रानी पद्मिनी की कहानी पर आधारित फ़िल्म ‘पद्मावती’ की रिलीज़ डेट टाल दी गयी है. फ़िल्म को लेकर करणी सेना के लगातार विरोध और फ़िल्म के विवादों में घिरे रहने की वजह से फ़िल्म रिलीज़ टालनी पड़ी है. करणी सेना का आरोप है कि फ़िल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली ने इतिहास और तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की है, जिससे रानी पद्मिनी की छवि ख़राब हो सकती है. लेकिन अगर इतिहासकारों की मानें, तो रानी पद्मिनी को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें से एक कहानी वो भी है, जिस पर संजय लीला भंसाली फ़िल्म बना रहे हैं.
शीशे में रानी पद्मिनी को देखना
खिलजी ने रानी पद्मिनी को कैसे देखा, देखा भी या नहीं, इसे लेकर भी लोगों के अलग-अलग मत हैं. चित्तौड़ के किले में सुलतान का दर्पण में पद्मिनी का चेहरा देखना, उसे पाने के लिए सबकुछ करने को तैयार हो जाने की कहानी स्थानीय गाइड भी पर्यटकों को सुनाया करते हैं. लेकिन 1303 में घर-घर में दर्पण होते ही नहीं थे.
कहां की थीं रानी पद्मिनी
पद्मिनी, सिंहलद्वीप के राजा की पुत्री बताई गई है. ये द्वीप कहां है, इस पर मतभेद हैं. कुछ लोग सीलोन (श्रीलंका) को सिंहल मानते हैं, जबकि इतिहासकारों ने इसे मरुभूमि के आस-पास बताया है.
कुछ इतिहासकारों के अनुसार, रणथंभौर ही सिंहल के रूप में वर्णित है. पद्मिनी को वहां के राजा हमीर की पुत्री बताया गया है.
कब रची गयी थी ‘पद्मावत’
‘पद्मावत’ का रचनाकाल 1521 से 1542 के बीच माना गया है, जबकि खिलजी 1296 से 1316 तक दिल्ली की गद्दी पर रहा था. इतिहास के तथ्यों के मुताबिक, खिलजी ने 1303 में चित्तौड़ पर हमला किया था.
मलिक मुहम्मद जायसी
मलिक मुहम्मद जायसी ने ही महाकाव्य ‘पद्मावत’ लिखा था. जिस किसी ऐतिहासिक स्रोत या ग्रंथ में ‘पद्मावती’ या ‘पद्मिनी’ का वर्णन हुआ है, वो सभी ‘पद्मावत’ से प्रेरित हैं.
‘पद्मावत’
‘पद्मावत’ में लिखा है कि गंधर्वसेन की सोलह हज़ार रानियां थीं, जिनमें सर्वश्रेष्ठ रानी चंपावती थी, जो कि पटरानी थी. इसी चंपावती के गर्भ से पद्मावती का जन्म हुआ था. जायसी के अनुसार, वो अद्वितीय सुन्दरी थी.
कर्नल टॉड का कथानक
कर्नल टॉड ने कुछ हेर-फेर के साथ उसी कहानी को दोहराया है. उन्होंने राजा रत्नसिंह या रतनसेन के बदले भीमसी (भीमसिंह) का नाम दिया है, उन्होंने पद्मिनी को सिंहल द्वीप के चौहान वंशी हमीर शंख की बेटी बताया है.
क्या सच और क्या कल्पना
दरअसल, इतिहास के अभाव में लोगों ने पद्मावत को ऐतिहासिक पुस्तक मान लिया, लेकिन वो बस आजकल के ऐतिहासिक उपन्यासों जैसी कविताबद्ध कहानी है. कई बातें महज़ कहानी को रोचक बनाने के लिए लिखी गयी हैं.
कुछ तथ्यों के अलावा सब कुछ एक साहित्यिक रचना है और उसके लिए ऐतिहासिक समर्थन नहीं है. कई इतिहासकारों ने पद्मिनी के नाम और अस्तित्व दोनों को अस्वीकारा है.
सच क्या है, ये आज किसी को नहीं मालूम, क्योंकि इतिहास के साथ मिथक, काव्य-कथाएं, कल्पनाएं पूरी तरह घुल-मिल जाती हैं. इसके बावजूद ‘पद्मावती’ को लेकर इस तरह का विवाद होना दिखाता है कि लोग इन तथ्यों को तर्कपूर्ण नज़रिए से नहीं देख रहे.