‘अंधेर नगरी चौपट राजा’, ‘उर्दू का स्यापा’ से लेकर ‘प्रेबोधिनी’ के रचेता भारतेंदु हरिश्चंद्र. हिन्दी साहित्य को दशा और दिशा देने का पूरा श्रेय इन्हें दिया जाता है. इन्हें हिन्दी नाटक का पितामह भी कहा जाता है.

उनकी अंधेर नगरी चौपट राजा लगभग सभी ने पढ़ी, सुनी या देखी ही होगी. हरिश्चंद्र सिर्फ़ नाटक या काव्य ही नहीं लिखते थे, बल्कि पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उनका महत्वपर्ण योगदान है. हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारंभ काल भारतेंदु हरिश्चंद्र के काल से ही माना जाता है.

काशी में जन्मे हरिश्चंद्र को भारतेंदु की उपाधि मिली थी, उनका नाम सिर्फ़ हरिश्चंद्र था. बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कुछ गज़लें भी लिखी थी. उन्हीं गज़लों के कुछ शेर आज हम नज़र कर रहे हैं :

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