कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को दहला के रख दिया है. इस महामारी की वजह से लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. ये वायरस और न फैले इसलिए दुनिया के अधिकतर देश लॉकडाउन हैं. संकट की इस घड़ी में कुछ लोगों को खाने-पीने को समान नहीं मिल रहा तो कोई अपनी जॉब चली जाने की वजह से परेशान है.
वहीं दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं जो अपनी परवाह किए बिना कोरोना से संक्रमित मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं. हेल्थ केयर सेक्टर में काम करने वाले ये सभी डॉक्टर्स और नर्स किसी योद्धा से कम नहीं है.
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ऐसे ही एक कोरोना वॉरियर हैं डॉ. लावन्या शर्मा, जो पिछले एक महीने कोरोना के मरीज़ों के इलाज़ में लगे हुए हैं. इस बीच वो एक भी बार अपने घर(नारनौल हरियाणा) नहीं जा पाए हैं. इस बीमारी से लड़ते हुए उन्हें किन-किन चीज़ों से लड़ना पड़ रहा है उन्होंने हमसे शेयर किया है.
डॉ. शर्मा ने कहा- ‘मेरी सबसे बड़ी दुविधा अब ये है कि मुझे कब घर जाना चाहिए और कब नहीं. मुझे 1 महीना हो गया है अपने 5 महीने के बच्चे को गले लगाए हुए. छोटा होने के चलते उसने अभी-अभी मुझे पहचानना शुरू किया है. मगर अब जब मैं सारा दिन मास्क लगाए रहता हूं और बिना इसके लोगों से मिल नहीं पाता तो वो मुझे पहचान ही नहीं पाता.’
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‘अब जब मैं अपनी फ़ैमिली से दूर हूं तो मुझे ये बात इतनी नहीं खलती जितनी Personal Protective Equipment(PPE) की कमी की होने की बात परेशान करती है. शुरुआत के कुछ सप्ताह में तो डॉक्टर्स को बेसिक प्रोटेक्टिव गियर्स के लिए लड़ना पड़ता था. अच्छी बात ये है कि अब हमारे पास पिछले सप्ताह से PPE पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं.’
‘मगर ये प्रोटेक्टिव गियर्स तब किसी काम के नहीं लगते जब हमें पता ही नहीं चलता कौन संक्रमित हैं या कौन नहीं. जैसे हाल ही में एक मरीज़ के अंदर इसके एक भी लक्षण नहीं थे. बस उसे टाइफ़ाइड की शिकायत थी. मगर लाख इलाज़ करने पर जब वो ठीक नहीं हुआ तो हमने उसका कोरोना टेस्ट करवाया. ये टेस्ट पॉजिटिव आया और उस मरीज़ की सेवा में लगे सभी हेल्थ केयर स्टाफ़ को 14 दिनों के लिए क्वारन्टीन करना पड़ गया था.’
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‘अब हमें ये भी डर सताता रहता है कि ये वायरस हमारे साथ किसी अन्य को भी संक्रमित कर सकता है. पहले समाज के लोग हम डॉक्टर्स को सर आंखों पर बिठा कर रखते थे, अब वही लोग हमें किसी कलंक की तरह ट्रीट करने लगे हैं.’
‘मैं जब भी अपने घर जाता हूं तो मेरे पड़ोस में रहने वाली ऑन्टी मुझे देखते ही अपनी कुर्सी से खड़ी होती है और अंदर चली जाती है. इसके बाद वो अपने घर के दरवाज़े और खिड़ियां बंद कर लेती हैं. यही नहीं मेरे पड़ोस के जो लोग मुझसे बात करने के लिए उत्सुक रहते थे उन्होंने मुझसे बातें करना भी बंद कर दिया है.’
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‘उन्हें लगता है कि मैं ही वो आदमी हूं जो उनकी सोसाइटी में कोरोना का संक्रमण फैला सकता है. दिक्कत ये है कि मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता हूं. मगर अब मुझे वापस नहीं जाना है, ये मेरी ड्यूटी है और मैं इसे निभाता रहूंगा.’
कोरोना वायरस से जुड़ी तमाम अफ़वाहें जिस तरह से फैलती हैं उनमें डॉ. शर्मा जैसे लोगों की असली कहानियां खो जाती हैं. उससे भी दुखद ये है कि जिन डॉक्टर्स को हम भगवान का दर्जा देते थे आज उनका ही तिरस्कार करने लगे हैं. इस महामारी ने हमारे विचारों पर भी बहुत बुरा प्रभाव डाला है.
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उम्मीद है आप सभी लोग डॉ. शर्मा की इस स्टोरी के ज़रिये कोरोना से जारी इस जंग को फ़ाइट करने में लगे सभी हेल्थ केयर सेक्टर के लोगों की परिस्थितियों को समझेंगे और उनके साथ पहले जैसा ही व्यवहार करेंगे.
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