क्या शहर और क्या गांव, देश में बेरोज़गारी की समस्या सभी जगह एक जैसी ही है. इस समस्या का कोई ठोस हल किसी के पास नहीं है. मगर कई बार समस्या का समाधान हमारे आस-पास ही होता है और हमें नज़र नहीं आता. कुछ ऐसी ही कहानी है कुशीनगर के रहने वाले रवि प्रसाद की. रवि कुछ समय पहले तक इसी समस्या से परेशान थे, मगर उन्हें इस बात का कतई भी अंदाज़ा नहीं था कि उनकी सबसे बड़ी परेशानी का हल किसी बेकार हो चुकी वस्तू में ही छुपा था.
ये बेकार हो चुकी वस्तू कुछ और नहीं, केले के पेड़ का तना था, जिसका फल ज़्यादातर इस्तेमाल में आता है. उसके तने को इस्तेमाल करने के बारे में कोई नहीं सोचता. रवि प्रसाद इसी तने से आत्मनिर्भर बने हैं और बाकियों को भी रोज़गार दे रहे हैं.
दरअसल, रवि प्रसाद बेकार हो चुके केले के तने से मशीन के ज़रिये रेशे निकालते हैं. इन रेशों से वो टोकरी, चप्पल, टोपी, कागज़, साड़ी अादि बनाते हैं, जिनकी डिमांड बाज़ार में बहुत है. इसके लिए उन्होंने खु़द कोयंबटूर जाकर केले के तने से प्रोडक्ट बनाने की ट्रेनिंग ली.
वहां से वापस आकर अपने गांव में रवि ने इसका उत्पादन शुरू कर दिया. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यूपी के कुशीनगर और आस-पास के इलाके में केले की खेती बहुत होती है. यहां पर किसान इससे फल प्राप्त करने के बाद या तो इन्हें जला देते हैं, या फिर फेंक देते हैं. रवि ने इसी से अपने बिजनेस शुरू करने का उपाय सूझा.
हालांकि, इसका आइडिया उन्हें दिल्ली के प्रगति मैदान में हुए एक मेले से आया था. जहां रवि ने दक्षिण भारत के एक स्टॉल पर केले के तने से बने प्रोडक्ट्स की सेल होते देखी थी. आजकल रवि केले के तने से रेशे निकालने की ट्रेनिंग अपने आस-पास के किसानों को भी दे रहे हैं. इसकी ट्रेनिंग 15-20 दिनों में पूरी हो जाती है. इसके बाद रवि ट्रेंड लोगों को मशीनें उपलब्ध कराने के साथ ही, उनके द्वारा तैयार किए गए प्रोडक्ट्स ख़रीद लेते हैं. इसे वो आगे मार्केट में बेच देते हैं.
रवि की ये कहानी बहुत ही प्रेरणादायक है. इससे कुछ हद तक ही सही, लेकिन बेरोज़गारी की समस्या को हल किया जा सकता है.