‘जाको राखे साइयां, मार सके न कोय’. ये कहावत तो आपने कई बार सुनी होगी. हमारे बड़े-बुजुर्गों ने भी यही कहा है कि हमारी ज़िंदगी और मौत की डोर ऊपर वाले के हाथों में हैं. ये बातें सिर्फ़ किताबी नहीं है, बल्कि हकीकत में कई ऐसी घटनाएं घटित होती हैं, जिसे जानने और सुनने के बाद हम चकित रह जाते हैं.

मामला झारखंड का है. पलामू जिले के एक मासूम लड़के को डॉक्टरों न कि सिर्फ़ मौत के मुंह से बाहर निकाला, बल्कि इंसानियत की एक ऐसी मिसाल पेश की, जिसे जानने के बाद दिल ख़ुश और आंखें नम हो जाएंगी.

साहिल नाम के इस लड़के को झारखंड के सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया था. अमूनन सरकारी अस्पतालों के बारे में लोगों की धारणा लपारवाही वाली है, लेकिन अस्पताल के डॉक्टरों ने न सिर्फ़ सर्जरी की, बल्कि उसकी जान बचाने के लिए अपना ब्लड भी डोनेट किया.

बताया जा रहा कि 10 अप्रैल को साहिल के पिता उसे घर पर छोड़ गए थे. जब वो वापस आए, तो साहिल अस्पताल में मिला. ट्रेन की चपेट में आने के कारण साहिल का एक पैर करीब-करीब कट चुका था, बाएं कोहनी की हड्डियां टूट चुकी थीं और पूरे शरीर में गहरी खरोंचें थी. उसके सिर पर गंभीर चोटें आई थी और जिसके कारण वह ज़ीरो पल्स पर था.

इलाज करने वाले डॉक्टर सिद्धार्थ ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत करते हुए बताया कि ‘लड़का बुरी तरह से घायल हो चुका था. सर्जरी की प्रक्रिया काफ़ी जटिल थी, मेरे कुछ साथी इसके खिलाफ़ थे और उन्होंने मुझे इसे करने से मना किया.’

‘लोगों ने मुझे कोई सर्जरी के खिलाफ़ सलाह दी, क्योंकि रोगी के रिश्तेदार वहां मौज़ूद नहीं थे, लेकिन मुझे एहसास हुआ कि यदि संक्रमित भाग को हटाया नहीं जाता, तो पैर में सेप्टिक होना शुरू हो जाता और वो घातक साबित हो सकता था. मैंने ऑपरेशन के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया. मेरे वरिष्ठ और सहकर्मियों ने सहयोग किया.’

सर्जरी के वक़्त लड़के का रक़्तचाप काफ़ी बढ़ गया था. इसके चलते खून की ज़रूरत पड़ी, जो कि स्वाभाविक थी. हमने शाम तक इंतज़ार किया और जब ब्लड बैंक से खून का इंतजाम नहीं हो सका, तो अस्पताल के कर्मचारी आगे आए और उन्होंने रक्त दान किया. इसके बाद भी बल्ड की और ज़रूरत पड़ने पर अस्पताल के एक डॉ. सुशील कुमार पांडे ने कदम आगे बढ़ाए और बल्ड डोनेट किया.

डॉक्टर ने न केवल रक्त दान किया, उन्होंने सीटी स्कैन, दवाइयों और अस्पताल में उपलब्ध अन्य चिकित्सा सुविधाओं के लिए भी व्यवस्था की.

साहिल के पिता पेशे से रिक्शा चालक हैं, उन्होंने कहा कि ‘मेरा बेटा तो मर चुका था. उसे वापस ज़िंदा करने वाले ये डॉक्टर हैं और इनका ये कर्ज़ ज़िंदगी भर नहीं उतार पाउंगा.’