समय के साथ जैसे-जैसे नई-नई तकनीक आती गई, उन्होंने इंसानी जीवन को सरल बनाने के अलावा एक काम और किया. यह काम था पुरानी तकनीकों और कलाओं को खत्म करने का काम. तकनीक ने प्राचीन कलाओं को साथ में लेकर चलने के बजाय मिटाने का काम किया है. प्राचीन शिल्प और कलाओं की डूबती दुनिया को बचाने के लिए बेंगलुरु के रहने वाले राहुल खडालिया अपसाइकिलिंग की नई तकनीक लेकर आये हैं.

राहुल ABCD नाम से एक स्टूडियो चलाते हैं. यहां पर राहुल और उनकी टीम मिल कर प्राचीन भारतीय शिल्प और परम्पराओं को जीवित रखने के लिए कबाड़ बन चुके सामान और पुराने पोस्टर्स की मदद से आर्ट वर्क बनाते हैं. इस काम के लिए राहुल अपसाइकिलिंग की मदद लेते हैं. इस तकनीक के दो मुख्य उद्देश्य हैं, पहला उद्देश्य है सस्टेनेबिलिटी और दूसरा है मनी मेकिंग.

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राहुल ने यह पहल कुछ समय पहले तब शुरू करी थी, जब उन्होंने कच्छ, गुजरात के कुछ ब्लॉक प्रिंटर्स पर लिखा गया एक आर्टिकल पढ़ा था. इस आर्टिकल में बताया गया था कि किस तरह आधुनिक तकनीकों के आ जाने से परम्परागत आर्ट तकनीकें पिछड़ती जा रही है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है परम्परागत आर्टवर्क के लिए काम में ली जाने वाली तकनीक की वजह से बने हुए उत्पादों का महंगा हो जाना.

राहुल आर्टवर्क के लिए पुराने विज्ञापनों और फिल्मों के पोस्टर्स भी यूज़ करते हैं. इन पोस्टर्स के एक तरफ़ पहले से छपी हुई चीज़ बनी रहती है और दूसरी साइड में आर्टवर्क किया होता है. पोस्टर्स के अलावा अपने आर्टवर्क के लिए पुराने न्यूज़पेपर्स, रबर ट्यूब्स, पुराने कंटेनर और अन्य दूसरी पुरानी चीज़ों का उपयोग करते हैं.

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अभी फ़िलहाल उनकी टीम में चार लोगों को रोजगार मिल रहा है. अगले तीन-चार सालों में राहुल का लगभग 3-5 हज़ार लोगों को रोजगार देने का इरादा है.

रिसाइकिल तकनीक में उत्पाद की लागत बढ़ जाती है, अपसाइकिलिंग तकनीक में ऐसा कुछ नहीं होता है, जिससे इसकी लागत कम बनी रहती है. प्राचीन कलाओं को बचाए रखने के लिए इस तरह के कदम काफ़ी कारगर साबित हो सकते हैं.