जब भी बात दिव्यांग लोगों को समान अधिकार और उन्हें अच्छा जीवन देने की होती तो हम पाते हैं कि हमारे समाज में अभी उनके लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है. लेकिन ऐसे लोगों की सबसे सुंदर बात ये होती है कि ये कभी हार नहीं मानते हैं. पश्चिम बंगाल के झारग्राम से भी एक ऐसे ही साहसी दिव्यांग व्यक्ति की कहानी आई है. ये रोज़ाना 15 किलोमीटर व्हीलचेयर से सफ़र तय कर काम पर पहुंचते हैं ताकि अपने परिवार को आर्थिक रूप से सहायता प्रदान कर सकें.

अपनों के लिए रोज़ाना व्हीलचेयर से सफ़र तय कर काम पर पहुंचने वाले इस शख़्स का नाम जगन्नाथ महतो है. उनके पैर जन्म से ही बेजान हो गए थे. लेकिन उन्होंने कभी अपनी दिव्यांगता को कमी के तौर पर नहीं देखा. उन्होंने ख़ूब मेहनत की और भूगोल विषय से स्नातक की डिग्री हासिल की.
गोपीबल्लवपुर गांव में रहने वाले जगन्नाथ इन दिनों झारग्राम ज़िला कार्यालय में अस्थाई कर्मचारी के रूप में काम कर रहे हैं. यहां उनका वेतन 9,000 रुपये है. वो चाहते हैं कि उन्हें स्थाई कर्मचारी बना दिया जाए ताकि वो अपने परिवार की अच्छे से देखभाल कर सकें.

जगन्नाथ ने अपने जीवन में काफ़ी संघर्ष किया है. वो बताते हैं कि जब वो स्कूल जाते थे तो उन्हें क्लास रूम में जाने में परेशानी होती थी. उनके साथी छात्र कभी-कभी उन्हें उठाकर कक्षा में ले जाते थे. उन्होंने कभी हार नहीं मानी और 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद स्नातक के लिए 55 किलोमीटर दूर कॉलेज में दाखिला लिया.
यहां भी वो व्हीलचेयर से ही रोज़ाना कॉलेज जाते थे. ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने अपने परिवार को सपोर्ट करने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. ट्यूशन सेंटर घर से 20 किलोमीटर दूर था, जहां वो व्हीलचेयर से ही जाते थे. एक दिन स्कूल से लौटते समय उन्होंने सीएम ममता बैनर्जी का काफ़िला देखा. जगन्नाथ ने भी सीएम को देख हाथ हिलाकर उनका अभिवादन किया.

ममता जी ने उन्हें देखा तो काफ़िले को रोक उनसे मिली और उनकी स्थिति देख उच्च अधिकारियों को उनकी उचित सहायता करने को कहा. इसके बाद सरकारी अधिकारी उनसे मिले और कहा कि नौकरी मिलने में उन्हें अभी 3 साल लगेंगे. इस घटना के 3 साल बाद वो फिर से ममता जी से मिले. यहां पर जगन्नाथ ने ममता जी से कहा कि उन्हें अभी तक नौकरी नहीं मिली है. तब ममता जी के प्रेशर डालने के बाद उन्हें ये अस्थाई नौकरी मिली.

जगन्नाथ का कहना है कि जितनी सैलरी उन्हें मिलती है उससे उनके घर का ख़र्च ठीक से नहीं चलता. वो चाहते हैं कि उन्हें राज्य सरकार स्थाई कर्मचारी बना दे, ताकि उनकी स्थिति कुछ ठीक हो सके.
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