बंटवारे की मार ने दोनों को मुल्क बदलने को मजबूर कर दिया, उस दिन के बाद से कलीम और सोनू कभी नहीं मिल पाए. जब-जब ईद आती थी, सोनू अपने पापा से पूछता था, पापा कलीम कभी आयेगा? पापा की ख़ामोशी सोनू को सब कुछ बयां कर देती थी. ऐसी ही ना जाने कितनी यादों की बयारें मन में आती होंगी, जब वो बचपन याद आता होगा. जब-जब दीवाली आती होगी, कलीम और सोनू यादों से भर जातें होगें. वो ईद की आंखे नम कर जाती होगी. वो धूप में गुल्ली-डंडा खेलना, वो चांदनी-चौक की तंग गलियों में लुका-छिपी. वो नई सड़क पर बर्फ़ का गोला, होली का गुलाल, जामा मस्ज़िद का वो इतर, अज़ानों की आवाज़ सब कुछ तो यादों में बदल चुका था. वो पड़ोसी, वो रिश्तेदार, वो दिल्ली, सब लाहौर में बदल गया था. वो यादें, वो रिश्ते, अभी भी कमज़ोर नहीं हुए हैं. क्योंकि उनको मज़बूती दे रही है, दिल्ली-लाहौर बस सेवा.
14 अगस्त 1947 की रात ब्रिटिश सरकार ने भारत और पाकिस्तान के बीच एक लकीर खींच दी, जिसकी वजह से रातों-रात ना जाने कितने ही लोगों को अपना घर छोड़ कर एक नई जगह शरण लेनी पड़ी. लोगों ने अपना घर तो छोड़ दिया, पर दिल से उस घर की यादें नहीं निकाल पाए. वो कहते हैं न, देश छूटने से यादें नहीं छूटती और ना सरहद, पुरानी यादों और रिश्तों को कभी बांट सकती है. सरहदों की ऐसी ही दूरी को मिटा कर दोनों देशों के लोगों को करीब लाने का काम कर रही है दिल्ली-लाहौर बस सेवा, जिसकी पहल भारतीय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की सरकार ने मिल कर की थी.
कब हुई शुरुआत?
उन यादों को, उन रिश्तों को, उन बिछड़े लोगों को मिलाने के लिए भारत और पाकिस्तान सरकार ने मिल कर 19 फ़रवरी 1999 में पहल करते हुए दोनों देशों के बीच बस चलाने का निर्णय लिया. ये बस दिल्ली के अंबेडकर टर्मिनल से लाहौर के गुलबर्ग और ननकाना साहिब बस अड्डे के बीच शुरू हुई. ये कदम उन लोगों के लिए काफ़ी मददगार साबित हुआ, जो आर्थिक रूप से कमज़ोर होने की वजह से अपनों से मिलने से मरहूम रह जाते थे.
कई बार बाधित हुई बस सेवा
ये बात किसी से छुपी नहीं है कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव हमेशा बना रहता है और इसी तनाव के कारण कई बार ये बस सेवा भी बाधित हुई है.
1. दिल्ली संसद हमला
2001 में संसद भवन में आतंकवादियों के हमले के बाद कुछ समय तक इस बस सेवा पर रोक लगा दी गई थी.
2. जाट आन्दोलन 2016
पिछले साल जाट आंदोलन के समय सुरक्षा कारणों की वजह ये बस सेवा दो दिन के लिए बाधित हुई थी. हालांकि उड़ी हमले के बाद एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में खटास आई थी, जिसकी वजह से बस सेवा बाधित तो नहीं हुई, लेकिन बसें खाली ज़रूर नज़र आने लगीं.
सुरक्षा को ले कर कड़े इंतज़ाम
अम्बेडकर बस स्टैंड में दिल्ली पुलिस के जवान तैनात होते हैं. बस के पहुंचने से तीन घंटे पहले से बम स्क्वॉड की पूरी टीम आकर संदिग्ध वस्तुओं की जांच करती है. लोगों का प्रवेश निषेध कर दिया जाता है. बस की सुरक्षा के लिए फ़ोटोग्राफ़ी पूर्णतः निषेध है. वाघा बॉर्डर से ले कर अम्बेडकर बस टर्मिनल तक बस के साथ पुलिस की एक गाड़ी पीछे और एक गाड़ी आगे चलती है, जिससे यात्रियों को सुरक्षित पहुंचाया जा सके.
सुरक्षा देने से इंकार कर चुका है पाकिस्तान
पेशावर स्कूल में हमले के बाद आए दिन होने वाले आतंकी हमले की वजह से पाक सरकार ने 2014 में बस सेवा को वाघा बॉर्डर तक ही सीमित कर दिया, जबकि भारत सरकार ने यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रख कर बस सेवा में कोई परिवर्तन नहीं किया है.
मज़हब के नाम पर, भले हम दो मुल्कों में बंट गए हों, लेकिन आज भी हमारी बोली, भाषा, रीति-रिवाज़, नहीं बदलें हैं. दिल्ली से लाहौर तक ग़ालिब की ग़ज़लें, और फ़ैज़ की नज़्में आज भी सबकी जुबां पे रहती हैं और इनको जोड़े रखती है दिल्ली-लाहौर बस सेवा.