“बनारस” हां रजा बनारस. इस एक शब्द में ही इतनी आत्मीयता और मिठास है कि उसके बाद कुछ कहने को नहीं रह जाता. बनारस जिसे अलग-अलग समय पर बेनारस, वाराणसी और काशी के अलावा कई नामों से पुकारा जाता रहा मगर इस सभी के बीच जिसने उसकी आत्मा और स्व को बचाये रखा. जिसने उसकी अल्हड़ता और खिलंदड़पने से कोई समझौता नहीं किया. जहां गालियों का कोई बुरा नहीं मानता बल्कि उन्हें अभिवादन माना जाता है.
बनारस जिसे हिन्दू धर्मावलंबियों के बीच रोम का दर्जा प्राप्त है. बनारस जहां का पत्थर भी पारस है. बनारस (काशी) जहां दूर-दूर से लोग मौत और मोक्ष हेतु आते हैं. जहां के गंगा-जमुनी तहज़ीब की दुनिया मिसालें देते नहीं थकती. जहां एक ओर से अल्लाहु-अकबर का नारा बुलंद किया जाता है और दूसरी ओर से हर हर महादेव का गगनभेदी नारा बुलंद करते लोग आकर एक-दूसरे के गले लग जाते हैं.
जहां अभिवादन और टांग खिंचाई के इतने स्वरूप हैं कि दुनिया में शायद ही कहीं और देखने को मिलें. जहां ज़िंदगी का मज़ा उसके परम अंदाज़ में और चरम तरीके से लिया जाता है. जहां भाषा, संस्कृति, धर्म और शब्दों को सिर्फ़ बोला नहीं जाता बल्कि उन्हें ओढ़ा-बिछाया और जिया जाता है. तो आइए आपको रू-ब-रू कराते हैं अंदाज़-ए-बनारस से जिसे नहीं जाना तो इस दुनिया में आना भी क्या आना…
1. जहां लोग एक दूसरे को हाय-हैलो और नमस्ते के बजाय महादेव बोलते हैं और इसमें फिरंगी भी बराबर सहयोग देते हैं.
2. गर आप कभी भी बनारस गए हैं या जाएंगे तो आप गुरू शब्द का असल मायने जान जाएंगे. तिस पर से भी यदि ऐसी कोई संभावना नहीं है तो आप हिन्दी के मशहूर साहित्यकार काशीनाथ सिंह की “काशी का अस्सी” तो पढ़ ही लें. गुरू को समझने में सहूलियत होगी.
3. ‘भोसड़ी के’ काशी का सामूहिक और अलहदा संबोधन है. इस एक गाली को वहां इतने अंदाज़ से दिया जाता है कि इस गाली का पूरा विवरण लिखते-लिखते लोग डॉक्टरेट कर लें.
4. चाहे यहां के लोग कितने ही ब्रांडेड और मंहगे कपड़े पहने हों, मगर उसके ऊपर से ओढ़ा जाने वाला मल्टीपरपज़ गमछे के बिना ऐसा लगता है जैसे कुछ छूट गया हो.
5. चाय तो लगभग दुनिया के सारे कोने में मिल जाती है, मगर यहां चाय लड़ती है और उस चाय की अड़ी पर रोजाना जाने कितनी ही सरकारें गिराई और बनाई जाती हैं.
6. यहां की पान पूरी दुनिया में मशहूर है और उससे भी ज़्यादा मशहूर हैं यहां के पान के शौकीन लोग जो गाल के एक तरफ़ पान घुलाए रखते हैं और दूसरी तरफ से गुलाब जामुन खा लिया करते हैं.
7. ‘जिया राजा’ के संबोधन को यहां तब इस्तेमाल किया जाता है जब किसी को शाबासी देनी हो या फिर किसी पर फिकरा कसना हो…
8. बनारसी भोजपुरी बोलते हैं, भोजपुरी चलते हैं, भोजपुरी में ही हंसते और गरियाते हैं क्योंकि भोजपुरी एक बेहद कूल भाषा है.
9. आपका चित्त चाहे जितना ही विचलित चल रहा हो, मगर दशाश्वमेध घाट के शाम की गंगा आरती आपको शांत करने के लिए पर्याप्त है.
10. काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को बराबर सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. यहां के गंगा-जमुनी तहज़ीब की लोग आज भी कसमें खाते हैं, और यहां के रामलीला को देखने तो पूरी दुनिया से लोग यहां तक चल कर आते हैं.
11. बनारस इसके आस-पास के शहरों या कहें तो राज्यों के लिए व्यापार का भी केन्द्र है जहां लोगों के मोलभाव के अंदाज़-ए-बयां को देख कर आप हैरत में पड़ जाएंगे.
12. चाहे वो राजा भैया हों, बृजेश सिंह हों, मुख्तार अंसारी हों, मुन्ना बजरंगी हों या फिर धनंजय सिंह जैसे माफिया डॉन. लोग यहां इनके बारे में चाय पर चर्चा करते हैं.
13. अधिकांश बनारसियों के लिंक्स का तो आप अंदाज़ा ही नहीं लगा सकते. यहां एक आम सा दिखने वाला बनारसी भी प्रधानमंत्री मोदी से लेकर मुख्यमंत्री से सीधे बतियाने की हैसियत रखता है.
14. यहां सुबह-सुबह मिलने वाली जलेबी-कचौड़ी, लस्सी, लौंगलत्ते और मिठाइयां यदि आपने एक बार खा ली तो आप चाहे दुनिया में कहीं भी चले जाएं इससे बेहतर टेस्ट तो आप पाने से रहे.
15. यहां की मेनस्ट्रीम राजनीति की तो बात फिर भी ठीक है, मगर यहां के छात्र राजनीति के भी जलवे हैं और उसकी गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ती है. काशी हिन्दू विश्व विद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ और हरिश्चंद्र महाविद्यालयों की राजनीति तो बस ट्रेंड सेटर है.
तो भैया ये तो हुई लिखा-पढ़ी वाली बात और जो गर आप बनारस को थोड़ा समझना चाहते हैं, थोड़ा उसका रस लेना चाहते हैं तो फिर आपको बनारस के घाटों, गलियों और मंदिर-मसिजिदों की खाक छाननी पड़ेगी. आख़िर बिना संघर्ष के सारा मज़ा थोडै न मिल जाएगा. तो जरा कुछ दिन तो गुज़ारिए बनारस में जिसे प्रधानमंत्री मोदीजी क्योटो बनाने पर आमादा हैं. तब तक के लिए हर-हर महादेव…