देश में चुनावी माहौल है और हर पार्टी धर्म और जाति के नाम पर वोट की रोटियां सेंकने में लगी हुई हैं, वहीं इस सब बातों से इतर एक शख़्स ऐसा भी है, जो धर्म और जाति को अलग रख कर धर्म-निरपेक्षता की मिसाल कायम कर रहा है.
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इस शख़्स का नाम है सद्दाम हुसैन और ये बेंगलुरु का रहने वाला है. ये शख़्स वो काम कर रहा है, जो कम लोग ही कर पाते हैं. ये तो आप सभी को पता ही होगा कि आने वाली 14 अप्रैल को राम नवमी है और बेंगलुरु के राजाजीनगर की श्रीराम सेवा मंडली के लोग काफ़ी व्यस्त हैं. क्योंकि हर साल राम नवमी के दिन ये मंडली मंदिर के रथ के साथ राजाजीनगर में एक रथयात्रा निकालती है और हर साल इस काम को व्यवस्थित तरीके से संचालित कराने की ज़िम्मेदारी 27 वर्षीय सद्दाम हुसैन की ही है.
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इतना ही नहीं, सद्दाम ने इस मंदिर और मंदिर परिसर को साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी भी अपने कन्धों पर ले रखी है और वो इसे पूरे आत्मविश्वास के साथ बख़ूबी निभा भी रहे हैं. अगर आप इनसे इनका नाम पूछेंगे तो ये गर्व के साथ अपना नाम ‘सद्दाम हुसैन’ बताते हैं.
आज के टाइम में भी गंगा-जमुनी तहज़ीब को तवज्जो देने वाले सद्दाम केवल दूसरी कक्षा तक पढ़े हैं और अपना पेट पालने के लिए कई तरह की नौकरीयां भी करते हैं. वो लोगों को घर बदलने में सामान बदलने में उनकी मदद भी करते हैं, वो दुकान पर हेल्पर की तरह काम भी करते हैं और वो कैब भी चलाते हैं.
The New Indian Express में छपी ख़बर के अनुसार, इस राम मंदिर का निर्माण 1950 के आखिर में तब हुआ था, जब राजाजीनगर का लेआउट तैयार किया गया था. राजाजीनगर के ब्लॉक नंबर 4 में स्थित राम मंदिर में सद्दाम हर साल राम नवमी के दौरान सफ़ाई करते हैं. वो सफ़ाई करने के लिए किसी का इंतज़ार नहीं करते और मंदिर में जाकर सफ़ाई कार्य शुरू कर देते हैं. वो एक सीढ़ी लेते हैं और उस पर चढ़कर मंदिर की छत भी साफ़ करते हैं. वो पूरे मंदिर में झाड़ू लगाते हैं, झाड़-पोछ करते हैं और पोछा भी लगाते हैं. साथ ही पानी से धुलाई भी करते हैं. और ये साब काम वो अकेले ही करते हैं.
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वो मंदिर में रखी देवी सीता, भगवान राम और लक्ष्मण और बजरंग बलि जी की मूर्तियों पर चढ़ी धूल को तब तक साफ़ करते हैं, जब तक कि मूर्तियां नई जैसी न लगने लगें. इसके साथ ही वो ये भी सुनिश्चित करते हैं कि जब रथ यात्रा का ट्रायल हो तब वो रथ को न खींचें जो राम नवमी वाले दिन रथ को खींचने वाले हैं.
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लोगों का क्या कहना है सद्दाम जी के बारे में? इस सवाल पर सद्दाम का कहना है,
‘हमारे समाज में दो प्रकार के लोग हैं- एक वो जो मुझे इस काम के लिए प्रोत्साहित करते हैं और दूसरे वो जो मेरे काम को लेकर मुझ पर कमेंट करते हैं. पर मैं सबका जवाब मुस्कुरा कर ही देता हूं.’
कैसे शुरू किया ये काम?
सद्दाम ने बताया कि वेंकटेश बाबू, जो गांधीनगर में Gandige Angadi (जहां पूजा सामग्री बेची जाती है) के मालिक हैं, उन्होंने मुझे अपनी दुकान पर काम दिया. वहीं बाबू कहते हैं, ‘मैं गणेश चतुर्थी के दौरान भगवान गणेश की मूर्तियां बेचता हूं. सद्दाम मेरे साथ काम करता है. वो मैं था जिसने सद्दाम को मंदिर की वार्षिक सफ़ाई कार्य के लिए संदर्भित किया था और वो पूरी ईमानदारी के साथ इस काम को कर रहा है. हर कोई उसकी सराहना करता है. इतना ही नहीं उसकी मां मेहाबोबी भी अक्सर यहां आकर काम करती हैं, वो जहाज़ों की सफ़ाई करती हैं और लोगों के घरों में भी काम करती हैं.
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सेवा मंडली के पदाधिकारी Nagarajaiah और TS Padmanabha का कहना है, ‘विशेष अवसरों पर, हमारे पास 15 महिलाओं का एक समूह है जो मंदिर परिसर की सफ़ाई के साथ, जहाज़ों को भी साफ़ करती हैं और इनमें सभी महिलाएं मुस्लिम हैं. वो तय समय पर आती हैं, अपना काम करती हैं और चली जाती हैं. हम उनसे कभी उनके धर्म के बारे में नहीं पूछते हैं और न ही वो कुछ कहती हैं. और उनकी मेहनत के कारण मंदिर साफ़-सुथरा दिखता है.
हमारे समाज में कम ही लोग ऐसे हैं जो धर्म और समुदाय को अलग रख कर हर काम को करना अपना कर्तव्य समझते हैं.