शास्त्रों में लिखी यह बात कि ‘जिसने जन्म लिया है, उसकी एक ना एक दिन मृत्यु अवश्य होगी’, सौ प्रतिशत सच है. इस बात में कोई दो राय नहीं कि एक ऐसा समय भी था जब मृत्यु के सामने ‘अमर’ हो जाने जैसी बात खड़ी हो जाती थी, लेकिन कलयुग में अजर-अमर हो जाने जैसी बात की कल्पना करना भी व्यर्थ है. हालांकि वैज्ञानिक आये दिन मौत को चकमा देने से जुड़े प्रयोग करते रहते हैं. लेकिन आज हम आपको यहां किसी नए प्रयोग या उपलब्धि के बारे में नहीं, बल्कि प्राचीन काल में दुनिया में मौत और उसके बाद की जाने वाली कुछ विचित्र रस्मों से रू-ब-रु करवाने जा रहे हैं. इन अजीबोगरीब रस्मों के बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे.

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1. श्मशान साधना

भारत में शैव संप्रदाय में साधना की एक रहस्यमयी शाखा है, जिसे ‘अघोरपंथ’ के नाम से जाना जाता है. अघोरी बाबा का नाम आते ही आपके दिमाग में केवल एक ही छवि आती होगी, ऐसी तस्वीर जिसमें श्मशान में तंत्र क्रिया करने वाला साधु जिसकी वेशभूषा डरावनी होती है. ये ज्यादातर श्मशान में जाते हुए या वहां से निकलते हुए ही दिखाई देते हैं. श्मशान में इनका काम दाह संस्कार और उसके बाद होने वाली क्रियाओं में सम्मिलित होना होता है. ये दाह संस्कार के बाद उस राख को अपने शरीर पर मलते हैं, इसके अलावा शरीर के जलने बाद उसकी हड्डियों और उसके कपाल की माला बनाकर पहनते हैं. इसके साथ ही ये कपाल क्रिया में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

अघोरी श्मशान घाट में शमशान साधना, शव साधना और शिव साधना करते हैं. मान्यता है कि शव साधना को करने के बाद मुर्दा बोल उठता है और आपकी इच्छाएं पूरी करता है. शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है. इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पांव है. श्‍मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है. इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है. उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है. यहां प्रसाद के रूप में मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है.

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प्राचीन काल से भारत में एक मान्यता का पालन किया जाता रहा है कि साल के एक खास दिन इनको मानने वाले लोग मंदिर में जाते हैं, जहां ये अघोरी एक विचित्र तरह की चिलम जलाते हैं. उस चिलम के धुंए के साथ बुरी आत्माओं को भी अपने वश में कर लेते हैं. लेकिन आज भी कुछ लोगों का मानना है कि अगर उनके रिश्तेदारों के शवों को अघोरी खाते हैं, तो मृत्यु के बाद का उनका जीवन आसान होगा. हालांकि इस परंपरा का पालन भारत के किसी एक खास समुदाय द्वारा ही किया जाता है.

2. जापान की आत्म-ममीकरण प्रथा

दूसरी सबसे अजीबोगरीब प्रथा है ‘आत्म-ममीकरण’. जापान में इस प्रथा को 20वीं सदी में गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था. बौद्ध धर्म के अनुयायियों का मानना था कि आत्म-ममीकरण के माध्यम से वो खुद को दुनिया की मोह-माया से दूर कर सकते हैं. कुछ संत इस प्रथा का पालन करने के लिए तब तक खाना-पीना बंद कर देते थे, जब तक कि उनके प्राण न निकल जाएं. उसके बाद इन संतों के शरीर का ममीकरण करके रखा जाता था, ताकि उनके अनुयायी उनसे प्रेरणा ले सकें और उनकी भक्ति का सम्मान करें. यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत पुरुष या महिला आत्‍म-ममीकरण करती है. इस प्रक्रिया को करने के लिए संबंधित पुरुष व महिला को 3 वर्ष के लिए थोड़े से भोजन से ही गुजारा करना पड़ता है. जापान और उसके पड़ोसी देशों में यह प्रक्रिया आज भी अपनाई जाती है.

