सिर्फ़ 23 साल की उम्र में फांसी के फंदे को गले लगा लिया था भगत सिंह ने. शहीदी के लगभग 10 दशकों बाद भी भगत सिंह न सिर्फ़ भारतीयों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणस्रोत हैं.
पेश है उनकी चिट्ठी–
प्रिय भाई,
जिस बात पर हमारी बहस चल रही थी उस पर मैं अपना पक्ष लिए बिना नहीं रह सकता. मैं आशा और आकांक्षाओं से भरा हुआ हूं और वक़्त आने पर सब कुछ क़ुर्बान कर सकता हूं और यही असली बलिदान है. ये बातें किसी भी आदमी के रास्ते में रुकावट नहीं बन सकतीं, बशर्ते कि वो मनुष्य हो. जल्द ही तुम्हें इसका सबूत मिल जाएगा. किसी शख़्स के चरित्र के बारे में बात-चीत करते हुए तुमने पूछा था ‘क्या प्रेम ने कभी किसी पुरुष की सहायता की है?’ आज मैं उस सवाल का जवाब दूंगा. हां Mazzini की सहायता की थी. तुमने पढ़ा ही होगा कि अपनी पहली विद्रोही असफ़लता के बाद वो अपने मृत साथियों की याद बर्दाशत नहीं कर सके थे. अपनी बुरी हार के बाद या तो वो पागल हो जाते या फिर आत्महत्या कर लेते, पर उनकी प्रेमिका की चिट्ठी ने उन्हें जीवित रखा. उस एक चिट्ठी से वो किसी एक से नहीं, सबसे मज़बूत बन गए.
जहां तक प्रेम की नैतिकता का सवाल है, मैं ख़ुद कहता हूं कि वो और कुछ नहीं बस जुनून है, जानवरों वाला नहीं, इंसानों वाला, मिठास वाला. प्रेम कभी जानवरों वाला जुनून नहीं हो सकता. प्रेम हमेशा इंसान के चरित्र को ऊपर उठाता है. फ़िल्मों में दिखने वाली लड़कियों को प्रेम नहीं कहा जा सकता. वो बस पशुओं की तरह जुनून दिखाते हैं. सच्चा प्रेम कभी भी गढ़ा नहीं जा सकता. जब उसे आना होता है, आता है. कोई नहीं कह सकता कब. ये प्राकृतिक है. मैं तुम्हें बता रहा हूं कि एक जवान लड़का और लड़की एक-दूसरे से प्रेम कर सकते हैं और अपने प्रेम के ज़रिए ही जुनून से ऊबर कर अपनी पवित्रता बनाए रख सकते हैं.
मैं तुमसे एक और बात कहना चाहता हूं कि क्रांतिकारी सोच के होते हुए हम नैतिकता के संबंध में आर्यसमाजी ढंग की कट्टर सोच नहीं बना सकते. हम क्रांति को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, पर असल ज़िन्दगी में शुरुआत में ही थर-थर कांपते हैं. दिमाग़ में कोई ग़लत भावना न लिए हुए मेरा तुमसे निवेदन है कि तुम्हें अपना अति-आदर्शवाद कम करना होगा. जो पीछे छूट जाएंगे और मेरी जैसी बीमारी का शिकार होंगे, उनके प्रति कठोर न होना. उनकी निंदा करके उनकी परेशानियां मत बढ़ाना. उन्हें तुम्हारी सहानुभूति की ज़रूरत है. क्या मैं तुमसे ये आशा रख सकता हूं कि किसी के प्रति कोई द्वेष न रखते हुए, तुम उनसे तब सबसे ज़्यादा हमदर्दी दिखाओ, जब उन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होगी? पर तुम्हें तब तक इन बातों का एहसास नहीं होगा जब तक तुम ख़ुद इसके शिकार नहीं होगे. रही बात इसकी कि मैंने ये सब क्यों लिखा तो मैं बस खुलकर बात करना चाहता था. मैंने अपने दिल की सारी बातें कर ली.
ये चिट्ठी 5 अप्रैल, 1929 को लिखी गई थी. इतनी-सी आयु में संसार और इंसान से जुड़ी भावनाओं का इतना ज्ञान असंभव-सा लगता है… लेकिन भगत सिंह थे भी एक असंभव से इंसान.