बिहार के नालंदा ज़िले में स्थित ‘नालंदा विश्वविद्यालय’ दुनिया के सबसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक है. लेकिन साल 1199 में एक ऐसी घटना हुई जब बिहार के शासक बख़्तियार ख़िलजी ने ‘नालंदा विश्वविद्यालय’ को आग के हवाले कर दिया था. 

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कौन था बख़्तियार ख़िलजी? 

इख़्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख़्तियार ख़िलजी कुतुबुद्दीन एबक का एक सैन्य सिपहसालार था. ख़िलजी ने 1203 ई में बिहार पर जीत हासिल कर दिल्ली में अपने राजनीतिक कद को ऊंचा किया. इसके अगले ही साल ख़िलजी ने बंगाल पर विजय हासिल कर भारतीय उपमहाद्वीप के इस भाग पर इस्लाम को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई. 

इतिहासकार विश्व प्रसिद्ध ‘नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने के पीछे जो वजह बताते हैं कि बख़्तियार ख़िलजी एक समय गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था. इस दौरान उसके हक़ीमों ने इसका काफ़ी उपचार किया लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ. इस दौरान किसी ने उन्हें ‘नालंदा विश्वविद्यालय’ के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से उपचार कराने की सलाह दी. 

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बख़्तियार ख़िलजी के आदेश पर आचार्य राहुल को बुलाया गया. इस दौरान इलाज़ से पहले ख़िलजी ने आचार्य दो शर्तें रख दीं. पहली- वो किसी हिंदुस्तानी दवाई का सेवन नहीं करेगा. जबकि दूसरी- अगर वो ठीक नहीं हुआ तो आचार्य की हत्या करवा देगा. 

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अगले दिन आचार्य राहुल श्रीभद्रजी उसके पास कुरान लेकर गए और कहा कि कुरान की पृष्ठ संख्या इतने से इतने तक पढिए ठीक हो जाएंगे. ख़िलजी ने पढ़ा और वो ठीक हो गया. लेकिन ख़ुश होने के बजाय उसने गुस्से से तिलमिलाते हुए कहा आख़िर उसके हकीमों से इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ क्यों है? बौद्ध धर्म और आयुर्वेद का एहसान मानने के बदले उसने ‘नालंदा विश्वविद्यालय’ में ही आग लगवा दी. 

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कुरान के कुछ पृष्ठों पर लगा दिया था अदृश्य लेप 

इतिहासकारों के मुताबिक़, बख़्तियार ख़िलजी के ठीक होने के पीछे जो वजह बताई जाती है. उसके बारे में कहा जाता है कि वैद्यराज राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पृष्ठों के कोने पर एक दवा का अदृश्य लेप लगा दिया था. इस दौरान ख़िलजी ने जब थूक लगाकर पेज पलटने शुरू किए तो लेप उसकी जीभ के सहारे पेट में चले गया और वो कुछ ही दिन में ठीक हो गया. 

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कहा जाता है कि इसके ठीक बाद बख़्तियार ख़िलजी ने ‘नालंदा विश्वविद्यालय’ को आग के हवाले करने के आदेश दिए. इस दौरान विश्वविद्यालय इतनी पुस्तकें थीं कि वो 3 महीने तक जलती रहीं. इस दुःखद घटना में हज़ारों धर्माचार्य व बौद्ध भिक्षु मारे गए. सिर्फ़ इतना ही नहीं इसके बाद इस सनकी शासक ने पूरे नालंदा को भी आग के हवाले करने के आदेश दे दिए.   

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नालंदा वो जगह है जहां छठी शताब्दी से ही कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत और तुर्की से स्टूडेंट्स और टीचर्स पढ़ने-पढ़ाने आया करते थे. लेकिन बख़्तियार ख़िलजी नाम के सनकी शासक ने इसको तहस-नहस कर दिया था.