भारत में माहवारी (पीरियड्स) आज भी कई लोगों के लिए शर्म की बात है. हम इस बात को कतई अनदेखा नहीं कर सकते. लेकिन हमें इस बात की ख़ुशी भी है कि पिछले कुछ वर्षों में पीरियड्स को लेकर लोगों का नज़रिया भी बदल रहा है.
अब तो महिलाओं को पीरियड्स के दौरान सस्ते और इको-फ्रेंडली सेनेटरी पैड भी मिल जाते हैं. मगर सवाल ये भी है कि महिलाओं को ये विकल्प कितनी आसानी से उपलब्ध होतें है? ऐसा नहीं है कि इन उपायों के बारे में लोग बात नहीं करते. बात तो करते हैं मगर ये उपाय लागू नहीं हो पाते हैं.
अब आप कोयंबटूर की रहने वाली इशाना को ही देख लीजिए.
असुविधाजनक और सिंथेटिक कपड़ों से बने पैड इस्तेमाल करने से वातावरण को हो रहे नुसकान को देखते हुए इशाना ने ख़ुद ही इको-फ्रेंडली सेनेटरी पैड की पहल शुरू की है. ये पैड इको-फ्रेंडली होने के साथ-साथ रुई के बने होंगे.
इशाना ने पीरियड्स के दौरान महिलाओं को हो रही तक़लीफ़ को देखते हुए ये पहल शुरू की है. आज इशाना कोयंबटूर में एक छोटी सी दुकान में 20 अन्य महिलाओं की मदद से इको-फ्रेंडली सेनेटरी पैड बना रही हैं. ख़ास बात ये है कि ये सभी महिलाएं महीने का करीब 5,000 कमा लेती हैं.
Tamil Nadu: Ishana, an 18-yr-old from Coimbatore is producing reusable cotton sanitary napkins. She says, “Chemical gel in ordinary sanitary napkins poses health hazards to women. The sanitary napkin I’ve developed is made of layers of cotton cloth. It’s reusable & eco-friendly”. pic.twitter.com/uSY2U7Lqd2
— ANI (@ANI) November 12, 2019
इशाना ने अपनी पढ़ाई ख़त्म करने के बाद छः महीने का फ़ैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया. कोर्स ख़त्म होने के बाद उन्होंने किसी बड़े ब्रांड के साथ काम करने के बजाय ग़रीब व ज़रूरतमंद महिलाओं के लिए काम करने का फ़ैसला किया.
इशाना द्वारा बनाये गए इन पैड्स की सबसे ख़ास बात ये है कि अन्य हानिकारक पैड्स के मुक़ाबले ये Biodegradable पैड्स रुई की कई परतों से बने हैं. ये पैड्स महिलाओं व वातावरण दोनों के लिए सुरक्षित हैं. जहां एक तरफ़ सिंथेटिक पैड्स को Decompose होने में सालभर लग जाते हैं, वहीं ये पैड्स 6 दिन में ही Decompose हो जाते हैं.
आमतौर पर एक महिला को हर साल करीब 60-70 पैड की आवश्यकता होती है, वहीं इशाना का दावा है कि यदि महिलाऐं ये पैड इस्तेमाल करती हैं तो उन्हें साल में सिर्फ़ 6 से 7 पैड्स की ही आवश्यकता होगी. पोपलिन के कपड़ों से बने ये पैड्स कई निर्देशों के साथ आते हैं, ताकि लोगों को इसे इस्तेमाल करने में कोई दिक्कत न हो.
इशाना बताती हैं कि इन पैड्स को बनाने में 15 से 20 मिनट लग जाते हैं. इशाना एक साथ 60-70 पैड्स बनवाने के लिए स्थानीय दर्जी को 400 रुपये भी देती हैं. इससे गांव के ग़रीब व बेरोजगारों को भी रोजगार मिल रहा है.
इशाना के इस नेक काम का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव स्थानीय और उनके साथ काम करने वाली महिलाओं पर पड़ रहा है.