3. परिवार के लोग ही शव का मांस खाते हैं

यह शायद दुनिया में अंतिम संस्कार का सबसे बुरा तरीका होगा. परिवार के लोग मृतक के मांस को खाते हैं. शायद इसके पीछे यह मान्यता होगी कि मरने वाले की आत्मा और उसकी ताकत परिवार के लोगों को मिले. दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की कुछ जनजातियों के बीच इस तरह का विचित्र और घृणास्पद तरीका प्रचलित होने की बात कही जाती है. दक्षिण अमेरिका के वेनेजुएला में रहने वाली यानोमामो कम्युनिटी के लोग आज भी दाह संस्कार के बाद चिता से राख और हड्डियां खाते हैं.

4. मौत के लिए निर्जला उपवास

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यह एक निर्जला उपवास है, जिसमें व्यक्ति ना ही कुछ खाता है और ना ही कुछ पीता है. ये उपवास उतने दिनों तक किया जाता है, जब तक मौत ना मिल जाए. इसे करने वाला व्यक्ति सबसे पहले धीरे-धीरे खाना छोड़ता है. फिर और कम कर देता है और अंत में पानी पीना भी बंद कर देता है. यह प्रथा प्राचीन काल से जैन धर्म में चली आ रही है और आधुनिक युग में भी कुछ लोग इसे अपनाते हैं, लेकिन भारतीय कानून इसे काफी हद तक आत्महत्या भी मानता है.

5. ठूक्कम उत्सव

भारत में एक त्योहार है ‘ठूक्कम’, जिसमें लोगों को नुकीली वस्तु से छेदा जाता है और फिर कुछ घंटों के लिए लटका दिया ही छोड़ दिया जाता है. वैसे तो ये बहुत पुरानी परंपरा है, इस त्योहार को इंडियन गवर्नमेंट ने हाल ही में प्रतिबंधित किया है. इस त्योहार को अभी भी केरल में मनाया जाता है. लोगों की मान्यता है कि वो इसे मां काली को प्रसन्न करने के लिए करते हैं. लोगों के शरीर से खून बहता रहता है और फिर भी वो मां काली की खुश करने के लिए नाचते रहते हैं. इस प्रथा को मानने वाले लोगों का कहना है कि प्राचीन समय में छेदे गए व्यक्ति को लटका कर देवी के मंदिर ले जाया जाता था और उसके बहते खून को देवी को अर्पित किया जाता था.

इसी प्रथा का एक वीडियो हम आपको दिखाते हैं.

दुनिया में विभिन्न धर्म, समुदाय, जाति और समूहों के रीति-रिवाज काफी अलग-अलग हैं. दुनिया के सभी देशों में अलग-अलग धर्मों का पालन किया जाता है. कहीं हिंदू तो कहीं मुस्लिम, कुछ लोग ईसाई धर्म को मानते हैं, तो कुछ बौद्ध धर्म के उपासक हैं. सभी धर्मों की अपनी एक परंपरा है और रीति भी. मनुष्य के जन्म, विवाह और मृत्यु जैसी जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को लेकर कई तरह की परंपराएं प्रचलित हैं. ये ऐसी रीतियां हैं, जिन्‍हें अब आम आदमी देखना भी नहीं पसंद करता है.

ये कुछ ऐसी प्राचीन प्रथाएं है, जो कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में आज भी हमारे समाज में फैली हुई हैं. प्राचीन समय में इन प्रथाओं का पालन करने के पीछे का कारण अन्धविश्वास तो था ही. साथ ही इनको भगवान के प्रति अपनी आस्था दिखाने का एक जरिया भी माना जाता था.