सनातन धर्म में सभी कर्मकांडों को वैज्ञानिक आधारों से जोड़ा गया है. यहां किसी नियम और कृत्य को करने से पहले उसे व्यवहारिकता और विज्ञान की कसौटी पर जांचा गया है. बदलते दौर के साथ हमारी जीवनशैली भी काफ़ी बदलती गई. इन सब के बीच हमने अपनी धार्मिकता और ईश्वर के प्रति आस्था को, तो बनाये रखा लेकिन साधना के तरीकों में काफ़ी परिवर्तन कर डाले.

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हम सभी को घर वाले बचपन से ही मन्दिर लेकर जाने लग जाते हैं, जहां हम अपनी आस्था को ईश्वर के समक्ष रखते हैं. इस दौरान आपने कभी यह सोचने की कोशिश करी कि जब सभी चीजें किसी न किसी नियम में बंधी हुई है, तो मन्दिर जाने और प्रार्थना करने के भी कुछ नियम-कायदे होंगे. आज हम उन्हीं नियमों के बारे में विस्तार से जानते हैं, जिनको अपनाकर मनुष्य ईश्वरीय कृपा से अधिकाधिक लाभान्वित हो सकता है.

प्रथम चरण- मन्दिर के लिए निकलने से पहले घर पर ईश्वर का स्मरण करना

अपने आराध्य का नाम लेकर घर से मन्दिर के लिए निकलते वक्त प्रार्थना करनी चाहिए. ‘हे ईश्वर मैं आपके दर्शन के लिए आना चाहता हूं, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें.’

द्वितीय चरण- मन्दिर परिसर पहुंचने के बाद आभार व्यक्त करना

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मन्दिर परिसर में पहुंचने के बाद में हमें ईश्वर का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उन्होंने हमें अपनी शरण में आने का मौका दिया.

तृतीय चरण- देवालय में प्रवेश करने से पहले निभाना चाहिए इन नियमों को

1. सबसे पहले चमड़े के बने किसी भी वस्त्र को उतार देना चाहिए और कोई चमड़े का बना सामान हो, तो उसे साइड में रख देना चाहिए.

2. मन्दिर परिसर में कभी भी जूते या सैंडल पहन कर नहीं प्रवेश करना चाहिए.

3. अगर मन्दिर प्रांगण में पानी की व्यवस्था हो, तो हाथ-पांव अच्छे से धो लेने चाहिए.

4. हाथ-पांव धो लेने के बाद दायें हाथ की हथेली में पानी लेकर उसे ‘अपवित्र:पवित्रोवा’ का जाप करते हुए तीन बार अपने शरीर पर छिड़कना चाहिए.

5. मन्दिर परिसर में कभी भी अपनी गर्दन को किसी कपड़े से ढक कर अंदर नहीं जाना चाहिए.

6. हो सके तो पुरुषों को अपने ऊपरी वस्त्र (शर्ट) को निकाल कर देवालय में प्रवेश करना चाहिए.

7. पुरुष और स्त्री दोनों को ही सिर को बिना ढके हुए देवालय में नहीं जाना चाहिए.

8. मुख्य द्वार में प्रवेश करते समय ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करनी चाहिए.

‘हे ईश्वर मुझे इतनी शक्ति दो कि मेरा मन देवालय में किसी भटकाव को ना महसूस करे. मैं पूरी श्रद्धा के साथ आपके समक्ष रहूं’.

10. मन्दिर की सीढ़ियों को चढ़ते समय उन्हें अपने दाहिने हाथ से छू कर माथे पर लगाना चाहिए.

चतुर्थ चरण- देवालय में प्रवेश के बाद निभाए जाने वाले क्रियाकलाप

1. सबसे पहले मन्दिर में बने गुम्बद को देख कर अपनी श्रद्धा उस पर व्यक्त करनी चाहिए.

2. मन्दिर में लाइन में लगते समय बाकी श्रद्धालुओं की प्रार्थना को अनदेखा करके शान्त भाव से अपनी प्रार्थना का स्मरण करते रहना चाहिए.

3. मन्दिर परिसर के केंद्र (सभामंडप) में आकर अपने दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में जोड़ लेना चाहिए.

4. इस समय हमें यह स्मरण करना चाहिए कि हमारा ईश्वर भी हमारी तरह हमें देख रहा है.

5. ईश्वर से हाथ जोड़ कर मन में निवेदन करना चाहिए कि ‘हे प्रभु इस नादान प्राणी पर अपनी कृपा हमेशा बनाये रखना.’

उसके पश्चात गर्भ गृह के पास जाकर मन्दिर परिसर की बाईं दिशा में खड़े हो जाना चाहिए.

पांचवा चरण- अपने आराध्य के दर्शन करते समय

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इसे भी कई चरणों में बांटा गया है.

