ख़स्ताहाल सड़क और गंदी नालियों की सफ़ाई के लिए अकसर लोग नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को कोसते हैं. हालांकि, वो सही करते हैं, क्योंकि लोगों की समस्याओं को हल करना उनका कर्तव्य है. लेकिन हाथ पर हाथ रख कर सब कुछ देखने से बेहतर होता है कि कुछ किया जाए. प्रशासन की राह न देख असम में खस्ताहाल सड़क की कायापलट करने वाले गौतम बोरदोलोई ने भी कुछ ऐसा ही किया है.

असम के डिब्रुगढ़ ज़िले में गौतम बोरदोलोई का घर है. गौतम के पिता हेरोम्बो बोरदोलोई एक पत्रकार और समाजिक कार्यकरता थे. उन्होंने कई वर्षों पहले वहां आई बाढ़ में लोगों के पुनर्वास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. साल 2008 में उनके पिता को सम्मानित करते हुए स्थानीय प्रशासन ने एक सड़क का नामकरण उनके नाम पर किया था.

लेकिन कुछ वर्षों में इस रोड में इतने गड्ढे हो गए थे कि इस पर चलना दूभर हो गया था. अपने पिता के नाम पर बनाई गई इस रोड का ये हाल देखकर गौतम को बहुत दुख हुआ. मगर उन्होंने प्रशासन की राह न देखते हुए इसे ख़ुद ही ठीक करने का निश्चय किया.

गौतम हॉंगकॉंग में काम करते हैं. लेकिन उनका असम आना-जाना होता रहता है. फिर भी उन्होंने इस रोड की मरम्मत करने के बारे में सोचा. इस रोड की कायापलट करने में उन्हें 5 साल का समय लगा और 13 लाख रुपये का ख़र्च. आज इस रोड को देखकर लोग इसकी तुलना सिंगापुर की सड़कों से करते हैं. इस रोड को देखकर उन्हें यकीन ही नहीं होता कि ये इंडिया में है. 

2013 में उन्होंने इसकी शुरुआत गड्ढे भरने से कि थी. इसके बाद जलभराव की समस्या से निपटने के लिए उन्होंने ड्रेनेज सिस्टम पर भी काम किया. स्थानीय लोगों ने भी इस काम में उनकी मदद की. कुछ युवकों ने इसे पेंट करने में उनका हाथ बंटाया था. अब इस चमचमाती रोड पर स्ट्रीट लाइट का उजाला और किनारे लगे हरे-भरे पेड़ नज़र आते हैं. दुर्घटना से बचने के लिए रिफ़्लेक्शन मिरर लगे हैं. साथ ही लोगों ने इसे गंदा न करने के विनाइल के पोस्टर भी लगाए हैं.

इसके बनने के बाद गौतम ने इसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की थी. लोगों को ये जानकर हैरानी होती है कि उन्होंने अपने दम पर इस रोड को बनाया है. गौतम का कहना है कि उनके पिता ने जो किया है, उसके सामने तो ये कुछ भी नहीं है. गौतम के इस हौसले को देखते हुए ये लग रहा है कि अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है. बस इरादा पक्का होना चाहिए.