दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में चल रही धूल भरी आंधी के हवा राजस्थान होते हुए दिल्ली में रुक गई है और दिल्ली की आबोहवा बद बदतर हो चुकी है. दिल्ली में हवा की गुणवत्ता ख़तरनाक स्तर से भी पार निकल चुकी है. दिल्ली में स्मॉग का लेवल इतना ज़हरीला हो चुका है, जितना प्रदूषण का स्टार मापने वाली डिवाइस भी नहीं माप सकती है. देश की राजधानी दिल्ली में स्मॉग का लेवल सर्दी आने से पहले ही बहुत ख़तरनाक हो चुका. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने बताया कि पश्चिमी भारत खासतौर से राजस्थान में धूल भरी आंधी चलने के कारण हवा की गुणवत्ता एकदम खराब हो गई है. हवा में मोटे कणों की मात्रा बढ़ गई है.

theguardian के अनुसार, बीते मंगलवार से पूरी दिल्ली पर धूल भरी धुंध की मोटी परत चढ़ी हुई है. सरकार के कुछ प्रदूषण मॉनीटरों ने दिल्ली की हवा में 999 की सांद्रता दर्ज की है. वो भी तब कि इनसे इससे ज़्यादा मापना मुमकिन नहीं था. क्योंकि राजस्थान राज्य के आसपास धूल तूफानों ने इस क्षेत्र को धूल से कवर कर दिया था.

हांलांकि, प्रदूषण के स्तर में अचानक हुई इस बढ़त के लिए धूल और रेत बादलों को दोषी ठहराया गया था. सर्दियों से कई महीनों पहले दिल्ली में छाये घने-घने धुंध ने लोगों में प्रदूषण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाई है कि आने वाले एक साल के लिए स्मॉग की समस्या दिल्ली पर मंडराती रहेगी.
river of dust, high atmospheric aerosol loading, and hazardous air quality over N.I. subcontinent, as seen today by @nasa satellites and forecast at https://t.co/wBpx9GB1Cn – data from @NASAEarthData #worldview @airqualityindia @PakAirQuality @Open_AQ @jksmith34 @CBhattacharji pic.twitter.com/KnE25oTBJs
— NGEL (@nexgenearth) June 14, 2018
गौरतलब है कि दिल्ली में वायु की गुणवत्ता आमतौर पर अक्टूबर में घटने लगती है, जब धीमी हवाओं और कम तापमान के कारण प्रदूषक जम जाते हैं और ज़मीन के काफी नज़दीक होते हैं. लेकिन सरकार के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है कि हवा की गुणवत्ता को “बहुत अस्वास्थ्यकर” श्रेणी में इंडेक्स स्कोर 270 के साथ वर्गीकृत किया गया है. पिछले तीन वर्षों से हर अप्रैल और मई में अधिकारियों ने आंकड़ों को इकट्ठा करना और प्रकाशित करना शुरू किया था.

पिछले तीन सालों से अप्रैल और मई केवल एक दिन ऐसा देखा गया है, जब वायु की गुणवत्ता अच्छी मापी गई है. वहीं इस साल 12 अप्रैल को स्तर 99 पर गिर गया था. भारत में वायु गुणवत्ता का अध्ययन करने वाले एक इंडिपेंडेंट शोधकर्ता ऐश्वर्या सुधीर ने कहा, ‘ये स्पष्ट रूप से दिखाता है कि ये भी गर्मियों की एक समस्या है.’
अधिकारियों ने प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए एक हफ़्ते तक राजधानी और उसके आस-पास शहरों में हर तरह के निर्माण कार्य को रोकने का आदेश दिया है, और डॉक्टरों ने लोगों को सलाह दी है कि वो जितना संभव हो सके घर में ही रहें. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि शहर भर में धूल की एक परत की उपस्थिति भी गर्मी को बढ़ा रही है, जिससे दिन पर दिन तापमान 40 सेंटीग्रेड से अधिक रह रहा है.

अगर हवा की गुणवत्ता की बात की जाए तो शरद ऋतु में हिंदू त्यौहार दिवाली के बाद उत्तर भारत में वायु की गुणवत्ता सबसे ज़्यादा प्रभावित होती है और तब इसका संकट और बढ़ जाता है. दिवाली के मौके पर इंडियंस हज़ारों पटाखे जलाते हैं, जिसके कई तरह के हानिकारक और ज़हरीले प्रदूषकों की परत वायुमंडल में जम जाती है, जो तापमान के ठंडा होने तक महीनों ऐसे ही बना रहता है. पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, पिछले साल नवंबर में कुछ दिनों के लिए प्रदूषण का स्तर प्रतिदिन 50 सिगरेट धूम्रपान करने के बराबर था.
हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार भारत के 14 शहरों का नाम दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में टॉप पर था. इन शहरों में श्वसन रोगों की दर किसी भी देश की उच्चतम दर है. लंग्स इस्पेशलिस्ट, अरविंद कुमार का कहना है कि सबसे कम आयु के कैंसर रोगियों में दिल्ली का नाम आता है. इनमें में महिलाओं की संख्या ज़्यादा है. वहीं जो शहर के बाहर के लोग हैं और सिगरेट नहीं पीते हैं उनकी संख्या ज़्यादा है. इस मामले में बच्चों की बुरी स्थिति है, 2015 में हुई एक स्टडी के अनुसार, दिल्ली के लगभग हर 4.4 मीटर की दूरी पर एक स्कूल जाने वाले बच्चे को लंग इन्फ़ेक्शन हुआ और जो कभी पूरी तरह से ठीक नहीं हो सका.

लेकिन स्थानीय और केंद्र सरकारों पर से वायु प्रदूषण को कम करने का दबाव फरवरी महीने में कम हो जाता है, जब मौसम गर्म होने लगता है और जमा हुआ धुंआं पिघल जाता है. वहीं, ऐश्वर्या सुधीर ने कहा, इस हफ्ते प्रदूषण के स्तर में हुई बढ़ोतरी एक वेक-अप कॉल है कि दिल्ली की हवा शायद ही कभी भी सुरक्षित है. गर्मी के दौरान शहर में होने वाली निर्माणकार्य, सड़कों पर उड़ने वाली धूल के कारण भी प्रदूषण बढ़ता है.’

जनवरी 2017 के बाद से एक कार्य योजना के तहत, इस सप्ताह दर्ज किए गए इस प्रकार के प्रदूषण के स्तर के परिणामस्वरूप ट्रक्स को शहर में प्रवेश करने से रोक दिया जाना चाहिए था. इसके साथ ही ईंट की भट्टियों और अन्य प्रदूषणकारी उद्योगों को बंद कर देना चाहिए था और डीजल जेनरेटर का उपयोग करने पर प्रतिबंध भी प्रतिबन्ध लगाना चाहिए था. लेकिन अभी तक सरकार इन उपायों में से केवल कुछ को लागू करने के लिए दिख रही है, और वो भी केवल इसलिए क्योंकि लोगों ने इसका विरोध किया था.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ‘हम केवल तभी कार्य करते हैं जब यह आपातकालीन स्थिति हो.’ मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की थी कि धूल भरी आंधी पूरे रीजन को प्रभावित कर सकती है. तो सरकार को तूफ़ान आने से पहले कुछ उपाए करने चाहिए थे न कि अब जब स्थिति गंभीर हो गई है.’