मी इंजीनियरिंग कॉर्प्स में कार्यरत थे. इंडियन मिलिट्री अकेडमी में उनकी ट्रेनिंग चल रही थी. ट्रेनिंग के बाद उन्हें 17 जून, 1971 को 17 पूना हॉर्स रेजिमेंट में पोस्टिंग मिली. पोस्टिंग के 6 महीने बाद ही जंग का ऐलान हो गया. 1 रिपोर्ट के मुताबिक़, अरुण की ट्रेनिंग पूरी होने में कुछ दिन बाक़ी थे. अरुण ने अपने ट्रेनिंग कमांडर से ख़ास इजाज़त ली और लड़ाई के मैदान में कूद पड़े.
अरुण का स्कवॉड्रन 17 पुणे हॉर्स 1971 के युद्ध में शकरगढ़ में था.
अरुण ने 1971 की जंग में सेकंड लेफ़्टिनेंट, अरुण खेत्रपाल ने दुश्मन के 10 टैंक नष्ट किये, वो भी सिर्फ़ 21 साल की उम्र में. टैंक को बर्बाद करने के दौरान ही अरुण के टैंक में आग लग गई और उन्होंने वीरगति प्राप्त की.
इस युद्ध में अरुण के पिता ब्रिगेडियर एम.एल.खेत्रपाल भी दुश्मनों से युद्ध किया.
ऐतिहासिक बसंतर की लड़ाई
बसंतर नदी शकरगढ़ में बहती थी. एक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की कोशिश थी कि इस नदी पर बने पुल पर कब्ज़ा कर जम्मू कश्मीर से पठानकोट को अलग कर दिया जाये और भारतीय सेना को जम्मू पहुंचने से पूरी तरह रोक लिया जाये. कश्मीर पर कब्ज़ा करने की ये पाकिस्तान की साज़िश थी.
भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई शुरू की और सेना के 47 ब्रिगेड को दुश्मनों को रोकने के लिए ब्रिजहेड बनाने का काम सौंपा.
16 दिसंबर, 1971 को क्या हुआ?
पाकिस्तान ने भारतीय टैंकों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए शकरगढ़ में लैंडमाइंस बिछा रखी थी. भारतीय सेना की इंजीनियर कॉर्प्स लैंडमाइन्स का सफ़ाया करने में जुटी थी और 17 पूना हॉर्स, रेजिमेंट के लिए रास्ता तैयार कर रही थी. भारतीय सेना के इंजीनियर्स लैंड माइन्स का सफ़ाया कर रहे थे लेकिन खेत्रपाल के रेजिमेंट ने जंग के मैदान में उतरने का फ़ैसला किया.
शुरुआत में वो जीत रहे थे पर थोड़ी देर बाद दुश्मनों ने उन पर गोलीबारी शुरू कर दी. उस वक़्त उनके पास बस 3 टैंक थे और दुश्मन के पास 14. खेत्रपाल और उनके साथियों ने दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया और दुश्मन के 3 टैंक बर्बाद कर दिये.
इसी बीच भारतीय सेना का एक टैंक नष्ट हो गया और दूसरा तकनीकी ख़राबी की वजह से काम नहीं कर रहा था. खेत्रपाल के टैंक में भी आग लग गई थी पर उन्होंने हार नहीं मानी.
कुछ देर बाद, खेत्रपाल के टैंक पर एक शेल बम गिरा जिसमें वो बुरी तरह घायल हो गये. खेत्रपाल के कमांडर ने उन्हें लौटने को कहा. खेत्रपाल का जवाब था, ‘मेरा मैन गन काम कर रहा है और मैं संभाल लूंगा.’
खेत्रपाल ने तब तक फ़ायरिंग जारी रखी जब तक दुश्मन के 2 और टैंक नष्ट और 1 को छोड़ नहीं दिया गया. अब बस 2 टैंक बचे थे जो एक दूसरे से 100 मीटर की दूरी पर थे.
खेत्रपाल ने डायरेक्ट हिट किया और वो दुश्मन के टैंक पर लगा. दुश्मन के सैनिक मैदान छोड़कर भाग गए. बुरी तरह ज़ख़्मी अरुण ने अपने गनर को कहा कि वो टैंक से बाहर नहीं निकल पायेंगे. एक रिपोर्ट के अनुसार, 10 बजकर 15 मिनट पर अरुण ने आख़िरी सांस ली.
अरुण को मरणोपरांत दुश्मनों को भारतीय ज़मीन से भगाने के लिए परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया.