सर्दियों में अक्सर एक फिलॉसोफिकल सवाल हमें हर सुबह परेशान करता है. ऑफिस या स्कूल जाने से पहले कड़कड़ाती ठंड में नहाना आखिर इतना जरूरी क्यों है या फिर रोज़ नहाना ही आखिर क्यों जरूरी है? अक्सर लोग रोज़ नहाने को पर्सनल हाइजीन, मूड और स्वास्थ्य के साथ जोड़कर देखते हैं लेकिन एक नई रिसर्च कई बनी बनाई स्टीरियोटाइप्स को तोड़ती नज़र आ रही है.
कुछ रिसर्चर्स का मानना है कि लोगों को अपनी निजी गंध को नष्ट नहीं करना चाहिए. वहीं एमेजॉन के जंगलों में यानोमामी समूह पर रिसर्च में सामने आया है कि काफ़ी ज्यादा नहाने से माइक्रोबायोम के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है. माइक्रोबायोम, माइक्रोब्स की वो प्रजाति है, जो हमारे शरीर में रहती है.
लेकिन कुछ लोग कई कदम आगे जाते हुए रोज़ नहाने को लेकर एक गंभीर रिसर्च करना चाहते हैं और इसके लिए सालों से नहाना छोड़ चुके हैं. दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित कॉलेजों में शुमार एमआईटी से ग्रेजुएट एक शख्स का दावा है कि वह पिछले 12 सालों से नहीं नहाया है. खास बात ये है कि उसकी जॉब अब भी सही सलामत है.
नहाने के बजाए, ये शख्स अपनी बॉडी पर एक खास तरह के तरल पदार्थ के स्प्रे का इस्तेमाल करता है, जिसे इसने खुद ही तैयार किया है. इस शख्स का दावा है कि इस तरल पदार्थ में ‘अच्छे’ बैक्टीरिया की मौजूदगी है, जिसकी वजह से इसे नहाने की जरूरत भी महसूस नहीं होती.
हालांकि इस स्प्रे को बनाने वाली कंपनी की सलाह है कि लोगों को इस लिक्विड से अपने हाथ धोने चाहिए और कम से कम साबुन का इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि नहाना पूरी तरह से छोड़ देना आसान प्रक्रिया नहीं है. लेकिन इसे बनाने वाले शख्स डैन विटलॉक एक कदम आगे बढ़ते हुए नहाने को पूरी तरह से त्याग चुके हैं.
डैन ने बताया कि मेरे पास कोई बॉयोलॉजी की डिग्री नहीं है. मैं किसी ऐसे संस्थान से नहीं था, जो अपनी बॉयोलॉजिकल रिसर्च के लिए जाना जाता था और मैं एक ऐसे प्रयोग पर काम कर रहा हूं, जिसे लेकर समाज में बनी-बनाई धारणा मौजूद है लेकिन मेरी कोशिश है कि इस धारणा को तोड़ा जाए. इस स्प्रे में मौजूद बैक्टीरिया शरीर से निकलने वाले पसीने के अमोनिया को खत्म कर देता है. इसे बनाने वालों का दावा है कि ये क्लिंज़र और डियोड्रेंट के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक बूस्टर के तौर पर भी काम करता है.
विटलॉक की थ्योरी है कि जब आप नहीं नहाते हो, तो आपके शरीर पर माइक्रोब्स की अदृश्य परत बनी रहती है, जो आपके स्वास्थ्य के लिए नहाने से ज्यादा बेहतर है. वहीं न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्टर के मुताबिक, डैन भले ही कई सालों से न नहाए हों लेकिन हैरानी की बात ये थी कि एक दशक से भी ज्यादा समय से नहीं नहाने वाले डैन, एकदम किसी सामान्य इंसान की तरह ही महक रहे थे.
विटलॉक ने कहा कि मैं ये देखना चाहता था कि दुनिया में साबुन आने से पहले लोगों की त्वचा पर आखिर क्या असर होता था. मुझे पता नहीं था कि इससे मेरी स्किन पर आखिर कैसा असर होने वाला था, लेकिन मैं इस प्रयोग को करना चाहता था.
विटलॉक इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि ज्यादा नहाने से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. लेकिन इस बात की कोई पब्लिशड रिसर्च नहीं है, जिसकी वजह से विटलॉक को एक सही नतीजे पर पहुंचने में मदद नहीं मिल पा रही है.
विटलॉक के अनुसार, कई सारे लोगों को एक लंबे समय तक न नहाने के लिए तैयार करना एक चुनौतीपूर्ण काम है. यही वजह है कि ज्यादा नहाने से स्वास्थ्य पर होने वाले नुकसानों के बारे में एक अच्छी रिपोर्ट तैयार करना उनके लिए चुनौती बन गया है. इस मसले से जुड़े जितने भी रिसर्च हुए हैं उनमें अक्सर लोग अपने ऊपर ही प्रयोग करते हैं जो एक बड़ा सैंपल नहीं है.
डैन का ये अजीबोगरीब प्रयोग कब कामयाब होगा, ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन अगर आप भी हर सुबह सर्दियों में नहाने को लेकर हैरान परेशान रहते हैं तो कभी-कभी न नहाकर भी काम चलाया जा सकता है, यकीनन इस मामले में डैन विटलॉक आपको जरूर समर्थन देंगे.