हमने जब से होश संभाला है तब से अपने पुरखों से सुनते आ रहे हैं कि हर दशहरा के मौके पर रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाद का पुतला दहन किया जाता है. इसे बुराई पर अच्छाई की जीत कहा जाता है. अंधेरे पर उजाले का आधिपत्य कहा जाता है. मगर इस सभी के बीच क्या आपने कभी सोचा है कि रावण के पुतले का दशहरा के दौरान जलाया जाने और दुर्गोत्सव के नवरात्र के बीच क्या अंतरसंबंध है? हम तो दशहरा त्योहार को लेकर न जाने कितनी ही कहानियां सुनते-सुनाते आए हैं, मगर इस बार हम ख़ास आप सभी के लिए लाए हैं, वैसी पांच कहानियां जिनकी वजह से दशहरा त्योहार हमेशा हमारे दिल के सबसे नज़दीक रहता है.

1. राम बनाम रावण – श्री राम ने लंकेश पर जीत हासिल की…

यह बात हम सभी जानते हैं कि माता सीता का रावण द्वारा अपहरण किए जाने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने वानरों की सेना बना कर लंका जीत ली थी. इस युद्ध और लंका को जीतने के बाद श्री राम वह सारा राज-पाट विभीषण को सौंप आए थे, मगर कुछ ऐसी चीज़ें जिन्हें हम अब तक नहीं जान पाए हैं…राम ने मां दुर्गा को प्रसन्न करने हेतु 9 दिनों तक “चंडी हवन” किया. जिसके परिणामस्वरूप उन्हें दुर्जेय रावण को मारने की तरकीब पता चली थी. आश्विन शुक्ल दशमी के दिन राम ने रावण का वध किया था और तब से ही यह दिन इतिहास में विजय दशमी के नाम से दर्ज हो गया है.

2. पांडव बनाम कौरव – जब युद्ध की संभावनाए प्रबल होती गईं…

जुए के खेल में अपना सब-कुछ हार जाने के बाद पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास दे दिया गया. अंतिम वर्ष में जब उन्हें अज्ञातवास में रहना था तब उन्होंने उनके हथियारों को एक शमी वृक्ष के जड़ों में छिपा दिया और भेष बदल कर राजा विराट के पास चले गए. इसी बीच कौरवों ने राजा विराट के राज्य पर हमला बोल दिया, जिसकी वजह से पांडव योद्धाओं ने उनके हथियार फिर से निकाल लिए. यह युद्ध उस लंबी कड़ी का एक हिस्सा था जिसने “महाभारत” नामक महायुद्ध की भूमिका तैयार की.

3. मां दुर्गा बनाम महिसाषुर – जब महिसाषुर का वध किया गया…

कहा जाता है कि उस दौर में महिसाषुर और उसके साथी असुरों ने पूरी दुनिया में कुछ इस कदर उत्पात मचा दिया था कि मानव और देवताओं का अस्तित्व संकट में पड़ गया था. इसके मद्देनज़र सारे देवताओं ने उनकी शक्तियों को एकत्रित किया और एक जबरदस्त शक्ति का सृजन किया, जिसे पूरी दुनिया दुर्गा के नाम से जानती है.

दानवी शक्तियों का ख़ात्मा करने वाली इस शक्तिरूपा के दस हाथ थे, हर हाथ में अलग-अलग और घातक हथियार थे. दानवों और उनके बीच यह युद्ध 9 दिन-रात तक चला और दसवें दिन महिसाषुर का वध कर दिया गया. इसलिए ही उसका नाम दश-हरा रख दिया गया.

4. एक समाजसेवी की कहानियां…

मुझे इस कहानी को लेकर आप पर शक ही नहीं बल्कि यकीन है कि आप इस कहानी के बारे में नहीं जानते होंगे. यह एक युवा ब्राम्हण कौत्सा की कहानी है जहां वह उसके गुरु ऋषि वारातंतु से गुरुदक्षिणा हेतु लगातार आग्रह करता है. उसके गुरु वारातंतु ने उससे 1400 लाख स्वर्ण सिक्के मांगे. कौत्सा ने राजा रघु से इस बाबत मदद मांगी, लेकिन तब तक राजा रघु उनका सारा कोष दान में खत्म कर चुके थे. तब राजा रघु ने धन देवता कुबेर से मदद मांगी.कुबेर ने राजा रघु की मदद हेतु आपाति वृक्ष के इर्द-गिर्द स्वर्ण सिक्कों की वर्षा करवा दी. राजा रघु ने इस सारे बरसे हुए धन को कौत्सा को दे दिया और कौत्सा ने पूरा धन गुरु के चरणों में अर्पित कर दिया. गुरु ने सिर्फ़ मांगी गई धनराशि ख़ुद के पास रखी और बाकी लौटा दिया. बाकी का धन अयोध्या के लोगों में बांट दिया गया. इसी वजह से आज भी दशहरा के मौके पर आपाति वृक्ष के पत्ते बांटे जाते हैं.

5. इसी मौके पर माता वापस घर आईं थीं…

माता सती की मौत के बाद भगवान शिव अत्यंत क्रोधित थे. अगले जन्म में माता पार्वती ने जब देवाधिदेव शिव से शादी कर ली, तब भी वे राजा दक्ष से आंख-से-आंख नहीं मिलाते थे. इसी बीच भगवान विष्णु ने महादेव से आग्रह किया कि वे दक्ष को माफ़ कर दें.अब जब समय बीतने के साथ-साथ शांति बहाल हो गई और माता पार्वती उनके पुत्रों कार्तिकेय, गणेश और दो सखियां जया और विजया के साथ उनके माता-पिता के घर आने-जाने लगीं, और माता के इसी प्रवास को दुर्गोत्सव के तौर पर मनाया जाता है.