पहला चरण- देवता के दर्शन से पहले

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1. जहां तक हो सके मन्दिर की घंटी को नहीं बजाना चाहिए, यदि बजाते भी हैं, तो काफ़ी शान्त ध्वनि में बजाना चाहिए.

2. शिव मन्दिर में जाने पर शिवलिंग के दर्शन से पहले नंदी के दर्शन करने चाहिए.

3. अनेक मन्दिरों के गर्भ गृह में जाना वर्जित होता है लेकिन कुछ मन्दिरों में इसकी अनुमति होती है. गर्भ गृह में जाने से पहले श्री गणपति को नमस्कार कर लेना चाहिए.

दूसरा चरण- आराध्य की प्रतिमा के दर्शन करते समय

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1. हो सके तो कभी भी प्रतिमा के बिल्कुल सामने खड़े होकर प्रार्थना नहीं करनी चाहिए. एक तरफ़ साइड में खड़े होकर प्रार्थना करना सबसे उत्तम होता है.

2. प्रार्थना करते समय सबसे पहले प्रतिमा के चरणों की तरफ़ देखना चाहिए. अपना ध्यान ईश्वर में लगाते हुए, उसके बाद उनके सीने के केंद्र बिंदु पर देखना चाहिए. अंत में अपने आप को समर्पित करते हुए प्रभु की आंखों में देख कर उनकी छवि अपनी आंखों में बसा लेनी चाहिए.

3. उसके बाद प्रभु के चरणों को देखते हुए अपने सिर को झुका लेना चाहिए. इस दौरान पुरुषों को अपने सिर को नहीं ढकना चाहिए. महिलाओं को इस समय भी अपने सिर को ढके हुए ही रहना होता है.

तीसरा चरण- दर्शन करते समय किये जाने वाले क्रियाकलाप

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1. गर्भ गृह के दाहिने रास्ते से बाहर निकलना चाहिए, निकलते समय अग्नि मंडप को नमस्कार करना चाहिए.

2. उसके बाद बाएं रास्ते से पुन: प्रवेश करना चाहिए. गर्भ ग्रह में अगर सूर्यनारायण की प्रतिमा हो, तो उसे अब प्रणाम करना चाहिए.

3. इसके बाद फिर बाहर निकल कर परिक्रमा करके फिर से अपने आराध्य के दर्शन करना चाहिए.

4. इसके बाद प्रदक्षिणा करनी चाहिए.

गर्भ ग्रह के बाहर बाएं साइड से परिक्रमा शुरू करनी चाहिए, उसके बाद दायें साइड में आकर प्रभु के दर्शन करने चाहिए.

5. परिक्रमा करते समय अपनी गति को मध्यम रखना चाहिए और मन में ईश्वर का नाम लेते रहना चाहिए.

6. परिक्रमा करते समय गर्भ गृह की बाहरी सतह को नहीं छूना चाहिए.

7. पुरुष साधकों को सम क्रमांक (2,4,6) और महिला साधकों को विषम क्रमांक (1,3,5) में परिक्रमा लगानी चाहिए.

पांचवा चरण- नारियल चढ़ाना

इन सब के पश्चात प्रतिमा के समक्ष दान और नारियल चढ़ाना चाहिए.

छठवां चरण- चरणामृत और प्रसाद लेना

चरणामृत को हमेशा दायें हाथ से लेना चाहिए, उसे ग्रहण करने के बाद हाथों को आंखों पर लगाना चाहिए.

प्रसाद को भी हमेशा दाहिने हाथ से ही ग्रहण करना चाहिए. प्रसाद को बैठ कर खाना चाहिए. यदि आप प्रसाद घर ले जाना चाहते हैं, तो उसे साफ कपड़े में लपेट कर ले जा सकते हैं.

सातवा चरण- देवालय से प्रस्थान करते समय

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देवालय से बाहर निकलते समय फिर से हाथ जोड़ कर अपने प्रभु को आभार व्यक्त करना चाहिए.

बाहर निकलते समय अपनी पीठ को आराध्य की प्रतिमा की तरफ़ नहीं रखना चाहिए.

मुख्य परिसर से बाहर निकल कर मन्दिर के ऊपर लगे ध्वज को प्रणाम करके अपने गन्तव्य की और बढ़ जाना चाहिए.

इस तरह इन सभी क्रियाओं को श्रद्धा के साथ करके आप ईश्वर की असीम ऊर्जा को अपने अंदर महसूस करेंगे. मन्दिर जाने से जहां हमें ईश्वर से एक जुड़ाव महसूस होता हैं, वहीं हमारी दिनचर्या में भी निरंतरता आती है. मन्दिर जाना शरीर और मन दोनों के लिए सकारात्मक प्रभाव लाता है.