इन दिनों भले ही भारत में चीन और उसके उत्पादों का विरोध हो रहा है. लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब चीन ने मुसीबत के समय में आवाज़ लगाई थी तो भारत ने दौड़ कर उसकी मदद की थी. ये वो दौर था जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानियों ने चीन पर हमला कर दिया था. उनके सैंकड़ों सैनिक मारे गए थे और न जाने कितने घायल थे और उनका इलाज करने को डॉक्टर कम पड़ रहे थे.
संकट की इस घड़ी में भारत ने अपने यहां से 5 डॉक्टर्स की एक टीम भेजी थी, जिनमें डॉ. द्वाराकानाथ कोटनिस भी थे. वही कोटनिस जिन्होंने चीनी नागरिकों की ऐसी सेवा की कि लोग उन्हें ‘ब्लैक मदर’ कहर बुलाने लगे.
उन्हीं डॉक्टर कोटनिस के सेवा भाव को याद करते हुए आज चीन अपने देश के उत्तरी क्षेत्र में बने एक मेडिकल कॉलेज में उनकी कांसे की प्रतिमा लगाने जा रहा है. इस कॉलेज में पहले से ही उनकी एक संगमरमर की मूर्ति जिसके आगे शपथ लेकर यहां के छात्र डॉक्टर बनते हैं.
डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस का महाराष्ट्र के शोलापुर से थे. उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय के सेठ जी.एस. मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई की थी. 1938 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चीनी नेता Zhu De ने पंडित जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे कांग्रेसी नेताओं को एक पत्र लिख कर मदद मांगी थी.
उन्होंने भारत से डॉक्टर्स की मांग की थी जो उनके सैनिकों और नागरिकों का इलाज कर सकें. इसके बाद भारत ने दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए संकट की इस घड़ी में चीन को 5 डॉक्टर्स की एक टीम भेजी थी. डॉक्टर कोटनिस उन्हीं में से एक थे. डॉ. कोटनिस ने चीन पहुंचकर पूरे मन से चीनी लोगों की सेवा की.
वो दिन रात उनकी सेवा में जुटे रहते थे. एक बार तो उन्होंने लगातार 72 घंटे तक घायल सैनिकों की सर्जरी की थी. वो टांके लगाते वक़्त इस बात का ध्यान रखते थे कि मरीज़ को अधिक दर्द न हो. वो चीनी लोगों के बीच काफ़ी फ़ेमस हो गए उन्हें लोग प्यार से ‘दिहुआ’ और Dr. Thoughtful कहकर बुलाते थे. पिता के देहांत के समय भी डॉ. कोटनिस ने घर जाने की जगह चीनी नागरिकों की सेवा करने को प्राथमिकता दी.
एक-एक कर उनके दोस्त भारत वापस लौट आए लेकिन वो चीन में डटे रहे. यहां उन्होंने मेंडरिन सीखी और एक चीनी लड़की Guo Qinglan से शादी की. दोनों का एक बेटा भी था जिसका नाम Yinhua था. चीनी सैनिकों का इलाज करते-करते उनकी भी तबियत ख़राब हो गई. उन्हें मिरगी के दौरे पड़ने लगे, मगर डॉ. कोटनिस ने अपने कर्तव्य से कभी समझौता नहीं किया. 9 दिसंबर 1942 को वो चीनी नागरिकों की सेवा करते-करते दुनिया से चले गए.
जब उनका देहांत हुआ तो वो महज 32 साल के थे. डॉ. कोटनिस के निधन पर पूरे चीन की आंखें नम थीं. चीन के महान नेता Mao Zedong ने उनके निधन पर कहा था- ‘सेना ने एक मददगार हाथ खो दिया है और राष्ट्र ने एक दोस्त खो दिया है. हम उनके योगदान को कभी भुला नहीं सकते.’
डॉ. कोटनिस के नाम पर चीन के Shijiazhuang प्रांत में एक मेडिकल स्कूल भी बना है जिसका नाम है Shijiazhuang Ke Dihua Medical Science Secondary Specialized School.
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