आजकल हर व्यक्ति अपनी दिनचर्या से लेकर अपने खान-पान की आदतों में प्राकृतिक चीज़ों का इस्तेमाल करने की कोशिश करता है. फिर चाहे वो नहाने का साबुन हो या खाने की कोई वस्तु. इतना ही नहीं आजकल लोग एक बार फिर से आयुर्वेद को अपना रहे हैं. लेकिन कभी आपने सोचा है कि हम नेचर को संरक्षित करने के लिए बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं पर क्या हम खुद अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए कोई ठोस कदम उठाते हैं? क्या हम खुद को स्वस्थ रखने के लिए वातावरण को शुद्ध रखने की कोशिश करते हैं? शायद नहीं.

लेकिन हम सब से और वास्तविकता से दूर, 71 वर्षीय डॉ. सुरेश ने खुद के लिए एक ऐसा घर बनाया है, जहां उनको किसी भी चीज़ के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं होना पड़ता है.

डॉ. सुरेश के इस घर में आपको देखने को मिलेगा बायोगैस प्लांट, छत पर लगा हुआ सोलर पॉवर प्लांट, और साथ ही आप देखेंगे घर के पीछे सब्जियों का एक बगीचा.

इनको कभी भी आये दिन होने वाली पॉवरकट की समस्या से दो-चार नहीं होना पड़ता है. और न ही इनको खानी पड़ती हैं बाज़ार में मिलने वाली कीटनाशक युक्त हानिकारक सब्जियां. ऐसा इसलिए है क्योंकि डॉ. सुरेश को जिस भी सामान ज़रूरत होती है, वो उसे खुद अपने घर में पैदा कर लेते हैं.

अपने परिवार के साथ चेन्नई के किल्पौक में रहने वाले डॉ. सुरेश ने आईआईटी मद्रास और आईआईएम-ए से ग्रेजुएशन किया है. आज अपने इस इको-फ्रेंडली घर की वजह से वो देश के हज़ारों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुके हैं.

हालांकि, इस तरह का घर बनाने का विचार उनको अपनी जॉब के दौरान कई बार की गई जर्मनी की ऑफ़िशियल ट्रिप्स के समय आया. जहां उन्होंने देखा कि कैसे वहां के आम लोग पूरी तरह से उच्च स्तरीय सोलर पैनल्स पर निर्भर हैं.

जनवरी 2012 के आस-पास सुरेश ने अपने घर की छत पर 1 kW का सोलर प्लांट इनस्टॉल किया और उससे उन्होंने पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा का उत्पादन किया. उसके बाद अप्रैल 2015 में उन्होंने उसी पैनल की क्षमता 1 kW से बढ़ाकर 2 kW कर दी, जिससे उनके घर के 11 पंखे और 25 लाइट्स, एक रेफ्रिजरेटर, 2 कंप्यूटर, 1 वाटर पम्प, 2 टीवी, 1 मिक्सर ग्राइंदर, 1 वाशिंग मशीन और एक इनवर्टर एसी आराम से चलने लगा.

The Hindu को सुरेश ने बताया, ‘इस सोलर प्लांट को इनस्टॉल करने के बाद से मैंने कभी भी किसी भी तरह की बिजली सम्बन्धी समस्या का सामना नहीं किया और पारंपरिक EB Source के जरिये मेरी बिजली की ज़रूरतें पूरी होने लगीं और साथ ही बिजली की खपत भी कम हो गई.’

इसके साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि तमिलनाडू एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (TEDA) की मदद से इस सोलर पैनल को लगाने का कुल खर्च केवल 2.5 लाख ही आया, जिसमें 80000 तो सब्सिडी चार्ज ही था.

उन्होंने बताया, ‘यह पूरी तरह से स्थायी, सस्ती, व्यवहार्य परियोजना है और वर्तमान में यह 6% टैक्स-फ्री रिटर्न के साथ बैटरी को बदलने की स्कीम भी दे रहा है.’

आये दिन हो रही बिजली की कमी और बढ़ती ज़रूरत को देखते हुए अगर थोड़ी सी कोशिश करके डॉ. सुरेश से प्रेरणा लेकर हम भी अपने घरों में सोलर पैनल लगवा लें, तो हम बिजली की समस्या को कम करने में काफी हद तक मदद कर सकते हैं और साथ ही अपने वातावरण को साफ़ और सुरक्षित करने में भी अपना योगदान दे सकते हैं.